मानस समुद्राभिषेक।। कथा क्रमांक-९४१ दिन-१ दिनांक-१७ अगस्त’ २०२४
साधु को ज्ञान गांभिर्य नहि,गौ गांभिर्य जरुरी है।।
तीन अभिषेक का बिल्व पत्र महादेव के चरण में अर्पण करेंगे।।
आत्मबोध के लिए वर्ण या जाति जरूरी नहीं, मैत्री और करुणा जरूरी होती है।।
कथाबीज पंक्ति:
छबि समुद्र हरि रूप बिलोकी।
एक टक रहे नयन पट रोकी।।
-बालकॉंड
बिप्र जेवॉंइ देहि दिन दाना।
सिव अभिषेक करहि बिधि नाना।।
-अयोध्याकॉंड
प्राचीन और पौराणिक सभ्यता रामायण की सनातनी परंपरा और भगवान बुद्ध की भूमि से जुड़ी हुई इंडोनेशिया की योग्य कर्ता की भूमि से रामचरितमानस के अभिषेक के रूप में नवदिवसीय राम कथा का आरंभ मनोरथी परिवार के तीन बच्चे अभिषेक,आरुष और अनंत ने यहां की भूमि के बारे में बात करते हुए बताया।। कहां गया की अयोध्या धाम से प्रेरित योग्य कर्ता शब्द है।योग्य का मतलब बराबर,कर्ता का मतलब समृद्धि। समृद्धि के लिए जो योग्य है इस भूमि का नाम।।
और आज विशेष दिन यह है इंडोनेशिया का आज 17 अगस्त स्वतंत्रता दिन है।। तो बापू के विशेष आशीष भी प्रदान हुए।।यह जावानीझ संस्कृति की प्रसिद्ध यूनेस्को हेरीटेज साइट जहां नौवीं शताब्दी का ब्रह्मानंद मंदिर- त्रिदेव मंदिर है।। जहां ब्रह्मा विष्णु और भगवान शिव की विशाल प्रतिमा है।। 40 हेक्टर में फैला और 110 फीट बाय 110 मीटर लंबा परिसर।47 मीटर सबसे ऊंची भगवान शिव की प्रतिमा का मंदिर है।।परिसर में रामायण को अंकित किया गया है।।
और वर्ल्ड हेरिटेज साइट दूसरी भगवान बुद्ध की, दुनिया में सबसे बड़ा स्तूप यहां है जो 15130 स्क्वायर मीटर और 42 मीटर ऊंचा है।। यहां 504 बौद्ध मूर्ति और 2400 शिल्प है।। यह यूनेस्को हेरीटेज साइट से जुड़ी है।।
यहां इस्लाम धर्म के साथ-साथ बुद्ध,ख्रिस्ति और सनातनी हिंदू धर्म सब साथ जी रहे हैं।।यह जावानीझ टापू है।। और शैलेंद्र राजवंश से जुड़ा हुआ भगवान बुद्ध का मंदिर है।।
बापू ने इन्डोशिया के योग्यकर्ता की भूमि से बीज पंक्ति से कथा आरंभ करते हुए कहा:
भगवान महादेव की असीम कृपा से सावन के पवित्र दिनों में इस देश में नवदिवसीय रामकथा का अनुष्ठान शुरू हो रहा है।। यह देश का स्वतंत्र दिन और बापू ने कहा कि मेरी व्यास पीठ और सभी फ्लावर की ओर से मंगल अवसर पर जनता, देश और सरकार को शुभकामना।। परमात्मा संपन्न रखें बापू ने कहा की 900 साल पहले यहां का राजा भी सनातनी हिंदू था।। यह रामायण में देश है। मूल में रामायण की सभ्यता है।। शिव की, रामायण की और बुद्ध की भूमि में आकर प्रसन्नता हो रही है।।
बापू ने बाबूजी का मनोरथी परिवार के बारे में भी बताया:यह परिवार को कथा मिलनी ही चाहिए। क्योंकि सालों से यह देश में रहकर पूरा परिवार अखंड रामायण का पाठ करते हैं। मानस के प्रति निष्ठा के लिए प्रसन्नता व्यक्त करते हुए राम प्रीति के बारे में बापू ने बताया कि इंडोनेशिया में कभी कोई हादसा हुआ तो व्यास पीठ की ओर से सेवा का संकल्प होता रहा।। तब मनोरथी परिवार ने हर वक्त सेवा की है।। जैसे साहित्य के नव रस है। भोजन के छ रस है। रामचरितमानस में और एक रस-माधुर्य रस है और पंच रस भी है। लेकिन इनमें एक प्रधान रस का नाम है:सेवारस। यह मनोरथी परिवार का सेवा रस के प्रति बापू ने बधाई दी।।
