हमारा प्रवेश प्रसिद्धि और प्रस्थान-जहां से हमें स्वीकृति मिली वह केंद्र को कभी नहीं भूलना चाहिए।।
मूल को याद रखेंगे तो गुरुप्रेमी बनेंगे।।
थर्मामीटर बुखार बता देता है क्योंकि वह खुद बीमार नहीं है।।
बुद्धपुरुष की पहली विचित्रता है वह निकट से भी निकट और दूर से दूर लगता है।।
पोथी में केवल श्रद्धा होनी चाहिए स्पर्धा नहीं।।
हम सब का आधार पादुका है।।
इन्डोनेशिया के योग्यकर्ता की पंचतारकहोटेल हयात में बह रही नव दिवसीय रामकथा के पांचवे दिन बापु ने कल के बेरखा,पादूका,माला के बारे में बताया था उन पर अपना विवेक स्पष्टता करते हुए बताया की “माला,पादूका,बेरखादुनियाभर में बीकते भी है और बांटे भी जा रहे है मगर मैं वहां बीच में नहिहुं।।मेरे नाम से ये न हो इतना ही कहना है”
कोइतलगाजरडा आये और रामचरित मानस का पुस्तक मांगे तो मैं देता हुं मगर मेरे पिताजी प्रभुदासबापु को याद करके देता हुं,वोबहूत पाठ करते है वो स्मरण मुजे आता है।।
कंइजिग्यासायेंआइबापु ने जवाब में सबको न्याय किया।
बापू ने बताया कि हमारा प्रवेश प्रसिद्धि और प्रस्थान जहां से हमें स्वीकृति मिली वह केंद्र को कभी नहीं भूलना चाहिए।हर पल वो स्मरण में रहना चाहिए।। युवाओं को बताया कि मां-बाप की बात आजा माने और मां-बाप भी युवाओं की बात मानें।।
बापू ने कहा कि मूल को याद रखेंगे तो गुरुप्रेमी बनेंगे।।
शिव को प्रिय होने के लिए पार्वती क्या-क्या करती है वह कुमार संभव में कालिदास ने लिखा है, वह बापू ने कहा।।वहांकालिदास ने शिव और पार्वती को बिल्कुल मानवीय रूप दिया है। पार्वती के १७ नाम दिखाएं है।।
बापू ने कहा कि थर्मामीटर बुखार बता देता है क्योंकि वह खुद बीमार नहीं है। सद्गुरु वह है जहां विकार नहीं है इसलिए वह हमारे विकार दिखा सकते हैं।। कबीर की पंक्ति: कुछ लेना ना देना मगन रहना बापू ने गाकर बात बताई।।
किसी ने पूछा था की पघड़ी पोथी और पादुका का अभिषेक कैसे करें? बापू ने कहा की पघड़ी मेरे लिए ब्रह्मलोक प्रज्ञा है।। पोथी मध्य में है, पृथ्वी पर है वह हमारा दिल है। और पादुका की करुणा पातास से भी गहरी है।।
पगड़ी का अभिषेक करने के लिए तीन प्रकार है: प्रज्ञावन व्यक्ति की आज्ञा का उल्लंघन न करें।। दूसरा- जो भी अहोभाव से मिला है उसे समाज को बताएं और तीसरा-गुरु का करम ना करें, गुरु जैसा भी करें ऐसा ना करें। यह काम करके हम पगड़ी का अभिषेक कर सकते हैं।।
बापू ने कहा कि बुद्धपुरुष की पहली विचित्रता है वह निकट से भी निकट और दूर से दूर लगता है।। पोथी का अभिषेक करने के लिए पहली बात है: पोथी पढ़ते वक्त आंख में आंसू आ जाए। दूसरा: पोथी किस से मिली वह हाथ को भी हम स्मरण करें और तीसरा:पाठ करते समय कभी दंभ नहीं करें बापू ने बताया पोथी में केवल श्रद्धा होनी चाहिए स्पर्धा नहीं।। हम सब का आधार पादुका है। तो पादुका का अभिषेक दो रीत से होता है: यदि सर पर धारण करें तो पादुका हमारे ऊपर अभिषेक करती है और जीन चरण में वह पादुका है वह चरण रज से हम पवित्र बने।। पादुका सावधान करती है। पादुका घर और घट कों रक्षण करती है। हमारे प्राण की रक्षक है।।निरंतर किसी की याद दिलाती है।। कथा प्रवाह में शिव समाधि से जागे। दक्ष यज्ञ की बात करके फिर सती यज्ञ में जलकर प्राण त्याग किया।। दूसरा जन्म हिमाचल के वहां हुआ। नारद ने तप की बात बताई।कठिन तप के बाद जब शिव बारात लेकर आए अष्ट सखियां पार्वती को लग्न मंडप में लाती है।। शिवविवाह के बाद कार्तिकेय ने ताड़का सूर का वध किया और पार्वती ने समय जानकर राम के बारे में जिज्ञासा की।।
और पंचमुखी शिव के पांच मुख से राम जन्म के एक-एक कारण की कथा कही गई।। पहले दो मुख विवेक और विचार जहां जय और विजय की कथा की गई। तीसरे मुख से विलास की कथा विलास के मुख से नारद की कथा सुनाई। और विराग के मुख से मनु शतरूपा की कथा और विश्वास के मुख से कपट मुनि की कथा कहकर शिव ने राम जन्म के हेतु बताएं।।
देवताओं ने स्तुति की और राम पहले मां की गोद में चतुर्भुज स्वरूप से प्रकट हुए।। मां ने उसे दो भुजा वाले मनुष्य बनाए और रुदन हुआ।।
बापू ने कहा कि शताब्दियों पहले जिसे अयोध्या मानी जाती थी वह इंडोनेशिया की भूमि से त्रिभुवन को राम जन्म की बधाई देते हुए आज की कथा को अभिराम दिया गया।।