पाठ भेद देखे बिना बहुत से लोग रामचरितमानस को गंदी आलोचना करते हैं:
वो विवादित मानते है वो चौपाइ पर बापु का साधुमुख से सही अर्थ बताया गया।।
ज्ञान को भक्ति पुश करती है,इल्म को इश्क पूश करता है।।
मैं केवल पंचाक्षरीहूं:मोरारिबापू।।
मार्वेला स्पेन से चल रही रामकथा के आंठवे दिन कुछ बातें पूछी गई थी एक श्रोता ने पूछा था मैं 35 साल का मानस वाटिका का फ्लावर हूं।। मैं क्षत्रिय हूं।गुरु कृपा से हृदय में साधुभाव उतारा है। मैं साधु नहीं,लेकिन साधु का आश्रित हूं, यह आनंद है।। कभी स्वभाव आ जाता है तब डर लगता है कि मेरे कारण मेरे साधू को कहीं दाग न लग जाए!
बापू ने कहा कि मेरा एक पुराना निवेदन है:जगत की यह जो वर्ण व्यवस्था है वह गुण और कर्म के विभाग से स्थापित की गई है, जन्म से नहीं।। टंकारा के दयानंद सरस्वती और साधकों के बीच हुई प्रश्नोत्तरी में पूछा गया था तब दयानंद जी ने कहा था कि यह जो भेद है कीटक, वृक्ष, पर्वत, जल, भृंग, मनुष्य आदि आदि जाती- वह परमात्मा ने बनाई है लेकिन यह जगत बनाया है। वहां गुण कर्म के द्वारा हम लोगों ने व्यवस्था की गई है।। लेकिन जगत में अब साधु ब्राह्मण,साधु वैश्य,साधु क्षत्रिय,साधु सेवक होना चाहिए।।
बापू ने आज पुरानी चौपाई को लेकर जो बहुत विवाद खड़े करते हैं उनके बारे में बताया कि शास्त्र एक अनुस्वार, एक ही शब्द एक ही भूल, एक क्षण की भूल से सदियों तक जमाने को शूल की तरह खटकती है।।
बापू ने कहा कि एक चौपाई को बार-बार रखा जाता है:
ढोल गंवार शूद्र पशु नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी।।
लेकिन यह देखना चाहिए यह बोला कौन है? यह समुद्र बोला है, ऐसा आदमी जिसे कुछ पता ही नहीं। जो बोलता है उनका भी देखना चाहिए। पानी बहुत है लेकिन पीने लायक नहीं।
बापू ने कहा कि मोर का स्वभाव बोलने से मीठा लगता है लेकिन मोर का आहार सांप है:
तन विचित्र कायर बचन,अहि आहार चित् घोर।
जब प्रभु भये पक्ष धर तब भया यह मोर।।
ऐसा समुद्र जहां राम ने सात प्रस्ताव रखे। लेकिन समुद्र माना नहीं।। पहले राम ने विनय किया,फिर प्रीत का प्रस्ताव रखा,नीतिशास्त्र रखा,ज्ञान की बात की,वैराग्य का प्रस्ताव रखा,शांति की बात की,हरि कथा की-लेकिन समुद्र माना नहीं।यहां जो पाठ है वह ‘ताड़न’- शिक्षा देना है। शिक्षित करना है।। ‘ताड़ना’ और ‘ताड़न’ में अंतर है।। 500 साल पहले तुलसी जी ने शिक्षा देने का काम किया था।। बापू ने कहा कि मैं जिस रामचरितमानस से मेरे दादा के मुख से सीखा हूं यहां यह पाठ है ही नहीं। वहां है: ढोल गंवार शूद्र पशु नारी।
सकल ताड़न के अधिकारी।।
वहां ‘ताड़ना’ नहीं है।। 300 साल पहले की पोथी जो हस्तलिखित है। और खेमराज वेंकटेश प्रेस की पोथी थी। अब हमारे पास है वह गीता प्रेस गोरखपुर से छपी पोथी है।। लेकिन पाठ भेद देखे बिना बहुत से लोग रामचरितमानस को गंदी आलोचना करते हैं।। ताड़ना भाषा का शब्द है, ताड़न संस्कृत शब्द है तुलसी जी ने दोनों भाषा का संगम किया है।। ताड़ना का स्पष्ट अर्थ है: फटकारना, मारना।। लेकिन टाडन का अर्थ है-शिक्षा देना,पढाना,अनपढ़ नहीं रखना।। ढोल को शिक्षित करें। ढोल को तैयार करते हैं। गंवार-अनपढ़ को पढ़ाते हैं। शिक्षा का यह वैश्विक संदेश दिया है।सेवक को भी विद्या अभ्यास करवाते हैं। पशु को भी हम शिक्षित करते हैं।साधु मुख से सुने बगैर निंदा होती है। लेकिन तुलसी ने उस वक्त शिक्षण जब नहीं था तब एक क्रांति की थी यह बात हमें देखनी चाहिए।।
लेकिन
लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई है!
