“त्रिभुवन दादा की स्मृति में इन कथा का आरंभ हो रहा है तब विशेष भीगा भाव जाग रहा है।।”
“यह व्यास पीठ रूपी सिंहासन पर त्रिभुवन सॉंइ बैठे हैं मैं केवल उपकरण हूं।कथा मेरा सॉंइ बोल रहा है।।”
अपनी शुद्धि और पवित्रता का भी एक घमंड होता है और वही घमंड कभी किसी को भी दंड देने के लिए हमें प्रेरित करता है।।
अस्तित्व बहुत बरसता है लेकिन हमारे अंतःकरण का रेडियो अशुद्ध है इसलिए स्टेशन पकड़ में आता नहीं है।।
सिंहासन पर त्रिभुवन सॉंइ।
देखि सुरन्ह दुंदुभि बजाइ।।
तारन तरन हरन सब दूषण।
तुलसिदास प्रभु त्रिभुवन भूषण।।
इन्हीं बीज पंक्तियों का गायन करते हुए गुजरात के महुआ के पास जहां बापू का अपना निजी गांव है- तलगजरडा- से चंद कदमों की दूरी पर काकीड़ी में रामकथा के पहले दिन बाप! शब्द कहते ही आंखों से आंसुओं का महासागर उमटा.. और बापू ने कहा त्रिभुवन कृपा से यह कथा का आरंभ होने जा रहा है यह गांव,जहां हर साल कभी १० दिन कभी १५-२० दिन और कभी पूरा सावन मास दादा बैठते थे।। वह त्रिभुवन दादा की स्मृति में इन कथा का आरंभ हो रहा है तब विशेष भीगा भाव जाग रहा है।।
यहां रामजी मंदिर जो पहले पुराना था, वही गांव और मोहन बाबा भगत,ब्रह्मभट्ट,दादा की उम्र के उन्हीं की समझ के आदमी थे।उनका परिवार भी यहां बैठा होगा।त्रिभुवन दादा के साथ मोहन बापा को भी मैंने कभी देखा है ऐसा स्मरण उनके बेटे के बेटे के बेटे को देखकर मुझे हो रहा है! गांव ब्रह्म और भट्ट बने मेरे दादा!!पहले महाभारत की कथा भट्ट कहते थे। हर साल त्रिभुवनदास दादा इतना ज्यादा कहीं नहीं रुके, सेंजल भी नहीं रुके हैं।इसी गांव के प्रति ममता जागी और यहीं रुकते थे और मोहन बापा भगत और गांव के वडीलों ने दादा की बहुत सेवा की होगी।।सच्चे साधु, बापू ने कहा कि ‘सच्चा’ शब्द भी नहीं लगाउं,नखशिख परम साधु की सेवा का यह फल है।। हमारे वैष्णव साधु में सेवक होते हैं लेकिन वहां भी दादा केवल एक दिन रहते थे यह गांव में इतना ज्यादा रूके मैं भी ज्यादा यही नहीं आया।। लेकिन मनोरथी परिवार का टीना सुबह वॉक कर के यहां बार-बार आता था।।टीना को भी इस गांव ने खींचा है। पूरा परिवार मनोरथी बना है उन पर प्रसन्नता का भाव, और गांव जहां सरपंच नहीं है।ऐसे समरस गांव कितना भाग्यवंत है जो दोपहर,सुबह,शाम और रात को दादाजी को खाना भी देते थे। वहां भी बापू ने प्रसन्नता व्यक्त की बापू ने कहा कि सबसे ज्यादा गांव लोगों के प्रति क्योंकि अपने खेत खाली कर दिए और कुछ मांगा भी नहीं! सभी को धन्यवाद और जलाराम बापा वीरपुर उनकी प्रवाही और पवित्र परंपरा में भरत भाई और यहां के चिमन भाई वाघेला की टीम के प्रति भी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बापू ने कहा कि अगले साल इन्हीं दिनों में गोपनाथ की कथा में भी यही परिवार सेवा में लगेगा।।
बापू ने कहा कि मैं अब दादा की वाणी में बोलने वाला हूं इसलिए गुजराती में यह कथा हो रही है। त्रिभुवन दादा ने बताया कि सबको देना ही चाहिए दादा के मन में महाभारत और हृदय में रामायण बसता था।। महाभारत के प्रसंग दिए और हृदय दान करते हुए कभी-कभी महाभारत के कोई प्रसंग भी हमें सुनाते थे। यह भूमि का रूपी चौपाई जहां सिंहासन पर राम आरूढ़ हुए और देवता लोग दुंदुभि बजा रहे हैं और दूसरी पंक्ति में तुलसीदास लिखा है वहां यदि मोरारी दास लिख दिया जाए तो हमारी तीन पीढ़ी की यह पंक्ति बनेगी! तुलसीदास के पास भी कहीं हमारा पुस्तक पड़ा होगा! यह व्यास पीठ रूपी सिंहासन पर त्रिभुवन सॉंइ बैठे हैं मैं केवल उपकरण हूं।कथा मेरा सॉंइ बोल रहा है।। कभी-कभी रामायण का हृदय दान होता था वहां महाभारत के संदर्भ भी होते थे और वही संदर्भ में आज एक पहली कथा मुझे दादाजी ने सुनाई थी वह श्वान कथा है।।
