साधु भूमि काकीडी से कथा ने विराम लिया।
नये साल की पहली कथा ७ नवम्बर से देवभूमि ञुषिकेश से होगी प्रवाहित।।
अगली दिवाली की गिफ्ट:अगले साल २०२५ में ४ से १२ ऑक्टोबर-२०२५ में गोपनाथ में होगी रामकथा।।
भिष्म ने बताये तेरह सत्य।।
भगवान कृष्ण सर्व रीतों से पूर्ण है और हम सभी रीतों से अपूर्ण है।।
हर एक की तरफ सद्भाव भी सत्य है।।
हमने महापुरुषों को केवल देखे हैं,हम परखे नहीं हैं।।
अवसर आने पर लाभ लेने के बजाय सामने वाला का शुभ कैसे हो-ऐसा करना वह सत्य है।।
भूखे को भोजन देना सत्य है।।
हो सके उतनी ममता को दूर करके समता का स्थापन करना सत्य है।।
कारण हो फिर भी क्रोध न करना भी सत्य है।।
मुझे त्रिभुवन दादा में सत्यनारायण,प्रेम नारायण, और करुणा नारायण का दर्शन हुआ है।।
सिंघासन पर त्रिभुवन सॉंइ।
देखि सुरन्ह दुंदुभि बजाइ।।
-उत्तरकॉंड दोहा-१२
तारन तरन हरन सब दूषन।
तुलसिदास प्रभु त्रिभुवन भूषन।।
-उत्तरकॉंड दोहा-३५
इन्ही बीज पंक्तियों पर रचाइ रामकथा के विराम के दिन कथा आरंभ पर भीगी आंखों और भीगे भाव से बापू ने कहा:समग्र आयोजन के लिए रामजी मंदिर के देवता,शिव मंदिर और जिन गांवों में दादा बहुत रुकते थे वही कृपा,वीरपुर बापा जलाराम का आशीर्वाद और इस परिवार का भरत भाई और चिमन भाई वाघेला,उनकी टीम,ग्राम जनता सब ने अपनी ओर से आहुतियां दी है।साथ ही प्रशासन की सेवा,सरकारी तंत्र की सेवा,मीडिया के हर एक माध्यम,छोटे से छोटे आदमी से लेकर पुलिस विभाग सबने जो सेवा की।।मनोरथी परिवार ने मन,वचन कर्म,तन मन और धन से पूरा समर्पण किया।।सबको दादा की ओर से धन्यता दादा का पौत्र-मोरारि बापू की ओर से प्रसन्नता,आशीर्वाद और अपना खुशी का भाव बापू ने व्यक्त किया।।
बापू ने बताया कि महाभारत में भीष्म बानशैया पर लेटे हैं, तब कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि ज्ञान का भंडार बंद हो जाए उससे पहले जो पूछना है वह पूछ लो! टपकती रक्त काया के ऊपर गंगा जी ने कृपा की थोड़ी राहत हुई और युधिष्ठिर ने प्रश्न पूछे।। ऐसे कोई प्रश्न नहीं होंगे जो युधिष्ठिर में उसे काल में नहीं पूछे। विश्व के लिये जवाब सांप्रत भी है और भविष्य के लिए भी यह जवाब उपयोगी होंगे।।
भिष्मको पूछा गया कि सत्य किसे कहते हैं?भिष्म ने जो कहा वह त्रिभुवन दादा ने वो हमारे कोने से कहा।। तलगाजरडा का वह कोना बहुत पुराना है। उनको पार पाना मेरे लिए मुश्किल है। बापू ने कहा कि एक पुस्तक के लिये मैंने कहा था:भगवान कृष्ण सर्व रीत से पूर्ण है और हम सभी रीतों से अपूर्ण है। हमने महापुरुषों को केवल देखे हैं,हम परख नहीं पाए हैं।।सत्यभामा,रुकमणी,द्रौपदी, सुभद्रा,उत्तरा, गोपीजनों,यशोदा ने केवल कृष्ण को देखे हैं, लेकिन परख नहीं पाए हैं।।
सत्य के १३ स्वरूप है। मेरे पितामह ने मुझे कहे और मुझे जितने याद है मैं आपको कहता हूं!
