चित् और चोट का निकट का संबंध है।।
चित् को चोट जल्दी लग जाती है।।
निद्रा और निंदा कम हो जाए तो साधु चित प्राप्त हो जाता है।।
रात की निंद्रा और दिन की निंदा कम हो जाए ऐसा करो।।
महाराष्ट्र की एलोरा गुफा के सानिद्धय में बह रही रामकथा के सातवें दिन पावन भूमि को प्रणाम करते हुए बापू ने कहा कि हमने मन बुद्धि और चित्त की कंदरा की संवादी कथा का गायन किया।।आज एक मंत्र बापू ने बताया जिसमें चित् के बारे में बहुत बड़ा प्रकाश डाला गया है:
लक्ष्यच्युतं चेत यदि चित्तभिषक बहिर्मुखं सन्निपेतत् ततस्थतत: प्रमाद: प्रच्युत
केलिकंदुक: सौपानपंक्कौ पतितो यथा तथा
चित्त जब लक्ष्य चूक जाता है तब उसका पतन होता है।। कैसे होता है?जैसे कोई सीडी के ऊपर बालक गेंद से खेल रहा होता है और बालक के हाथ से गेंद छूट जाती है तो सीधी के एक-एक पायदान पर नीचे ही गिरती जाती है। ऐसे चित् भी फिर गिरता ही जाता है।।
बापू ने कहा कि मन और बुद्धि में फर्क है। मन का मूलतः स्वभाव निरंतर संकल्प विकल्प है। बुद्धि निर्णय करती है और चित का अर्थ है चिंतन करता है। चित् लक्ष्य भी और अलक्ष्य भी है। चित् खींच लेता है। ग्रहण करता है।संग्रह करता है।। मन और बुद्धि ना संभले तो चिंता ना करना। लेकिन चित् का ध्यान रखना क्योंकि वहां परमात्मा रहते हैं।। इसलिए साधकों को चित् का बहुत संभाल कर ध्यान रखना चाहिए।। कैसे ध्यान रखें?
साधु का चित् सामान और अति सरल होता है।। साधु चित आप पर जल्दी भरोसा कर लेता है। तो अपने चित् को साधु चित् बनाना है तो शंकराचार्य जी के छे सूत्र जो कभी मैंने बताए हैं।। चित् और चोट का निकट का संबंध है।। चित् को चोट जल्दी लग जाती है।। शंकराचार्य जी कहते हैं:
हितपरिमितभौजी:
शरीर का अनुकूल हो ऐसा सीमित भोजन करें।।
नित्यमेकांत सेवी:
एकांत में रहने का अभ्यास करें। नियमित मौन की गुफा में चले जाओ।। हम बहुत भीड़ में जी रहे हैं। १० मिनट अकेले हो जाओ।। मैं आपको कितना मिलता हूं लेकिन अपने एकांत को बरकरार रखकर मिलता हूं।।
सकृतहितौक्ति:
एक बार सामने वाले के हित की बात बोलकर यदि वह न माने तो क्रोध भी मत करो। नाराज भी ना हो।।
स्वल्पद्राविहारौ:
निद्रा और निंदा कम हो जाए तो साधु चित प्राप्त हो जाता है।। रात की निंद्रा और दिन की निंदा कम हो जाए ऐसा करो।। साधु एक प्रहर ही आराम करता है।।
अनुनियमनशिलौ:
एक शील बनाओ, नियम बनाओ फिर पाठ ध्यान आदि करो।।
भजत्युक्तकालै:
युक्त समय अनुकूल समय देखकर भजन करो। ऐसा करने से,
स लभतम शिघ्रम साधु चित् प्रसादम।
साधुचित को शीघ्र ही पाता है।।
फिर बापू ने यहां शरद ऋतु और वर्षा ऋतु का वर्णन करती हुई बहुत पंक्तियां तुलसी जी ने लिखी है।। जहां पंक्ति के आधे भाग में वर्णन है और फिर आधे भाग में बोध देती हुई रुत का वर्णन अद्भुत रूप से किया है।।
सभी का गान करवाया।।
बापू ने यह भी कहा कि पाखंड करने वाले अपने अलग मार्ग को रखकर विष्णु की निंदा करते हैं और इतने पाखंडी लोग विद्वानों को रोक कर हमारे वैदिक ग्रंथो में क्षेपक भी डालते हैं।। बापू ने कहा कि हम आपके ग्रंथ को छूते तक नहीं, लेकिन यह सब पृथ्वी पर का घास है जो शीघ्र ही निकल जाएगा।।
मोह रूपी घनघोर अंधेरे से ईर्ष्या द्वेष निंदा क्रोध प्रतिशोध सब आते हैं। मोह के खत्म होने पर सब नष्ट हो जाते हैं।।
कथा प्रवाह में जनकपुर में सीता की पुष्प वाटिका और फिर राम ने शिव का धनुष से तोडा।। चारों भाइयों का विवाह प्रसंग के बाद बहुत दिनों तक जनकपुर में सब रुके और फिर सभी कन्याओं के विदाई का कन्या विदाय का प्रसंग बापू ने संवादी रूप से करूण भाव से गान किया।।