Homeगुजरातमानस समुद्राभिषेक।। कथा क्रमांक-९४१ दिन-९ दिनांक-२५ अगस्त'२४

मानस समुद्राभिषेक।। कथा क्रमांक-९४१ दिन-९ दिनांक-२५ अगस्त’२४

९४१वीं रामकथा का संवेदनापूर्ण विराम।९४२वीं रामकथा ७ सितंबर से इलोरा गुफा औरंगाबाद (महाराष्ट्र) से प्रवाहित होगी।।

ताड़का क्रोध है,क्रोध को बोध रूपी राम ही मार सकते हैं।।

अत्रि राम को बोध का विग्रह कहते हैं,वाल्मीकि जी राम को चिदानंद का शरीर और तुलसीदास जी कृपा का शरीर कहते हैं।।

मंथरा लोभ है,लोभ पर शत्रुघ्न रूपी मौनी पुरुष प्रहार कर सकता है।।

काम सूर्पणखा है,कामना पर जागृत पुरुष लक्ष्मण प्रहार कर सकता है।।

संदेह मिटाने के लिए शास्त्रप्रमाण,अनुमान प्रमाण और साधु का भजन प्रमाण जरूरी है।।

बीज पंक्ति

छबिसमुद्र हरि रूप बिलोकी।

एकटक रहे नयन पट रोकी।।

-बालकॉंड दोहा १४८

बिप्र जवॉंइ देहि दीन दाना।

सिव अभिषेक करहिं बिधि नाना।।

-अयोध्या कॉंड दोहा १५७

इन्ही बीज पंक्तियों का गान करके कथा के बाकी प्रसंगो पर विहंगावलोकन से पहले बापू ने मनोरथी परिवार के सभी प्रकार के आयोजन और सब सेवा की प्रसन्नता व्यक्त करके कहा कि मैं प्रसन्नता से विदा ले रहा हूं।यह समुद्र अभिषेक सफल रहा है।। समास के रूप में और संक्षिप्त गान करते हुए सीताराम जी के विवाह के बाद कल बालकांड का समापन हुआ था।।कागभुशुंडी के न्याय से

बालचरित कहीं बिबिध बिधि,मनमहूं परम उछाह

रिषि आगमन कहे सी पुनि,श्री रघुवीर बिवाह।।

राम का राज्याभिषेक प्रसंग गाते हुए राम का वन गमन और राम और लक्ष्मण का संवाद हुआ।शृंगबेरपुर में एक रात्रि रुके। केवट के अनुराग की कथा के बाद सुरसरि गंगा पार करके प्रयाग आए।। वाल्मीकि जी को मिलकर चित्रकूट में निवास हुआ। वहां दशरथ का देहांत हुआ।भरत जी को अनर्थ और अपशगुन हुए,वहां भारत ने शिव अभिषेक करवाया।अयोध्या से दूतों को यह कहकर की भरत को राम वनवास और दशरथ का स्वर्गवास के बारे में ना बताएं,दूत भेजे गए।।भरत शत्रुघ्न वायु वेग से अयोध्या पहुंचे।।राम की दिनचर्या को जानते हुए भरत,राम कैकई के पास होंगे वह सोच कर पहले कैकयी के भवन में गए।पूरी अयोध्या में दो ही व्यक्ति प्रसन्न थी-कैकयी और मंथरा। मंथरा को सजी-धजी देखकर शत्रुघ्न ने प्रहार किया। रामचरितमानस में तीनों भाइयों ने तीन स्त्रियों पर प्रहार किया है।ताड़का पर राम ने प्रहार किया। ताड़का क्रोध है,क्रोध को बोध रूपी राम ही मार सकते हैं।।राम बोध का शरीर है। अत्रि राम को बोध का विग्रह कहते हैं। वाल्मीकि जी राम को चिदानंद का शरीर और तुलसीदास जी कृपा का शरीर कहते हैं।

मंथरा लोभ है,लोभ पर शत्रुघ्न रूपी मौनी पुरुष प्रहार कर सकता है।। और लोभ को मारा नहीं जा सकता, जीवन में थोड़ा लोभ जरूरी है, दूर करना होगा।।काम सूर्पणखा है, कामना पर जागृत पुरुष लक्ष्मण प्रहार कर सकता है।।

