वह जगतगुरु भी है पूर्ण पुरुषोत्तम है।।
साधुओं का परित्राण पूर्ण साधु ही कर सकता है।
आचार्य कौन है?
जो परमात्मा की सगुन लीला में अनुरागी है वह अति बड़भागी है।।
राजनीति से अधिक राष्ट्र प्रीति जिसे हो वह बड़भागी है।।
मार्वेला-स्पेन की भूमि से चल रही रामकथा के सातवें दिन बहुत सी बातें पूछी गई। किसी ने पूछा था कि अहल्या का उद्धार हुआ फिर शीला कहां गई? वैसे केवट संकेत करता है की प्रभु के चरण की रज का स्पर्श होने के बाद शीला नारी बन गई।शीला में से अहल्या प्रकट हुई।। लेकिन एक तर्क है जैसे राम कौशल्या के भवन में प्रकट हुए।अयोध्या में प्रकट हुए।तो प्रगट होने के बाद भवन भी है। अवध भी है वहां है।।जब शीला में से अहल्या प्रगटी राम और लक्ष्मण संवाद करते हैं और विश्वामित्र मौन खड़े हैं।
बहुत साल पहले यह संवाद मैंने किया था जब अहल्या के बारे में कोई यह स्थापित न करें की नासमझ लोग पीछे से निंदा करेंगे। इसलिए निंदा का मुद्दा ही खत्म करने के लिए लक्ष्मण एक तर्क करते हैं कि इंद्र के पास वज्र मांगते हैं। वज्र का शीला पर प्रयोग करें और शीला चूर-चूर हो जाए। लेकिन राम कहते हैं कि जिस इंद्र के कारण सब कुछ हुआ है इस इंद्र से वज्र कैसे मांगे! इस वक्त विश्वामित्र ने संकेत किया कि राम आपकी चरण रज मांगी थी लेकिन आपने पैर रखा है! राम ने कहा कि मेरे चरण में वज्र का चिन्ह है और मां कौशल्या ने कहा था यदि कोई महिला मुश्किल में है और किसी कारणवश जड हो जाए इस पैर पर रखना उसकी जड़ता चूर-चूर हो जाएगी।।
बापू ने कहा कि भगवान कृष्ण को हम पूर्णसाधु कह सकते हैं? मेरी व्यक्तिगत जवाब है कृष्ण जैसा पुर्ण साधु कोई नहीं है।वह जगतगुरु भी है पूर्ण पुरुषोत्तम है।।लेकिन साधुओं का परित्राण पूर्ण साधु ही कर सकता है।।
बापू ने कहा जो परमात्मा की सगुन लीला में अनुरागी है वह अति बड़भागी है। राजनीति से अधिक राष्ट्र प्रीति जिसे हो वह बड़भागी है।।
आज आचार्य की स्मृति में बापू ने कहा कि पहले कौन आचार्य हुए ?अभी है और आचार्य होंगे।। लेकिन देव काल में शुक्राचार्य।।दैत्यों के आचार्य थे श्रीमद् भागवत में कपिल आचार्य है।।शुकदेव को शुकाचार्य भी कहे हैं। और बाद में काल बदला फिर शंकराचार्य, माधवाचार्य, निंबार्काचार्य, वल्लभाचार्य रामानुजाचार्य, रामानंदाचार्य की पूरी परंपरा आई और बाद में काल बीतकर प्रज्ञावन पुरुष विनोबा जी आचार्य कहलाते थे।। ओशो रजनीश आचार्य थे राजकीय क्षेत्र में आचार्य कृपलानी आए।।
बापू ने अपने आचार्य को भी याद करते हुए बताया कि महर्षी रमन का सत्संग वार्तालाप चलता था वहां से आचार्य के १० लक्षण मिलते हैं।
जो व्यक्ति पहले अपने जीवन में आचरण में डालें फिर हमें आचार कराये वह आचार्य है।। जो आलस से मुक्त है वह आचार्य है।। जो आदर की अपेक्षा न रखें और आपातकाल में हमारे साथ खड़े हो वह आचार्य है।।आकंठ हरिरस पिता हो वह आचार्य है। आविर्भाव होता हो वह आचार्य है।। जो हमारा आवरण हटाए और आत्मबोध कराए।। हमें आत्म आलिंगन दे और आत्मासात करें हो आचार्य है।।