मैं तुलसी की वकालत नहीं करता। तुलसी को वकालत की कोई जरूरत नहीं।
फिर बापू ने कहा भारत में वर्ण व्यवस्था है, वर्णभेद नहीं है।। गुण कर्म का विभाग जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं। रत्नावली बहुत पढ़ी-लिखी विदुषी थी और तुलसी काल में तुलसी जी को भी उसने शिक्षित करने की बात की थी।। यदि मेरी व्यास पीठ को दक्षिणा देनी है सबका स्वीकार करो, केवल आदमी ही नहीं स्थिति आए हैं वह भी स्वीकारो।।
क्षत्रिय का धर्म है शौर्य धैर्य और विनम्रता।। युद्ध में राम अपने विनम्रता दिखाते हुए घायल हुए रावण को युद्ध रोककर विनय करते हैं। कोई साधु स्त्री की निंदा कर सकता है? निंदक साधु ही नहीं हो सकता किसी ने लिखा है हर कथा के बाद अमूल्य प्रसाद मिलता है:अगली कथा का इंतजार। जिसे हम जुरापा कहते हैं।शबरी और राधा दोनों ऐसे जूरते हैं। राधा को मिल गया तो वहां चीख है शबरी को मिला ही नहीं! विरह में परमात्मा तीन प्रकार से अतिथि होकर आते हैं: सपने में मन का अतिथि, फिर गुरु को देखते हैं वह नयन का अतिथि और गुरु के रूप में हमारे भवन का अतिथि बनते हैं।।किसी ने कहा आश्रित अपने सद्गुरु के पास होता है कि सद्गुरु आश्रित के पास होता है? बापू ने कहा हमारी औकात नहीं। सद्गुरु ही आश्रित के पास होता है। हमारा शरीर एक परिवार है: आंख मॉं से मिलती है। आवाज बाप की है। पीठ पत्नी से मिलती है। पुरुष को जब-जब मुश्किल पड़ी पीठ बल नारी ने दिया है नारी लीड करने कूदती नहीं लेकिन पुश करती है ज्ञान को भक्ति पुश करती है। इल्म को इश्क पूश करता है।। पैर हमारा पुत्र है जो गति प्रदान करता है रक्षा बहन है। हृदय गुरु से मिलता है। और हाथ भाई से।।
बापू ने कहा कि मैं आचार्य नहीं मुझे कोई विशेषण नहीं चाहिए मैं केवल पंचाक्षरीहूं:मोरारिबापू।।
ब्रह्म सूत्र मेरा सत्य है। उपनिषद मेरा प्रेम और भगवत गीता करुणा है।।
फिर भूसुंडी के न्याय से संक्षिप्त कथा गायन में विवाह के बाद अति सुख के बाद वन गमन का दुखद प्रसंग और दशरथ का निधन हुआ। महाराज छह बार राम बोलकर विदा हुए। भरत मिलाप में राम ने आधार के लिए पादूका प्रदान की और बाद में सीता हरण का प्रसंग और जटायु का बलिदान। सीता खोज पर गिद्ध की उत्तर क्रिया के बाद शबरी के पास आए।अंगद संधि का प्रस्ताव लेकर गया विफल हुआ और भयानक राम-राम रावण युद्ध के बाद रावण का निर्वाण हुआ और राम राज्याभिषेक की कथा कहकर बापू ने बताया कि कल इस कथा का आखिरी दिन है और कल सुबह स्थानिक समय 8:00 बजे कथा शुरू होगी।।