जो क्षमाशील है वह प्रथम पूजनीय है।।
हमारे जीवन महाभारत में क्रोध बहुत बड़ा परिबल है।।
सुरता की सरिता में बहती कथाओं में से जो भी हाथ आए आपके समक्ष रखता हूं।।
त्रिभुवन दादा की स्मृति से भरी काकीडी गॉंव की भूमि से बह रही रामकथा के पांचवे दिन बापू ने कहा मेरे व्यक्तिगत रूप में जिनकी पघडी सत्य है, जिनकी पोथी प्रेम है और जिनकी पादुका मेरे लिए करुणा है ऐसे त्रिभुवन घाट पर काकीड़ी के टीले पर रामकथा में सभी को प्रणाम!
जहां कोई बुद्धपुरुष थोड़े समय के लिए भी निवास करें वह पांचो तत्वों को पवित्र कर देते हैं।।भूमि के जल तत्व को,वायुमंडल को और भूमि के भूमि तत्व को और फलदाई कर देते हैं।।महापुरुष जहां बैठते हैं वहां ऐसा सब कुछ होता है।वह वायुमंडल को स्वच्छ करें और जल में देवत्व भर जाता है।। यहां इन्होंने अपना खेती का पाक नष्ट करके भी यह जगह दे दी इस ८-१० लोगों को पैसे देने की बात की वह नहीं ले रहे हैं।बापू ने कहा मेरी आत्मा कहती है कि अगले साल मेरा ठाकुर अनेक गुना करके वापस करेंगे।।
बुद्धपुरुष के तेज तत्व में कुछ विशेष होता है। बुद्ध पुरुष जहां बैठा है उनका पूरा आकाश अलग होता है।।
रामायण अनपढ़ होकर पढ़ना इसका मतलब पढ़ाई नहीं करना ऐसा नहीं,लेकिन भोले बनकर पढ़ाई करना,होशियार बनकर नहीं करना।।मन क्रम वचन छांडि चतुराई….
भगवान कृष्ण को ऊपर से जीवन दर्शन करें तो हम निर्णय नहीं कर पाएंगे लेकिन कृष्ण भोला है। सबसे भोला मेरा महादेव है।।परम तत्व बहुत भोला और मासूम होता है। इन्हें आप जितना सता सको सता लो! भीष्म कहते हैं जो क्षमाशील है वह प्रथम पूजनीय है।।आक्षेप,आरोप,क्रोध,गालियां,अपवाद भ्रांति फैलाओ लेकिन फिर भी जिनका भोलापन अछूता नहीं ऐसे भोले के पास शास्त्र शस्त्र नहीं बनते हैं।।
बापू ने कहा मुझे मेरे दादा की जन्म तिथि मालूम नहीं।लेकिन मन कह रहा है इन दिनों में यह कथा यह यहां हो रही है तो दादा के जीवन की कोई महत्व की तिथि भी होगी!अंतःकरण की प्रवृत्ति का यह प्रमाण है।।
महाभारत की कथा में बापू ने कहा:कुंता माता दुर्वासा की बहुत सेवा कर रही थी।अतिसय क्रोधी आदमी की सेवा करना बहुत बड़ा तप है।।शांत मानस की सेवा यद्यपि थोड़ी अच्छी होगी।। तुलसीदास ने क्रोध को पित्त का रोग कहा है।जो अपनी छाती में पीड़ा करता है,खाने का हजम नहीं होने देता।।क्रोध रूपी पित्त हमें पचने नहीं देता। काम वात वायु का रोग है।लोभ कफ का रोग है। जब मेरा रामायण का अध्ययन चलता था,दादा क्रोध के बारे में कह रहे थे।।हमारे घर में एक छोटा सा कपाट,नीले कलर का,वहां थोड़े संस्कृत के ग्रंथ और अन्य ग्रंथ रहते थे।।मैं बैठने गया और इस कबाट को छुआ तो एक पुस्तक आया नीचे।वो छांदोग्य उपनिषद था।दादा ने कहा कि पन्ना खोलो वहां क्रोध के बारे में लिखा होगा।।१९७० की यह बात है। वहां मंत्र था।क्रोध अग्नि है। पांच अग्नि का छांदोग्य में वर्णन है।।वहां गौतम ऋषि को क्रोध के बारे में बताया गया। हमारे जीवन महाभारत में क्रोध बहुत बड़ा परिबल है।।
असौ वाव गौतमाग्नि।।
परजन्यो वाव गौतमाग्नि।।
पृथिवी वाव गौतमाग्नि।।
पुरुषो वाव गौतमाग्नि।।
योषा: वाव गौतमाग्नि।।
