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रामचरित मानस को विश्व की धरोहर में सामेलकिये जाने पर बापु ने युनेस्को को प्रसन्नता और बधाइ पेश की।।

रामचरितमानस त्रिभुवन की धरोहर है।।

“अवसर का औचित्य समझो लेकिन अवसरवादी मत बनो”

साधु के घर में श्रद्धा के रूप में और खानदान के घर में लज्जा के रूप में महालक्ष्मी निवास करती है।।

कर्णाटक के गोकर्ण की पवित्र भूमि से चल रही रामकथा के सातवें दिन कथा के आरंभ में एक अच्छी ख़बर बताते हुए बापू ने कहा कि यूनेस्को ने घोषणा की है कि रामचरितमानस विश्व की धरोहर में शामिल किया जाता है।।कुछ ग्रंथ को विश्व की धरोहर घोषित की गई और इसमें रामचरितमानस भी शामिल किया है।।

बापू ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि यदि तलगाजरडा को पूछो तो वह कहेगा कि रामचरितमानस त्रिभुवन की धरोहर है।।

सकल लोक जग पावनी गंगा है। और रामकथा के गायक के रूप में अपनी प्रसन्नता के साथ बापू ने कहा कि रामचरितमानस को दिए गए आदर बदल सभी को बधाई देता हूं।।

बापू ने कहा कि सत्य में सभी तथ्य छिपा हुआ होता है,लेकिन हर एक तथ्य में सत्य ना भी हो!

सत्य पंचमुखी होता है।। सत्य एक है मुख पांच है। क्योंकि सत्य शिव है और शिव के पांच मुख है।

बापू ने यह भी कहा कि पांच वस्तुओं का औचित्य संभालना चाहिए।।एक है-अवसर का औचित्य। अवसर का औचित्य समझो लेकिन अवसरवादी मत बनो।।

नल कुबेर की कहानी बताते हुए बापू ने कहा कि नल कुबेर का गढ़ अभेद किल्ला था। वहां रावण को प्रवेश करना था लेकिन संभव नहीं हो पा रहा था।। और विभीषण आदि सैनीको को लेकर नल कुबेर के किले पर रावण ने हमला किया।। फिर भी अंदर नहीं जा पा रहा था।। सोच रहा था कि कैसे अंदर जाऊं।रावण की विद्या कला और पराक्रम के बारे में नल कुबेर की पत्नी आकर्षित थी और रावण को जानती थी।।लेकिन रावण को देखे बिना आकर्षण हुआ तो रावण को मिलना चाहती थी।। संदेश भेजा और यहां रावण शीलवान दिखता है।। रावण ने अवसर का औचित्य पकड़ा है।।बार-बार संदेश भेजते हैं और वह खुद गुप्त मार्ग जानती थी वहां से दासियों को लेकर रावण से मिलने आती है।। इस वक्त विभिषण रावण के कान में कहते हैं कि यदि अंदर आने का मार्ग खोल दे तो ही आप बात करना और नल कुबेर की पत्नी ने मार्ग खोल दिया।। रावण ने कहा कि आपने मुझे मार्ग दिखाया है तो आप मेरी गुरु है और गुरु के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए।। यह है रावण का अवसर का औचित्य।।

वैसे ही काल का औचित्य, समय का औचित्य और देश प्रदेश और स्थान का भी औचित्य होना चाहिए।।

पंचमुखी सत्य में विचार का सत्य,उच्चार का सत्य, आचार का सत्य,स्विकार का सत्य और साक्षात्कार का सत्य है।। सत्य के यह पांच मुख और प्रेम के छह लक्षण है करुणा के सात अंग है सभी को मिलाकर पुर्णांक-होते हैं।।

बापू ने कहा आज बात करनी है कालिका की जीभ की।। भगवती कालिका की जीभ क्या है? जीभ के तीन रंग होते हैं।यद्यपि कालिका की जीभ लाल है सरस्वती की जीभ श्वेत है। सरस्वती का सब कुछ श्वेत है:वस्त्र,वर्ण,शब्द, श्वेत, धवल, निर्मल और विर्मलहै।।और लक्ष्मी की जीभ हरी है।। लक्ष्मी आदमी को हरा भरा कर देती है।। लाल रंग प्रेम का है।कालिका की जीभ बहुत बाहर निकली है जीभ दो काम करती है: स्वच्छ करने का, बोलने और स्वाद लेने का।। इसलिए दांत और होंठ के किल्ले में बंद रखी है।। मां कहती है मेरी प्रेम की जीभ इतनी बढ़ाउं की सबको स्वच्छ कर लुं और सबको प्रेम का स्वाद चखाउं।। मां सरस्वती सफेद,धवल है। महालक्ष्मी हरा भरा कर देती है।।पुण्यात्माओं के घर लक्ष्मी के रूप में रहती है। पापियों के घर अलक्ष्मी के रूप में। हृदय वालों के पास बुद्धि के रूप में।साधु के घर में श्रद्धा के रूप में और खानदान के घर में लज्जा के रूप में महालक्ष्मी निवास करती है।। कालिका के गले में मुंड माल है।वह मुंड की संख्या नव है। लेकिन चित्र में अलग-अलग दिखाई जाती है वहां एक चंड का मस्तक, एक मुंड की खोपड़ी है। असुरों को मार कर भी हृदय के पास रखती है। एक शुंभ है और एक निशुंभ है और बाद पांच मस्तक महिषासुर के है।। वैसे ये नवमुंडधारिणी है।। मानस भी कालिका है तो वहां मुंड माल क्या है, जीभ कौन सी है, मानस का खप्पर क्या है, खड़क क्या है वो संवाद आए दिन करेंगे।।

बुद्ध पुरुष की आठ भुजा भी बापू ने बताई। कौशल्या माता ने भरत के आठ लक्षण कहे:वो शील,गुण,विनय,नम्रता की ऊंचाई,भाईचारा,भक्ति और भरोसे से भरा हुआ है।।

बापू ने कहा कि जो पवित्र करें वह चरित्र तो रामचरित्र के गान में राम जन्म के बाद पूरी अयोध्या में एक महीने तक अवसर चला।। मानो एक महीने तक सूर्य अस्त नहीं हुआ।। फिर नामकरण संस्कार और विद्या संस्कार के बाद चारों भाइयों घर आए।। और विश्वामित्र अपने यज्ञ की रक्षा के लिए अयोध्या में आए और राम और लक्ष्मण को लेकर जाते हैं।। रास्ते में ताडका को राम ने एक ही बाण से निर्वाण दिया और अपनी लीला का आरंभ किया। बीच में अहल्या उद्धार का प्रसंग और जनकपुर में जाने के बाद शिव धनुष्य को चढ़ाकर राम और सीता का विवाह हुआ फिर चारों भाइयों का विवाह का भी अति संक्षिप्त प्रसंग का संवाद करते हुए बापू ने कहा कि आखिर में विश्वामित्र अयोध्या से फिर लौटते हैं और वहां बालकांड का समापन होता है।।

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