अपने परमात्मा के चरण में अविरल प्रेम हो जाए तो ना संसार छोड़ने की जरूरत ना सन्यास ग्रहण करने की जरूरत है।।
हर सन्यास संसार से प्रकट होता है,जैसे मॉं की कोख से बच्चा प्रकट होता है।।
संन्यास से ज्यादा मूल्यवान संसार है।।
“लेवल निर्माण करो,लेबल को छोड़ दो”
साधु चलता भला,साधु जागता भला,साधु हंसता भला और साधु भजता भला।।
विश्व प्रसिध्ध एलोरा गुफा के सांनिध्य में बह रही रामकथा के तीसरे दिन बताया कि बाहरी गुफा के सामने बैठे हैं और भीतरी गुफा में प्रवेश करें।।
बापू ने कहा कि हमारा कोई क्लास नहीं एकमात्र कैलाश है।।मन की गुफा भयानक होती है, डरावनी, गंदकी की से भरी हुई,अंधेरे से भरी हुई है। उसे स्वच्छ करने के लिए कोई उपाय है?
बापू ने कहा कि श्रीमद् भगवत गीता में कृष्ण कहते हैं: इंद्रियों में मन मेरी विभूति है। हम क्यों मान बैठे हैं कि यह मन मेरा है! परमात्मा ने विभूति के रूप में मन दिया है तो ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं। और अरण्य कॉंड में वाल्मीकि जी कहते हैं ऐसे हमारे मन में प्रभु आप निवास करो।। तो दोषदर्शन नहीं करें, शुद्धि का उपाय, शायद एक उपाय है: बापू ने कहा कि एक छोटी सी किताब ‘सूफियों की पुरानी कहानी’-उसमें ऐसी एक बात लिखी है:एक आदमी अपने पर अपने मन पर,शरीर पर,अपनी छाया और कदमों पर नफरत करने लगा,धिक्कार ने लगा और खुद से इतना बेवफा होने लगा।।छाया से नफरत हो गई। मेरे कदमों के निशान भी ना रहे। एक असाधु मिल गया।।
बापू ने उस वक्त बताया कि जगत में चार प्रकार के साधु है:असाधु, साधु, सबबिधि साधु और परम साधु है।।असाधु अच्छा नहीं लेकिन साधु शब्द वहां जुड़ा है।।
अपने परमात्मा के चरण में अविरल प्रेम हो जाए तो ना संसार छोड़ने की जरूरत ना सन्यास ग्रहण करने की जरूरत है।।
हर सन्यास संसार से प्रकट होता है,जैसे मॉं की कोख से बच्चा प्रकट होता है। इसलिए बच्चों से मॉं ज्यादा महिमावंत है। संन्यास से ज्यादा मूल्यवान संसार है।।
बापू ने कहा कि आधार क्या है? चैतन्य महाप्रभु जी का प्रसंग है। महाप्रभु जी ने नित्यानंद से कहा तो गौड देश चला जा।वो स्तब्ध हुआ आप दूर क्यों भेजते हो? गदाधर को भी कहा आप भी साथ जाओ, कृष्ण प्रेम की गंगा बहावो, सब चुपचाप शून्य मनुष्यक खड़े हैं।फिर महाप्रभु जी ने कहा श्रीनिवास में तेरे घर अचानक आऊंगा और महामंत्र पर नृत्य करूंगा। लेकिन लोगों को इकट्ठा मत करना जगन्नाथ भगवान का यह उपवस्त्र और चावल का दोना लेकर मेरी मॉं के पास जाओ। मैंने मेरी मॉं का अपराध किया है। कैसे? क्योंकि मेरी फर्ज, मेरा कर्तव्य मेरी मॉं की सेवा करने का था, वह चूक कर मैंने सन्यास ग्रहण किया।।
बापू ने कहा यह संन्यास की आलोचना,उपेक्षा नहीं है। एक सिक्के के दो पहलू है। इधर सन्यास उधर संसार।। मॉं रोती रही,विष्णु प्रिया रोती रही,वो चैतन्य की पीड़ा है। और मॉं से कहा मैं दूर नहीं जाऊंगा। कभी-कभी दर्शन पर आऊंगा। कृष्ण चरण में अगाध अपरिमित प्रेम था तो मुझे परिवर्तन की कोई जरूरत नहीं थी।।
बापू ने कहा एक लेवल निर्माण करो लेबल को छोड़ दो।। यह भी बताया साधु चलता भला।। साधु जागता भला, साधु हंसता भला और साधु भजता भला।।
असाधु ने कहा तेरी छाया से तेरी गति कम है तो छाया से बचने के लिए किसी वृक्ष की छांव में, साधु की छांव में बैठ जा।।मन की तमाम गंदकी खत्म हो जाएगी, एकमात्र उपाय है मन को दोष न दो। मन विभूति है। कोई बुद्ध पुरुष की छाया में बैठ जाओ हर गंदगी मिट जाएगी।।
बापू को पूछा गया की कथा क्या है? बापू ने कहा कथा सरिता है। गंगा है। और नदी प्रवाही मंदिर है। दूसरी गुफा बुद्धि की है। बुद्धि की गुफा स्वयंप्रभा की गुफा है।।प्रतिष्ठित प्रज्ञा, साक्षात गायत्री स्वयंप्रभा है। स्वयं प्रभा का मतलब पूरा वाल्मीकिय रामायण जो 24000 श्लोक का है।पूरा गायत्री मंत्र भी है।।
बापू ने कहा कि तंत्र विद्या है लेकिन हमारी इसमें रुचि नहीं। तंत्र में नहीं मंत्र में जाओ।। आजकल कृष्ण को भी जबरदस्ती तंत्र में खींचने की कोशिश हो रही है।।कृष्ण शुद्ध प्रेम है,भक्ति है।। हरी भजो हरी नाम में बहुत ताकत है। हनुमान जी को भी लोग तंत्र से जोड़ते हैं।। मैंने बहुत साफ सुफी करने की भी कोशिश की है।।गीताजी में कहा है तो बुद्धि की शरण में जा।। बुद्धि के तीन स्तर है: सात्विक बुद्धि जो है उनके 8 वस्तु जो समझे वह बुद्धि सात्विक है प्रवृत्ति-निवृत्ति, कार्य-अकार्य, बंधन-मुक्ति, भय-अभय।।
जो बुद्धि धर्म और अधर्म को यथार्थ नहीं समझ पाती वह राजसी बुद्धि है।।अधर्म को भी धर्म मानने वाली तमाम वस्तु का विपरीत अर्थ करने वाली बुद्धि तामसी बुद्धि है।।