९४५ वीं रामकथा का नाद तलगाजरडी वायुमंडल, त्रिभुवनीय भूमि,काकिडी(महूवा-गुजरात) से १९ ऑक्टोबर से गुंजेगा।।
कथा मॉं है,माता है,कथा मात्र जीवन है।।
कथा स्वयं जप है ।।
बापु ने दिया भाथा-संबल टिफीन
कलि पन्नग भरणी और विवेक रूपी अग्नि प्रकट करने वाली अरणी मंथन है।।
कथा कामदुर्गा और गौ माता है।।
सज्जनों को जीवन दान देने की जीवन मूड़ी है।। पृथ्वी पर सुधा तरंगिणी है और मन के भ्रम रूपी मेंढक को खाने वाली भुजंगिनी है।।
आसुरी वृत्ति के समूहों को खत्म करने वाली निकंदिनी है।।
साधु के देवकूल को कष्ट होने पर कल्याण करने वाली गिरीनंदिनी है।।
महामोहुमहिषेसुबिसाला।
रामकथा कालिका कराला।।
रामकथा ससि किरन समाना।
संत चकोर करहिंजेहिं पाना।।
-बालकॉंड दोहा-४७
इन्हीं इन्हीं बी पंक्तियों के साथ आत्मलिंग शिव,देवी भद्रकाली और गोकर्ण की भूमि को प्रणाम करते हुए बापू ने विराम के दिन पूरे आयोजन के लिए मनोरथी राजू भाई परिवार और समग्र टीम और सभी की ओर अपनी प्रसन्नता रखते हुए कहा कि सबसे बड़ा काम यह हुआ की मनोरथी परिहार परिवार द्वारा किसी का अपमान नहीं हुआ।।सब मंगल,शुभ और आनंददाईरहा।बापू ने अपनी बार-बार प्रसन्नता व्यक्त की।।
बापू ने कहा भगवान राम की कथा कालिका है।। हमें चरण चक्षु से कितना देख सकते हैं?गीताकार कहते हैं कि तेरी चर्म दृष्टि मुझे सारथि रूप में देखती है लेकिन विशेष देखना है तो दिव्य दृष्टि से देख! ऐसे अध्यात्म दृष्टि चाहिए।जो ज्ञान और वैराग्य की आंख है।।भगवान राम अखंड शाश्वत ज्ञान है,लक्ष्मण अखंड वैराग्य है।।स्थूल दृष्टि से दशरथ दोनों को पुत्र कहते हैं, लेकिन प्रेम दृष्टि से वही दोनों बालक दशरथ की आंख है।।नर्म दृष्टि से और परम दृष्टि से भी देखना पड़ेगा।।
बहुधा रामकथा को मातृ शरीर माना गया है।।कथामॉं है,कथा मातृ स्वरूप है।। इस न्याय से तुलसी जी कहते हैं।।जगत में परमात्मा देखना एक बात है जगत ही परमात्मा है वह समझना दूसरी बात है।। तुलसी जी श्रोता वक्ता को ज्ञान निधि कहते हैं और लिखते हैं:कथाभावसरिततरिणी- नौका है।।नौका मातृ स्वरूपा है।। बड़े-बड़े जहाज डूबते हैं, नावडी नहीं डूबती।।
राम कथा कलिपन्नगभरनि।
पुनिबिबेकपावककहुअरनि।।
कलि पन्नग भरणी और विवेक रूपी अग्नि प्रकट करने वाली अरणी मंथन है।। कथा काम दुर्गा और गौ माता है।। सज्जनों को जीवन दान देने की जीवन मूड़ी है।। पृथ्वी पर सुधा तरंगिणी है और मन के भ्रम रूपी मेंढक को खाने वाली भुजंगिनी है।।आसुरी वृत्ति के समूहों को खत्म करने वाली निकंदिनीहै। साधु के देवकूल को कष्ट होने पर कल्याण करने वाली गिरीनंदिनीहै।।गिरी नंदिनी दो है: एक पार्वती और एक गंगा।।कथा पार्वती भी है और गंगा भी है। साधु समाज रूपी समंदर की रमा सी लक्ष्मी है पूरे विश्व का भार उठाने वाली अचल धरती रूपी क्षमा सी है।।यमराज के दूतों को मुंह पर काला रंग लगाने वाली यमुना सी है।।
बापू ने कहा कि किसी एक समय कोई इंटरव्यू में पूछा गया था की विविध कालखंड में श्रेष्ठ महापुरुष कौन है? यदि आज के काल में मुझे पूछा जाए तो श्रद्धा और अनुभव से मैं कहूंगा कि त्रिभुवन दादा। क्योंकि मेरी श्रद्धा और अनुभव से मैं यह कह सकता हूं।। ऐसे ही 50 साल में कालखंड में विनोबा जी।100 साल में गांधी जी, 500 साल में तुलसीदास जी और 1000 साल में शंकराचार्य जी और 2500 साल में बुध्ध और महावीर।। 5000 साल में पूर्णावतार कृष्ण है।।वसुधा नई-नई चेतना प्रकट करती है।।फिर आगे जाए तो अनादि काल, सबसे आगे भगवान महादेव।। और उनके आगे कोई नहीं।।