बापू ने कहा कि अभिषेक शब्द पर मानस रुद्राभिषेक कथा हुई है।और सबसे ज्यादा अभिषेक रूद्र को लागू होता है। लेकिन राम का राज्याभिषेक भी हुआ है।मानस में अभिषेक शब्द 16 बार आया है। अयोध्या कांड और उत्तरकॉंड में ज्यादा है। ब्रह्मलीन डोंगरे बापा कहते थे अयोध्या कांड यौवन का कांड है। युवानी को रुद्राभिषेक करना चाहिए और उत्तर अवस्था में भी अभिषेक के साक्षी बनना चाहिए।।
बापू ने कहा कि रामचरितमानस में मातृ शरीर का अभिषेक जल से नहीं हुआ। लेकिन बालकांड में दुर्गा का अभिषेक पानी से नहीं, मां जानकी जी ने वाणी से किया है। तो रुद्राभिषेक, राज्याभिषेक, दुर्गाभिषेक, जलाभिषेक और हृदय का भी अभिषेक होता है।।
बापू ने कहा कि 9 दिन हम समुद्र का अभिषेक करेंगे। सागर शब्द के कई पर्याय रामचरितमानस में आए। लेकिन समुद्र शब्द केवल सात बार आया है। समुद्र सात है तो यह समुद्र का अभिषेक करने से शिव का अभिषेक होगा। हृदय का अभिषेक भी होगा और राम का अभिषेक भी होगा। क्योंकि भगवान शिव समुद्र है तो रुद्राभिषेक हो गया।। भगवान राम भी समुद्र है तो राम का अभिषेक आ जाएगा। रामचरितमानस भी समुद्र है तो हृदय का अभिषेक भी आ जाएगा। ऐसे हम तीन अभिषेक का बिल्व पत्र महादेव के चरण में अर्पण करेंगे।। तुलसी जी ने कहा आनंद का सागर छबि समुद्र, श्रवण समुद्र, शोक समुद्र, मूल समुद्र, काल समुद्र, ऐसे समुद्र बताएं।।अभिषेक करना है तो पांच वस्तु की जरूरत होती है:दूध,दहीं,घी,मध और साकर यह पंचामृत से अभिषेक होता है।।
एक पंक्ति बालकांड से ली है नैमिषारण्य में स्वयंभू मनु और शतरूपा गोमती के तट पर कठिन तपस्या करते हैं। भगवान प्रकट होते हैं तब मनु सतरूपा छबि समुद्र को एक ही टक लगा कर देखते हैं और सम उदर- देहाती भाषा में समंदर कहते हैं। जहां जल समान स्तर पर होता है।।
राम वनवास, दशरथ की मृत्यु और अयोध्या में अनर्थ शुरू होने पर भरत जी को अप्रिय सपने आने लगे। बापू ने कहा अंत:करण जितना ज्यादा शुद्ध होगा सपना का परिणाम हम ज्यादा अच्छा कह पाएंगे। भरत रात को जागते रहे। ब्राह्मणों को बुलाकर भोजन करवाया। दान किया फिर रुद्राभिषेक करवाया। खराब सपनों से मुक्त होने के उपाय किए।।
बापू ने इस वक्त भगवान बुद्ध का आत्म बोध शब्द पर सुनीत नामक एक अछूत कहे जाने वाले आदमी की कहानी बताई और भगवान बुद्ध ने सुनीत को अपने हाथों से गंदगी से दूर करते हुए नहलाया और कहा कि आज मैंने अभिषेक किया।। बुद्ध की इस क्रिया पर बहुत विरोध हुआ। सुनीत को स्नान करवाया, दीक्षा दी, संघ में भी लिया।। राजा प्रसेनजीत को भी अच्छा नहीं लगा।
बापू ने कहा कि तब बुद्ध कहते हैं कि आत्मबोध के लिए वर्ण या जाति जरूरी नहीं, मैत्री और करुणा जरूरी होती है।। बापू ने बताया कि साधु को ज्ञान गांभीर्य नहीं गो गांभिर्य जरूरी है।।गाय जब चारा चरती है और फिर अपने मुंह में बैठकर चबाती है वैसे जहां कोई सवाल नहीं कोई जवाब नहीं ऐसा भरोसा ही गो गांभिर्य है।।
रामचरितमानस की महिमा बताते हुए सात सोपान में बालकांड में सात मंत्रों से मंगलाचरण का आरंभ हुआ। बाद में गुरु वंदना करते हुए तुलसी जी ने 8 पंक्ति लिखी ये तुलसी का गुरु अष्टक है।। बापू ने तुलसी के पंचशील के बारे में बताया और हनुमान जी की वंदना के साथ आज की कथा को विराम दिया गया।।