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शक्ति भ्रांति के रूप में भी जगत में प्रवृत्त है,यह भ्रांतिमॉं का ही एक स्वरूप है ऐसा उपाषको को देखना चाहिए तो बिल्कुल हल्के-फुल्के हो पाएंगे।।

दादा ने कहा था:लंकाकांड सामूहिक निर्वाण का कांड है।।

उत्कर्ष का मूल कभी नहीं भूलना।

जब उत्कर्ष का मूल भूलेंगे प्रगति तो मिलेगी शांति नहीं मिलेगी,साधन मिलेंगे साधना चली जाएगी।।

गुरु को कहीं ढूंढने मत निकलो गुरु ने दिया हुआ ग्रंथ में वह दिखेगा।।

बुद्ध पुरुष कालातित होते हैं,हमें जरूरत पड़े तब चेतना के रूप में काम करते हैं।।

रामायण अनपढ़ होकर पढ़ना।।

अनपढ़ के लिए है लेकिन आखिरी ग्रंथ है।।

रामायण अनपढ़ लोगों का आभूषण है।।

महुवा-गुजरात के पास काकीडीगॉंव से बह रही कथाधारा का चौथा दिन कथा आरंभ पर छोटा सा प्रकल्परचा:पालिताणा के लेखक एवं झवेरचंदमेघाणी के कदमों पर चल रहे रणछोडभाइमारु का पुस्तक-‘मेघाणीनां पगले मेरनीमहेमानगति’ का व्यास पीठ बापु एवं लोकार्पण-ब्रह्मार्पण किया गया।।

आरंभ पर बापू ने कहा सत्य,प्रेम और करुणा के  त्रिभुवन घाट पर आज चौथा दिन।।बहुत प्रश्न है लेकिन एक दुर्गा सप्तशती में श्रद्धा रूपेण,बुद्धि रूपेण,शक्ति रूपेण… दुर्गा पूजा में एक मंत्र है:भ्रांतिरूपेणसंस्थिता ऐसा भी लिखा गया है।।शक्तिभ्रांति के रूप में भी जगत में प्रवृत्त है।।यहभ्रांतिमॉं का ही एक स्वरूप है ऐसा उपाषको को देखना चाहिए तो बिल्कुल हल्के-फुल्के हो पाएंगे।।जब-जब जीवन में भ्रांति आए तो जगदंबा का ही रूप है वह समझना।।

महाभारत की बिबिध कथा में आज बापू ने कहा धृतराष्ट्र और पांडु दो पुत्र।।धृतराष्ट्र जन्म से अंध और सर्वांग संपूर्ण को ही राजगादी मिलती है ऐसा संविधान उस काल में।।इसलिएराजगादी नहीं मिली।।लेकिन पांडू को पांडु रोग था।।बिल्कुल समझदार था इसलिए समाज के बीच में रहने के बजाय जंगल में झोंपड़ी बनाकर रहता था।और रानियां सब सेवा में थी।।एक दिन झोपड़ी में कुंती है इस वक्त बाहर से आवाज आई जल्दी आओ! जल्दी आओ! देखा माद्री की आवाज है।।साौत पुकार रही है गई तो पांडू अचेतन पड़े थे।।माद्री ने कहा कि महाराज को कुछ हो गया है।।पांडु का मरण हुआ था।।उस वक्त कुंता थोड़ी गुस्से में आती है।लेकिन मातृत्व का गुस्सा ज्यादा देर नहीं टिकता।माद्री ने कहा की पति बीमार है। कुंता कहती है की कमल खिल रहे हैं,मंद,शीतल और सुगंधी पवन बह रहा है, कोयल कूहक रही है,काम के सभी लक्षण दिखाई रहे हैं उस वक्त रोगी के पास आप इतनी सज धज के क्यों गई?

वो महाभारत के पात्र पर गुजरात में भी बहुत लिखा गया है।।नानाभाईभट्टनेलिखा।दिनकर जोशी ने भी बहुत लिखा।महाभारत का सार स्वामी सच्चिदानंद ने लिखा।गुणवंत शाह ने मानव स्वभाव का महाभारत लिखा। मुंन्शी जी ने कृष्ण अवतार लिखा नगीनबापासंघवी ने कृष्ण महाभारत और हरीन्द्रदवे ने भी लिखा।।कोई विचार की कलम न पहुंची हो ऐसा नहीं है।और अभी भी पहुंचने वाली है ऐसा लगता है।।फिर एक तापस आया।सभी को शांत किया।।कुंता ने कहा कि आपका आश्रम में से चार-पांच तापस को बुलाओ। चिता तैयार करो। चिता तैयार हुई और उसी वक्त दोनों माता  सती बनने के लिए एक दूसरे से संवाद करती है।। कुंता ने कहा कि मैं बड़ी हूं मैं पति के साथ जलकर सती होने वाली हूं।।वह युग में सती प्रथा होगी। रामायण काल में दशरथ ने सती प्रथा बंद करके क्रांतिकारी कदम उठाया था।।वह कहती है हम दोनों शौक्य  सौतन है।मेरे मन में भी कभी-कभी आपके प्रति द्वेष हुआ होगा।।माद्री कहती है मुझे जाने दो।तब कुंता कहती है मैं गांधारी माता की सेवा करूंगी।।खानदान परिवार में लज्जा के रूप में जगदंबा बैठी होती है।चाहे वह बेटी हो,बहन हो या मां के रूप में हो।।

