जीनमें यह सोलह लक्षण है,उनका अभिषेक करें।
आत्मबोध जिसे हो गया हो। ऐसे हमारे बुद्ध पुरुष, कोई परम साधु इसका हम अभिषेक करें।।
क्या है रामचरित मानस का पंचामृत?
मन,बुध्धि,चित् पवित्र है तो आदमी तंदुरस्त रहेगा।।
महादेव का नाम औषधि है।।
रुद्र स्वयं औषधि है।।
इन्डोनेशिया के योग्यकर्ता भूमि से प्रवाहित रामकथा के दूसरे दिन आरंभ में कुछ प्रश्न पूछे गये वो उठाते हुए बापु ने अभिषेक के बारे में बातें खोली।।
पूछा गया था:किसका अभिषेक करें?और जीनका अभिषेक करें उन में क्या लक्षण होने चाहिये?
बापू ने बताया कि वेद के पुरुषसूक्त में अभिषेक के बारे में बताया है।।शालिग्राम-भगवान विष्णु का अभिषेक करें।राम और कृष्ण का अभिषेक किया जाता है।।रुद्राभिषेक तो बहुत प्रसिद्ध है, जो शिव का अभिषेक है।और दुर्गा अभिषेक भी हमने कल बताया।समुद्र के जल से समुद्र को ही अभिषेक जो जलाभिषेक है।और मानस का एक अर्थ हृदय है तो यह हृदय अभिषेक भी है।।
रामचरितमानस का पाठ करें और पाठ करते-करते हाथ में मानस रह जाए आंख से आंसू निकल जाए वह ग्रंथाभिषेक है।। भगवद गीता त्रिभुवनीय ग्रंथ पर आंखे डबडबा जाए यह ग्रंथाभिषेक है।।
एक अभिषेक बुद्ध पुरुष का भी करना चाहिए। पहुंचे हुए महापुरुष,जिनकी फकीरी ने इतिहास रचे हो और इन पर इतिहास रचने की किसी को फुर्सत ना हो! ऐसे महापुरुष का अभिषेक होना चाहिए।। आत्मबोध जिसे हो गया हो। ऐसे हमारे बुद्ध पुरुष, कोई परम साधु इसका हम अभिषेक करें।।
प्रश्न यह उठता है कि इसकी क्वालिटी क्या है? अभिषेक पंचामृत से होता है। लेकिन ग्रंथ के रूप में इस त्रिभुवनीय शास्त्र का अभिषेक करें तो क्या इस पर हम दूध,दहीं,घी डालें? नहीं।।मानस का पंचामृत क्या है?श्लोक,सोरठा,दोहा,चौपाई और छंद यह पंचामृत है।।
पंचामृत का एक द्रव्य घृत भी है।। श्लोक का दर्जा बहुत ऊपर है।।श्लोक की छांव में सब लोक हैं। तो मंगलाचरण के,अन्य ऋषियों के स्तुति करते हैं वहां श्लोक है। त्रिभुवन दादा कहते थे कि रुद्राष्टक गाओ तो मालकौंस में गाना क्योंकि शिव को मालकौंस अत्यंत प्रिय है।। श्लोक नारायण रूप है।। और मध क्या है?चौपाइयां मध है।।कानों में शहद घोल देता है।।श्रोताओं के कानों में मधु संचार होता है।।
यजुर्वेद में मधु को औषधि कही है आयुर्वेद में भी मधु को औषधि कहा है।।
बापू ने आज बताया कि औषधि क्या है? वेद कहता है रुद्रौषध:-शंकर स्वयं औषधि है।। वेद रूपी वैद से आरोग्य प्राप्त करना चाहे तो रुद्र स्वयं औषधि है।। तो क्या बैठे-बैठे रूद्र रूद्र करें? नहीं।। महत्व की औषधि का सही समय होता है।वैद के कहने पर और अनुपात के साथ औषधि लेने के बाद हर औषधि अपना समय लेती है।। खाली रूद्र भी औषधि है तो रुद्राष्टक कैसी होगी! क्योंकि खरल में घुंट घुंट कर आठ श्लोक बनाए गए हैं।। औषध: मन प्रसाद:- मन की प्रसन्नता भी औषधि है। आदमी जितना प्रसन्न रहे उतना ठीक रहता है। मैं यह भी जानता हूं की तबीयत ठीक ना होने पर मन प्रसन्न नहीं रहता।। पवित्रता भी औषधि है।। मन बुद्धि और चित् से पवित्र रहें।।
बापू ने कहा कि एक ही अभिप्राय काफी है और कोई अभिप्राय नहीं चाहिए। इतना कुछ करने से हमें स्वस्थ रहते हैं। मन पवित्र तो हम तंदुरुस्त रहते हैं। बुद्धि पवित्र तो हम तंदुरुस्त रहते हैं। चित् पवित्र हो तो भी हम तंदुरुस्त रहते हैं।। मन कैसे प्रसन्न रहे? कैसे पवित्र किया जाए?