है गौतम!इतने अग्नि है। दादा ने उपनिषद के सूत्रों को रामायण में भी कहां है वह दिखाया। यहां कहते हैं लोक अग्नि है। लोकमान्यता अग्नि है और तेरे भजन को जला देंगे। इसलिए लोकमान्यता पर आधार नहीं रखना।। वरसाद-पानी अग्नि है।। समुद्र में वडवानल अग्नि है।विरह में कोई बैठे हैं तो बारिश भी अग्नि समान लगती है।। पृथ्वी अग्नि है। ऊपर से शांत नीचे दावानल भरा है।।पुरुष का मतलब परम पुरुष परमात्मा अग्नि है। प्रकाश निधि है।।योषा का मतलब बहन बेटी,मातृ शरीर अग्नि है।द्रौपदी कहां से आइ?जानकी धरती के पेट से निकली। तुलसी ने नया अग्नि दिया:क्षमाग्नि।।आप पर क्रोध संशय आक्षेप करें उन्हें के समिधों को क्षमा के शीतल अग्नि से जला देना।।
दुर्वासा ने कुंती को धर्म परक,वायु परक, इंद्र परक, अश्विनी कुमार परक मंत्र दिए। जिसे धर्म परक मंत्र से युधिष्ठिर,वायु परक मंत्र से भीमसेन,इंद्र परक मंत्र से अर्जुन और अश्विनी कुमार के मत्रों से माद्री के वहां दो पुत्र सहदेव और नकुल का जन्म हुआ। कर्ण की उत्पत्ति सूर्य प्रभाव से हुई।।
अधिरथ की पत्नी राधा रसोई कर रही है और चिंता है मुझे कोई पुत्र नहीं है।अधिरथ धृतराष्ट्र का सारथी था।।
बापू ने कहा सुरता की सरिता में बहती कथाओं में से जो भी हाथ आए आपके समक्ष रखता हूं।।
और नदी के किनारे से एक संदूक मिली।। अंदर एक बालक जिंदा था।घर पर लाया वसुसेन नाम रखा जो आगे जाकर कर्ण से जाना गया।। कर्ण के जीवन में तीन बड़ी मुश्किलें:
जब गुरु द्रोण ने सभी राजकुमारों को विद्या दी और फिर परीक्षा समारंभ का आयोजन किया। समारंभ पूरा घोषित कर रहे थे और कर्ण का प्रवेश हुआ। कर्ण ने कहा कि विद्या के मुकाबला करने के लिए अर्जुन के सामने आ रहा हूं। तब कर्ण का अपमान हुआ। कहा गया कि यह राजकुमारों को लिए है। तुं सुतपुत्र(सारथी का पुत्र)है।। दुर्योधन आया और कहा कि अभी ही उसे में अंग देश का नरेश घोषित करता हूं।। दूसरी बार परशुराम के पास विद्या प्राप्त करने गया।परशुराम अत्यंत गुस्से में। कर्ण ने परशुराम को शांत किया और परशुराम कर्ण की गोद में सर रखकर सो रहे हैं। थोड़ी देर के बाद बहुत कुछ गरम लगा।परशुराम जाग गये।लहू बह रहा था देखा एक जंतु के डसने से कर्ण के शरीर में से लहू बह रहा है। पूछा कि एक इतना ज्यादा डंस होने के बाद भी तू सहन कर रहा है तो ब्राह्मण नहीं हो सकता! सच कह दे!यह स्वभाव क्षत्रिय का है। तूने अपनी जात छुपाइ है। जल्दी बता! वरना शाप दे दूंगा और बाद में बताया तब कहा कि विद्या दे गई है जीवन के अंतिम समय में तुं भूल जाएगा।। कृपाचार्य ने त्याग किया।गुरु ने त्याग दिया। द्रोपदी के स्वयंवर में द्रोपदी ने भी त्याग दिया यह अपमान कर्ण ने सहे।। सूरज है तो तपना पड़ेगा ही!
बापू ने कहा कि हमने एक परमपिता परमात्मा की बात की थी। दूसरा पितामह ब्रह्मा है। तीनों लोक के पिता मह का बिरूद प्राप्त किया है। क्योंकि वह सर्जक है। जिन्होंने हमारे लिए अच्छी वस्तु का सृजन किया वह पितामह है। सुंदर पृथ्वी, जल,वृक्ष सभी बनाए हैं।।
फिर संक्षिप्त में शिव चरित्र का गान हुआ।। शिव विवाह के बाद पार्वती ने राम के बारे में पूछा और भगवान शिव ने राम जन्म के पांच हेतु बताएं।। यह पांच कारण शब्द,स्पर्श,रूप,रस और गंध के साथ बापू ने जोड़कर दिखाएं।। और सभी अनुकूल होने पर अयोध्या के कौशल्या के भवन में राम का प्रागट्य हुआ और परमात्मा को मनुष्य बनने के लिए मां कौशल्या ने जो किया और बिल्कुल एक नवजात शिशु के रूप में भगवान को बना दिया। बालक राम का जन्म हुआ अयोध्या नगरी में।। बापू ने त्रिभुवन भूमि से पूरे त्रिभुवन को राम जन्म की बधाई देते हुए आज की कथा को विराम दिया।।