बापू ने कहा महाभारत के तीन नाम है: पहले जय संहिता फिर विस्तार हुआ और भारत बना और विस्तार हुआ महाभारत बना।। शास्त्रीय बोली में उसे गोत्र ग्रंथ कहते हैं। आज के महाभारत में हरिवंश पुराण के अंश भी मिलते हैं। जहां भी कुछ न कुछ बढ़ता है उसे गोत्र ग्रंथ कहते हैं।।
इस कथा में जन्मे जय राजा ने यज्ञ किया और जहां यज्ञ होता है वहां रसोई बनती है। रसोई बन रही थी और एक कुत्ता-श्वान दौड़कर जाता है। ब्राह्मणों को अच्छा नहीं लगा। बापू ने कहा कि अपनी शुद्धि और पवित्रता का भी एक घमंड होता है और वही घमंड कभी किसी को भी दंड देने के लिए हमें प्रेरित करता है।। सभी ने लाठी उठाई। कुत्ते को पिटा। तब दादा कहते हैं कि कुछ भी प्रसंग हो कुत्ता भी हमारे यहां आए तो पहले उसे रोटी खिलाओ फिर हमें खाना चाहिए। उसे हमारे से ज्यादा गंध आती है अन्न को हम ब्रह्म कहते हैं और ब्रह्म की गंध आती है दादा कहते थे कि सामान्य जीव को भी सम्मान देना चाहिए। कुत्ते को बहुत मारा। कुत्ता भाग कर आया और लहू लोहान हुआ।। उसकी माता का नाम शरमा था कुत्ते को पूछा कि क्या हुआ? और मॉं जन्मेजय के यज्ञ में गई। फरियाद की मेरे बेटे को दंडित किया है। शरमा श्राप देती है आप ज्यादा टिकेंगे नहीं। किसी का दिल दूभाना नहीं चाहिए। शाप और आशीर्वाद कोई भी दे सकते हैं। महाभारत में तीन प्रकार के भार की बात है वैसे महाभारत उपदेशों की खदान है। ऋषियों ने पंचम वेद कहा है वह चारों वेद सभी जगह नहीं आ पाए लेकिन यह पांचवा वेद काकीड़ी तक आया! एक देह का भार, दूसरा जिम्मेदारियां का भार और तीसरा जाने अनजाने में किए पापों का भार।। पापों का भार बढ़ता है तो पृथ्वी को तकलीफ शुरू होती है और फिर अवतार परंपरा आती है।।
महाभारत के मूल में श्वान कथा है। और हिमालय में पांडवों ने यात्रा गात्र दिए वहीं भी श्वान है।। शंकराचार्य जी और गीताकर भी कुत्ते को याद करते हैं बापू ने कहा यह कथा का नाम पितामह है क्योंकि पांच पितामह की हम वंदना करना चाहते हैं। एक आदि अनादि,भगवान कृष्ण कहते हैं माता-धाता पिता महा, महातत्व जो चार युग से पहले भी था वह पितामह। परब्रह्म,परमात्मा।। दूसरा पितामह युगों की धारणा में ब्रह्मा है। तीसरा पितामह हमारे काग भूसुंडी २७ कल्प तक जो जिए है। कौवे को हम पितृ मानते हैं।। काल गणना में चौथे पितामह दादा भीष्म है और पांचवें में पीतामह त्रिभुवनदास दादा सभी पितामहों की वंदना करनी है।।
रामचरितमानस में त्रिभुवन शब्द १८ बार आया है तुलसी के अन्य साहित्य में भी बहुत है।।
हमारे मन बुद्धि चित्त अहंकार को ६ वस्तु काम क्रोध लोभ मद मोह मत्सर शुद्ध नहीं रहने देती। हमारा अंतःकरण शुद्ध नहीं होता। अस्तित्व बहुत बरसता है लेकिन हमारे अंतःकरण का रेडियो अशुद्ध है इसलिए स्टेशन पकड़ में आता नहीं है।।
फिर बापू ने कथा ग्रंथ महात्म्य को कहते हुए राम कथा के बारे में वंदना प्रकरण श्लोक और सोरठा और बाद में वंदना प्रकरण में सभी वंदनाओं के बाद गुरु वंदना का प्रकरण और फिर हनुमंत वंदना का प्रकरण विस्तार से कहकर प्रवाही और पवित्र परंपरा हनुमान वंदना गाकर आज की कथा को विराम दिया।।
विशेष:
जीस टीवी में बापू को देखते रहे वही बापू ने सभी को अपने हाथों से टीवी सेट अर्पण किया! काकीडी गांव के लिए आज अति आनंद का उत्सव। नवरात्र खत्म हुआ और दिवाली का उत्सव आ रहा है,बीच में नवदिवसीय राम कथा का उत्सव।।