श्री गुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुर सुधार… गुरु चरण की रज से मन पवित्र होता है।।
मां जानकी के चरण की वंदना से बुद्धि पवित्र होती है। और निरंतर हरि स्मरण से चैतसिक शुद्ध चित् शुद्ध होता है।। निरंतर तेल धरावत स्मरण से चित् शुद्धि होती है, और कोई उपाय नहीं है।।
स्मरण का अर्थ परम तत्व में पूरा का पूरा डूब जाना है।। १०८ मनके की माला है तो १०८ वेन को बुलाने की जरूरत नहीं।। गंगाजल औषधि है।। वरुण जल भी औषधि है।। पवन भी औषधि है।। अच्छी हवा यदि कोई झील के पास,नदी के तट पर बैठे। बिना प्राणायाम, सहज वृक्ष के नीचे,खेत में बैठे तो यह औषधि है।। पृथ्वी भी औषधि है।।पृथ्वी पर सोने का निरंतर अभ्यास करो।।और कोई अवाहक तत्व बिछा कर सोना चाहिए।।वेद कहता है आकाश और आकाश में उदित चंद्रमा औषधि है।। आकाश के नीचे सोना और चंद्रमा की चांदनी अमृत वर्षा हमें औषधि प्रदान करती है।।अग्नि औषधि है। किसी बच्चे को जन्म देने वाली प्रसूता के पलंग के नीचे चारपाई के नीचे अग्नि रखने का यही तात्पर्य था।। परमात्मा का नाम भी औषधि है। गुरु के चरण की रज औषधि है। जितने भी रोग है सब मिट जाएंगे।। बापू ने कहा महादेव का नाम औषधि है।
तो इतने औषधि बापू ने बताएं।।
बापू ने कहा दोहा दहीं है।अच्छी तरह जमाया हुआ दही,और सोरठा दूध है।।अच्छी गाय के बछड़े को दूध पिलाने के बाद खुश होकर पहले धार का दूध गाय माता बर्तन भर देती है यह सोरठा है। और छंद चीनी साकार है।।
लेकिन प्रश्न यह है यह सब का अभिषेक करने के लक्षण क्या होने चाहिए?