फिर चित्रकूट में भरत मिलन प्रसंग में भरत को पादुका दी गई।अयोध्या कांड का समापन हुआ।। पंचवटी में लक्ष्मण की पांच जिज्ञासा को राम ने जवाब दिए। माया सीता का हरण हुआ। सीता खोज और जटायु को गति देकर प्रबंध और शबरी के पास नवधा भक्ति का गान हुआ।। नारद के साथ संवाद के बाद अरण्यकांड का समापन हुआ।। किष्किंधा कांड में सुग्रीव और हनुमान जी से मैत्री हुई। हनुमान जी का लंका गमन, सीता जी से मिलकर लंका दहन करके मॉं से चूड़ामणि लेकर वापस आए और सुंदरकांड के समापन के बाद लंका कांड में सेतुबंध रामेश्वर का स्थापन हुआ।। राम ने लंका के त्रिकूट पर डेरा लगाए। समाज को एक दूसरे को जोड़ना सेतु बंध है। राम रावण के भीषण युद्ध का वर्णन हुआ। रावण की आत्मा राम में लीन हुई रावण निर्वाण के बाद विभीषण को राज देकर सीताराम अयोध्या आए।।उत्तरकॉंड में राम का राजतिलक हुआ।।

बापू ने कहा संशय,वहम और संदेह तीन प्रकार से होता है: देख कर संशय होता है। भगवान राम को रण मैदान में बंधे हुए देखकर गरुड़ को संदेह हुआ। पार्वती को राम की नर लीला देखकर संदेह हुआ मंथरा की बात सुनकर कैकयी को संदेह हुआ और खुद के स्वभाव से भी संदेह होता है।।भवानी का नारी स्वभाव संदेह करवाता है।। संदेह मिटाने के लिए शास्त्रप्रमाण,अनुमान प्रमाण और साधु का भजन प्रमाण जरूरी है।।

राम केवल किसी एक व्यक्ति के कहने पर सीता त्याग नहीं करते हैं।तुलसीदास के अन्य ग्रंथ देखकर तय होता है कि यह नर लीला में परस्पर की सहमती है।।

सभी वक्ताओं ने अपनी भूमिका से कथा को विराम दिया बापू ने विराम देते वक्त उपसंहार सूत्र बताते हुए कहा कि मानस स्वयं समुद्र है। हमारा हृदय भी समुद्र है।जैसे समुद्र से १६ रत्न दिखाएं। वह सब रामचरितमानस में है: विषम परिस्थिति रूपी विष, जो मॉं कैकई ने पिया। चंद्रमा मुनि,भगवती लक्ष्मी है।परिवार की महक रूपी पारिजात है। मदिरा का वर्णन है।काम दुर्गा गाय भी दिखती है। दशरथ रूपी वडील कल्पतरु है।राम का विवेक से चलना ऐरावत हाथी है। सुमंत के घोड़े उच्चश्रवा है। रामायण सबसे बड़ा आरोग्य धनवंतरी है।भक्ति रूपी मणि है। शंखनाद रूपी शंख है और अप्सराओं का वर्णन वो रंभा है।नामामृत और कथामृत का अमृत है।।

ऐसे ही हृदय रूपी समुद्र में भी द्वेष रूपी विष, मन का चंद्र और उदारता रूपी लक्ष्मी है। विवेक का एरावत और बेताबी उच्चश्रवा है। रुद्र शब्द औषधि है।भक्ति रूपी मणि और आत्मा की आवाज पांचजन्य शंख है।। कामना मुक्त कला का सत्कार रंभा है। इर्षा रूपी वारुणी है और प्रेम रूपी अमृत है

ये कथा का सु-फल भगवान महादेव और द्वादश ज्योतिर्लिंग को समर्पित किया और आने वाली कृष्ण जन्माष्टमी की सबको बधाई देकर बापू ने कहा कि अगली कथा इलोरा गुफा में मानस कंदरा पर करेंगे।।

आगामी ९४२वीं रामकथा का ७ सितंबर से एलोरा गुफा औरंगाबाद महाराष्ट्र से आरंभ होगा

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