बहुत लोगों ने पहली बार इस गांव में प्रवेश किया लेकिन सब लोग जानते हैं पूज्य बापू भीगा भीगा स्मरण अपने दादाजी का हर कथा में रहते हैं। वह दादा पूज्य बापू के गुरु वैसे तलगाजरडा में रहे और बापू को रामचरितमानस अर्पण किया।
लेकिन विशेष प्रेम इसी गांव में रहा।। प्रतिवर्ष यह गांव में महाभारत की कथा करते थे और रामचरितमानस पूज्य बापू के लिए अकबंध रखा।। यहां के गृहस्थाने दादा जी को बहुत प्रेम किया होगा इसीलिए बार-बार यह गांव याद आता है।।
बापू की स्मरण मंजूषा गांव के प्रति दादा जी के प्रेम के प्रतीक छीप और मोती पड़े होंगे।।
मनोरथी में एक नाम रमाबेन वसंत भाई जसाणी, केन्या के नैरोबी में रहते हैं और बापू के प्रति,कथा के प्रति प्रेम और भक्ति उत्पन्न हुई और फिर अपनी उंगली पकड़कर पूरे परिवार को बापू की तरफ लेते चली।।
वसंत भाई परिवार, बहनों का परिवार,भाइयों का परिवार और इसी परिवार में नीलेश भाई जो टीना भाई के नाम से जाने जाते हैं।।
पूरे परिवार अनन्य श्रद्धा और भरोसे के साथ यूनो की कथा,स्पेन की कथा,यह कथा और अगले दिनों में कुंभ की कथा भी होने वाली है।।
रमा बहन का पुण्य स्मरण भी हुआ।।
तीसरी और बहुत प्रसन्न करने वाली बात यह बनी की काकीडी गांव के प्रत्येक घर को मनोरथी परिवार की तरफ से टीवी अर्पण किया जाएगा।।
११५ घर यहां के हैं और आज प्रतीक के रूप में नव परिवार को व्यास पीठ से बापू और मनोरथी परिवार के हाथों से टीवी अर्पण भी हुआ।।
प्रत्येक घर की गृहिणी को साड़ी पुत्री और पुत्रवधू के लिए ड्रेस और कोई यहां कथा के लिए आने वाली बहन बेटियों के लिए भी साड़ी एवं ड्रेस दिए जाएंगे इसी तरह भाइयों के लिए टीशर्ट दिए जाएगा।।
आज रामजी मंदिर शिव मंदिर के पुजारी परिवारों को प्रतीक के रूप में नव घरों में टीवी अर्पण किया और बाकी के घरों में भी टीवी अर्पण होंगे।।
ब्रह्मभट्ट बारोट के इस गांव में बापू राम कथा का गान कर रहे हैं तब सभी के मन में भाव है कि पूज्य बापू दादा जी का स्मरण भी करें।।
ये कथा कइं प्रकार से विशिष्ट है:
ये तलगाजरडी वायु मंडल की तीसरी विशेष कथा है।।
पूज्य मोरारिबापु के परम गुरु दादा श्री त्रिभुवनदास दादा जहां महाभारत की कथा का गान करते थे।।
बापु के नीजी गॉंव तलगाजरडा से ये काकीडी गॉंव चंद कदमों की दूरी पर है।।
गांव के तट पर ही विशाल डॉम बनाया गया है और देश-विदेश तो ठीक स्थानिक लोगों का उत्साह और आनंद चरमसीमा पर है।।
तलगाजरडा वायु मंडल में बापु द्वारा तीन सालों से शरद पूर्णिमा के आसपास के पवित्र दिनों में कथागान होता है।।
पहला गान २०२२ में भवानी माता मंदिर के सांन्निध्य में ‘मानस भवानी’ शिर्षक के अंतर्गत कथागान हुआ।।
दूसरा-गत वर्ष-२०२३ में भूतनाथ महादेव के सांन्निध्य में वडली गॉंव में मानस भूतनाथ शिर्षक से कथागान हुआ।।
इस साल-२०२४ में त्रिभुवन दादा की परम,पावन,पावक भूमि से ये कथागान हो रहा है।।
यहां का उत्साह और आनंद परम आनंद की अनुभूति तक छा रहा है।।
पीछले तीन महिनों से महनवा के श्री चिमनभाइ वाघेला,विरपुर जलाराम बापा के परिवार से श्री भरतभाइ,संगीतनी दुनिया परिवार के श्री नीलेशभाइ वावडिया,कैलास गुरुकूल से जूडे़ श्री जयदेवभाइ मांकड,कैलास गुरूकूल के साधु बालकों,और ये सभी के मार्गदर्शन में स्वयं उत्साह से स्वयंसेवकों की मंडली कार्य कर रही है।।
कथा के मनोरथी केन्या नैरोबी स्थित श्रीमति रमाबेन वसंतलाल जसाणी परिवार है।।
तलगाजरडी वैश्विक व्यास पीठ के परिंन्दें कथा श्रवण हेतु देश-विदेश से उडान भर के आ पहुंचे है।।