बापू ने कहा कि कोई कहे यह बुद्ध पुरुष है तो क्या मान लेना चाहिए? नहीं।।१६ लक्षण दिखाएं।राम और कृष्ण के अभिषेक के लिए १६ लक्षण। कृष्ण में १६ कला है। यह पूर्ण अवतार है।।लेकिन कभी छोटे मन वाले लोग राम की १२ कला कहकर कोंसते हैं।। राम भी १६ कला वाले हैं।।कृष्णा की १६ कला है।।राम में १६ शील है।। सोलह शील का अवतार है। तुलसी के अन्य ग्रंथ मिालकर आप देख सकते हैं।। और महादेव शिव १६ रस से परिपूर्ण है।। दुर्गा में १६ ऊर्जा है।। कुछ रजोगुणी,कुछ तमोगुणी,कुछ सत्यागुणी और कुछ गुणातित।। समुद्र में १६ रत्न है।।आप कहेंगे १४ है! लेकिन १४ निकले हैं,दो गुप्त है।। और बुद्ध पुरुष में १६ लक्षण है जो गीता के १६वें अध्याय में अभय से लेकर हम देख सकते हैं।।
हमारा गुरु हमारा योग्यकर्ता है।।हमारा परम हित करें वह योग्यकर्ता है।।
बापू ने कहा शंकराचार्य ने थोड़ा क्लिष्ट लगे ऐसा एक ग्रंथ बोधसोपान रचा।। बोध सोपान की प्रथम सीढ़ी है आत्मबोध।। ८ सोपान बताएं।। वही बात बुद्ध कहते हैं और गरुड़ ने उत्तरकॉंड में सात प्रश्न पूछे वह शांकरी परंपरा का भावांतर है।। जिन्होंने तप करते-करते समस्त पाप खत्म कर दिए उसे आत्मबोध होता है।। अपमान सहन किया,गालियां खाई,तिरस्कार सहन किया,सुख-दुख सह लिए तो तप हो गया है।।साधु संत पंचधुनि तपते हैं। वह तप है जिसे परमात्मा प्रसन्न होने की तैयारी में है वह पंचधुनि तपते है क्योंकि प्रसव होने की तैयारी है! हमने कुछ प्राप्त कर लिया। जो हमने कमाया उसका फल हम भोग पाये या नाही भोग पाएंगे।। आप देखते होंगे अरबों कमाने वाले रोटी भी नहीं खा सकते हैं और रोटी के ऊपर घी भी नहीं लगा सकते हैं। लेकिन जिस तरीके से हमने कमाया उसका फल अवश्य भोगना पड़ेगा।।
शंकराचार्य कहते हैं तप से तेरे पाप खत्म कर।
बापू ने कहा कि राग बंधन है। ठीक नहीं है। मैं जानता हूं।फिर भी गुरु कृपा बरसने लगती है तब मुझे होता है कि कब सुबह हो,१० बजे और मेरे श्रोताओं के सामने में सब गाने लगुं! श्रोताओं के प्रति मेरा यह राग है।और आपको भी होता होगा कब १० बजे और कथा प्रवाह चले! दोनों और यह राग है।।लेकिन राग को मंजिल ना बनाओ, रास्ता बनाओ।और रास्ता बनने से भाव जागेंगे, अनुराग आएगा और आगे विराग भी आएगा।। साधना का यह क्रम है।।
बुद्ध पुरुष के १६ लक्षण गीता के १६वें अध्याय में है लेकिन अनुभव ही काम आएंगे।।
बापू ने कहा कि शिव में नव रस है।। हास्य रस है। श्रृंगार रस है। और तीन नेत्र, सांप की यज्ञोपवीत धारण की,वह बिभत्स रस है। करालं महाकाल कालं कृपालम… यह भयानक रस है। रुद्र,रुौद्र और रुद्री अध्यात्मिक बिल्व पत्र है।।
शिव में शांत रस भी है। कर्पूर गौरवं करुणावतारं ये करुण रस है। और शिव को देखते ही कामदेव हट जाते हैं यह शिव का वीर रस है।। जटा में से गंगा निकलती है यह अद्भुत रस है।। लेकिन मगन ध्यान… शिवजी ध्यान में बैठे हैं वह,दसवां- ध्यान रस है।।और भोजन के ६ रस मिलाकर शिव में १६ रस रस है।। शिव रस रूप है।।तो कृष्ण की कला, राम के १६ शील में: राम धर्मशिल भी है। राम कर्मशील, क्षमाशील, मौनशील है।। राम धैर्यशील, करुणा शील, स्मरणशील,विस्मरणशील है। स्वीकारशील, सत्यशील और संस्कारशील भी है।। बापू ने कहा कि मैं मौनका संबंध मून से है। वाणी से कोई लेना देना नहीं। कई लोग हमसे नहीं बोलते तो हो मौनी महात्मा नहीं कहलायेंगे।
दुर्गा की १६ ऊर्जा, समुद्र के १६ रत्न यह सब अभिषेक के अधिकारी है।।
कथा प्रवाह में हनुमान जी की वंदना के बाद राम कथा के प्रधान तत्वों की वंदना की गई।। सीताराम जी की वंदना के बाद नाम वंदना का पूरा प्रकरण उठाया और नाम वंदना के गान के बाद आज की कथा को विराम दिया गया।।