सत्य सोचते हैं,सत्य बोले,किसी और का सत्य का स्वीकार करें,सत्य में रहे। यह सब प्रथम है ही। लेकिन भिष्म को मालूम था कि सत्य बोलना,सत्य का विचार करना,सत्य में जीना कठिन होगा।। इसीलिए तेरह सत्य बताएं।। सत्य तो सत्य है ही लेकिन हर एक की तरफ सद्भाव भी सत्य है।। हम व्यवहार जगत में सत्य नहीं बोल सकते हैं। हम जीव है। असत्य का शरण लेते हैं। कोई आदतन भी असत्य बोलते हैं। हम कहते हैं कि समय नहीं लेकिन मैं बोलता हूं योग नहीं है।। दादा ने कहा कि हमारे पास जो भी आए हैं,कितना भी बुरा किया हो, पूरी दुनिया जानती हो फिर भी हृदय से स्विकार करना वह सत्य है।।उन्हें क्षमा दे देना यह सत्य है।। अवसर आने पर लाभ लेने के बजाय सामने वाला का शुभ कैसे हो ऐसा करना वह सत्य है।।भूखे को भोजन देना सत्य है।। हो सके उतनी ममता को दूर करके समता का स्थापन करना सत्य है।। मुश्किल है लेकिन जब ममता आती है समता दिखती नहीं है फिर भी समता को पकड़ कर रखना।।भाव या कुभाव से भी परमात्मा का नाम समय मिलने पर लेना भी सत्य है।।और एक कठिन सत्य है कुछ भी हो जाए किसी की इर्षा ना करना भी सत्य है।।यहां असुया शब्द का प्रयोग किया है।।कोई व्यक्ति किसी प्रसंग पर बहुत हर्षित है वह उनकी निजता है। ऐसे प्रसंग में षड्यंत्र करके विघ्न नहीं डालना वह भी सत्य है।। किसी की प्रसन्नता के बीच में नहीं आना।। कारण हो फिर भी क्रोध न करना भी सत्य है।। इनमें से थोड़े सत्य भी हमारी जेब में होंगे तो बहुत उजास होगा, दिए प्रकटेंगे।।साधु सत्य विहीन प्रेम विहीन करुणाविहीिन नहीं हो सकता।। सभी एक साथ होते हैं।
मैंने मेरी बात की है क्योंकि मैं सभी सत्य मेरे त्रिभुवन दादा में देखे हैं।।मुझे त्रिभुवन दादा में सत्यनारायण प्रेम नारायण और करुणा नारायण का दर्शन हुआ है।। मेरे तीन सूत्र:सत्य प्रेम और करुणा का मूल यहीं है।।शास्त्रों ने मुझे सहयोग किया है और मेरी अदा से मैने उसे सजाया है लेकिन मूल वहीं है।।
बापू ने कहा कि पवनार आश्रम में विनोबा जी गीता जी के मराठी में लिखो सूत्र के उद्घाटन के लिए बिरला परिवार,सोमैया दादा,सच्चिदानंद जी डिवाइन लाइफ समिति ने आग्रह किया,वहां में गया था।विनोबा जी मौन थे।बाद में वह बोले और कुटिया में जब हम गए तो कागज के छोटे टुकड़े पर सत्य प्रेम और करुणा लिखते थे।।वहां से मुझे बल मिला।।यह तेरह सत्य किसी के अंदर होंगे ही इसलिये बिना स्तंभ के यह पूरा आकाश टिका है।। कथा प्रवाह में सेतुबंध रामेश्वर का स्थापना हुआ। सेतु बंध के विचार के पास भीड़ कब आएगी राम की आंखें देख रही है।।इस वक्त बहुत भीड़ हुई। बंदर उड़ रहे हैं।