कथा जीवन मुक्ति देने वाली साक्षात काशी है।। राम को तुलसी की तरह प्रिय और तुलसी के हृदय में उछलती हूलसी(तुलसी जी की माता)की तरह है। शिवजी को राम कथा शैल सुता सी और समस्त सिद्धिदात्रीहै।।सद्गुणों रूपी देवताओं की माता अदिति जैसी है।। जिसकी कोई इति नहीं ऐसी प्रेम रूपी भक्ति देने वाली प्रेम परिणीति है।।राम कथा मंदाकिनी है।।कथा माता है,कथा मात्र जीवन है।। गीता के न्याय से भगवदकथा:कीर्ति,श्री,वाणी, स्मृति,मेधा,धृति और क्षमा है।।
जब भी मुश्किल आए राम कथा याद आये,जो भी पन्ना पलटे,कोई एक पंक्ति में समस्या का समाधान और जवाब मिलेगा। बिना पूछे समस्या का जवाब भी मिलता जाएगा। यह भी एक अनुभव बापू ने बताया।।
तो ऐसे रामचरितमानस के बीस और गीता जी के न्याय से सात मातृ रूप मिलाकर 27 मातृ लक्षण कथा के बारे में बताया।।
जगद्गुरु शंकराचार्य जी ने सौंदर्य लहरी में एक मंत्र लिखा: जपो जल्प:…. यह मंत्र पठन करके बापू ने कहा कि दुर्गा पूजा के दिन में शंकराचार्य कहते हैं:
हे मॉं! में बहुत बोला,मेरे यह जल्पवाद को जप समझ लेना।। मेरे बकवास को तुं जप समझ ले।। मैंने जो गुणगान गाये चित्र शिल्प बने वहां कोई त्रुटि हो उसे मेरी मुद्रा समझ लेना।। मेरी गति को आपकी प्रदक्षिणा समझ लेना।।मैंने कुछ खाया वह मेरे पेट के अग्नि की आहुति समझ लेना और थकान लगी और सो गया तो यह मेरा तुझे दंडवत समझ लेना।। मेरा यह विलास है इसे ऐसी दृष्टि से देखना।।
बापू ने कहा कथा स्वयं जप है ।।
काग भूसुंडी और गरुड़ के सात प्रश्न के बाद भज ले राम,गा ले राम और सुन ले राम यह सार सत्य,प्रेम और करुणा के रूप में दिखाकर तुलसी जी ने कथा विराम किया।।सभी घाटों पर बह रही कथा विराम लेती है बापू ने भी प्रसन्नता और गदगद भाव से कथा को विराम देते हुए सुफलप्रेमफलभद्रकाली के चरणों में रखा और कहा की कथा के रस के चार केंद्र है:नाम,रूप,लीला और धाम जो तुलसी जी ने अंतिम छंद में संकेत किया है।।
बापू ने कहा कि हम कहीं जाते हैं तो साथ में संबल भाथा- टिफिन देते हैं।। मैं भी देता हूं, पांच वस्तु है:
१- सुबह में रोज इष्ट दर्शन करो।।चित्र या मूर्ति का जो भी इष्ट हो।।
२-घर के बुजुर्गों की स्मृति और सेवा दर्शन करो।। जीवित है तो सेवा करो ना हो तो स्मरण करो।।
३-अपने गुरु का दर्शन और बुद्ध पुरुष ने दिए हुए शास्त्र का दर्शन करो।।
४-प्रकृति दर्शन,पहाड़,वादियां,नदी,आकाश, ग्राम्य दर्शन,खेतों,पशु-पक्षी का दर्शन करो।।
५-हमारे कर्म का दर्शन करो। धर्म से कर्म तक पांच दर्शन यह हमारे एक के लिए पर्याप्त टिफिन है।।
अगली-क्रम में ९४५ वीं-रामकथा बापु के दादा-गुरु श्री त्रिभुवनदास जी दादा की पावन और पावक भूमि,तलगाजरडीय वायुमंडल में काकिडी से १९ ऑक्टोबर से २७ ऑक्टोबर तक होगी।।
ये रामकथा का जीवंत प्रसारण आस्था टीवी चेनल और संगीतनी दुनिया परिवार यु-ट्युबचेनल एवं चित्रकूटधामतलगाजरडायु-ट्युबचेनल के माध्यम से नियत नियमित भारतीय समय अनुसार सुबह १० बजे से देखा जा सकता है।।