दूसरी कथा भी बापू ने कही:पांडवों का वनवास हुआ।पांच पांडव और द्रौपदी हस्तिनापुर छोड़ रहे हैं पूरी नगरी रो रही है।दुर्योधन और कर्ण भी आए हैं। उस वक्त मां कुंता युधिष्ठिर से कहती हैं कि यह नकुल और सहदेव का ज्यादा ध्यान रखना।।और भीम भूखा बहुत होता है तो भीम के बारे में भी ध्यान रखना।।यह मातृत्व है।।

बापू ने आज बताया की दादा कहते थे लंका कांड प्रसाद रूप है।। यह निवेदन विचित्र लगेगा,लेकिन महान के वाक्य उनकी कृपा के बगैर समझ में नहीं आते।पूरा लंका कांड मुझे सिखाया नहीं गया था।। उन दिनों में दादा की तबीयत बिगड़ी थी।फिर सेवा ही रामायण समझकर में प्रतिपल सेवा करता रहा निर्वाण कि वह क्षण मेरे छोटे से मिट्टी से लींपे हुए घर में मैंने देखी है।।दादा ने कहा था लंकाकांड सामूहिक निर्वाण का कांड है। देवताओं ने अमृत वर्षा करी।।रिंछ और वानर जीवंत हुए लेकिन राक्षस फिर जीवंत नहीं हुए।।अमृत कभी भेद नहीं करता लेकिन रींछ और वानर को जानकी को देखने की इच्छा थी।। राक्षसों का सामूहिक निर्वाण हुआ था।। लगता है विषाद लेकिन यह प्रसाद का कांड है।। दादा कहते थे बालकांड प्रकाश पुंज है।घर में उजास करेगा।जब-जब रामचरितमानस का पाठ करो बालकांड उजास करता है।पहला प्रकरण गुरु वंदना का है।। दीप होंगे वह मनी द्वीप होंगे,जगत का कोई भी तूफान उसे बुझा नहीं पाएगा।।

बापू ने यह भी बताया कि उत्कर्ष का मूल कभी नहीं भूलना।जब उत्कर्ष का मूल भूलेंगे प्रगति तो मिलेगी शांति नहीं मिलेगी।साधन मिलेंगे साधना चली जाएगी।।

कहा कि अनुभव के सत प्रतिशत में ८० प्रतिशत कहता हूं क्योंकि इधर-उधर कोई एक शब्द हो जाए तो मेरी सरस्वती माफ नहीं करेगी और कथा गायें बगर हम कैसे रह पाएंगे!

गुरु को कहीं ढूंढने मत निकलो गुरु ने दिया हुआ ग्रंथ में वह दिखेगा।। बुद्ध पुरुष कालातित होते हैं, हमें जरूरत पड़े तब चेतना के रूप में काम करते हैं।।

दादा ने कहा अयोध्या कांड प्रेम देगा।।पांडवों को शिक्षा गुरु द्रोण ने दी।।शिक्षा गुरु द्रोण ने दी लेकिन दीक्षा दादा भीष्म ने दी।शेषसैया पर दादा है पांडवों गए,प्रश्न पूछे,युधिष्ठिर ने पूछा:यह जगत में पूजने योग्य कौन है?भिष्म ने कहा कि ऐसा ही प्रश्न कृष्ण ने नारद से भी कहा था और वहां बहुत से लक्षण बताए थे।यह देखकर लगता है कि हम झूठ ही पूजते चले आ रहे हैं।।समाज ज्यादा उदार है लेकिन हम कितने लायक है वह भी देखना चाहिए।

पांडवों को भिक्षा भगवान कृष्ण ने दी थी।।

ऐसे ही रामचरितमानस में हनुमान को शिक्षा सूर्य ने दी।दीक्षा भगवान राम ने दी। किष्किंधा कांड में कहा सब में अनन्यता को देखना और हनुमान जी राम की दीक्षा की परीक्षा देने मानो लंका गए थे! और पास हो गए! हनुमान जी को भिक्षा मां जानकी जी ने दी। कहा कि मधुर मधुर फल खाओ।।रामायण अनपढ़ होकर पढ़ना वरना दिवाली को होली में पलट देंगे।।बापू ने कहा कि यह मेरे जैसे अनपढ़ के लिए है लेकिन आखिरी ग्रंथ है।।रामायण अनपढ़ लोगों का आभूषण है।विद्वानों के लिए है लेकिन अनपढ़ की जगह में अपने आप को रखता हूं।।

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