यहां शिव वैष्णव और शाक्त का मिलन हुआ है।।यहां तीन प्रकार की यात्रा है। बहुत लोग ऊपर से चलकर गए हैं।अठारह पद्मप जिनके जूथप(नायक) थे इतनी बड़ी भीड़।। जो सक्षम थे वह उड़ कर जा रहे थे और जब थक जाते थे सेतु पर उतरते थे।।भगवान का दर्शन करने के लिए पानी में से जलचर बाहर निकले। उनके विशाल शरीर, भगवान ने कहा कि आपने सेतु बनाया वह पुरुषार्थ का है उन पर मैं चलूंगा और मेरे करुणा के सेतु पर आप चलिए।। कौन सी करुणा? खड़े रहे तो जलचर निकले उनकी पीठ पर पैर रखकर आप जाइए।। सब ने कहा यह सागर चंचल,जल चंचल, बंदर स्वभाव चंचल कैसे पार होंगे? तब प्रभु ने कहा: मगन भये हरि रूप निहारी… वो सब स्थिर हो गए हैं जिनमें एक क्षमता ना हो वह करुणा के सेतु पर चल सकते हैं।। और उड़ते हैं वह ज्ञानमार्गी अपने विचारों की छलांग लेते हैं।। हम रास्ता बनाए वह कितना होगा! लेकिन उनकी करुणा का रास्ता बड़ा विशाल है। जहां से कीड़ी और कुंजर दोनों चल सकते हैं।। लंका में त्रिकूट है।तीन शिखर में एक पर लंका है दूसरे शिखर पर रावण का मनोरंजन का अखाड़ा है तीसरा शिखर सुमेर जो खाली था। रावण विस्तारवादी फिर भी खाली था? उन्हें मालूम था कि एक दिन ईश्वर आएगा।।काशी जैसे शिव के त्रिशूल पर है वैसे लंका भी त्रिशूल पर बनी नगरी है।।
राम वहीं रुके। कागभुसुंडि अहिंसा के उपासक, हमारे तलगाजरडा की कुलदेवी भी अहिंसा है। रावण को निर्वाण पद देकर, पुष्पक में आरूढ़ होकर सबको साथ लेकर,अयोध्या में सबसे पहले राम कैकयी से मिले।फिर सभी माता को मिले राज्याभिषेक की तैयारी और वशिष्ठ मुनि के हस्त राजतिलक हुआ। राम राज्य की स्थापना हुई।
और वहीं पर सभी घाट पर कथा को विराम दिया गया त्रिभुवन घाट पर भी कथा के विराम वक्त सात प्रश्न पूछे गए।।एक-एक प्रश्न एक-एक कांड का प्रतिनिधित्व करते हैं।।
और फिर बापू ने कहा की दिवाली की गिफ्ट के रूप में अगली साल २०२५ की ४ अक्टूबर से १२ अक्टूबर गोपनाथ में राम कथा होगी।।रमाभैया और शुभोदय के मनोरथ से राम कथा तलगाजरडीय वायुमंडल में होगी।
ये राम कथा का सुफल पांच पितामहों को अर्पण करके कथा को विराम दिया गया।।
विक्रम के नये साल की पहली कथा बहुधा तिर्थ क्षेत्र में होती है।इसी न्याय से नये साल की पहली,क्रम में ९४६ वीं रामकथा परम पवित्र भागीरथी गंगा के तीर देवभूमि ञषिकेश से ७ नवम्बर से प्रवाहित होगी।।
ये कथा का जीवंत प्रसारण आस्था टीवी तेनल एवं संगीतनी दुनिया परिवार यु-ट्युब चेनल और चित्रकूटधाम तलगाजरडा यु-ट्युब चेनल के माध्यम से भारत में भारतीय समय पर पहले दिन शाम ४ बजे और बाकी के दिनों में सुबह १० बजे से नियत और नियमित समय पर होगा।।