Homeगुजरातश्रुति के पीयाउ से अद्वैत का अमृत पियो।।

श्रुति के पीयाउ से अद्वैत का अमृत पियो।।

ग्रंथकृपा,गुरुकृपा और गौरी टशंकर की कृपा यह तीनों कृपा मिल जाए तो जगत में सब द्वार खुल जाते हैं।।

शांत चित्र और एकांत दो मिल जाए तो सब कुछ मिल जाता है।।

महात्मा ब्रह्म,बुध्धात्मापरब्रह्म और परमात्मा परात्पर ब्रह्म है।।

कबीर क्रांतिकारी,शांतिकारी और भ्रांतिहारि है।।

पतित पावनीमॉं गंगा के तट पर ञुषिकेश से बह रही रामकथा गंग धारा के पांचवे दिन पर बापू ने कहा ग्रंथकृपा,गुरुकृपा और गौरी टशंकर की कृपा यह तीनों कृपा मिल जाए तो जगत में सब द्वार खुल जाते हैं।।ब्रह्म,परब्रह्म और परात्पर ब्रह्म में क्या अंतर है वह भी पूछा गया था।। बापू ने कहा कि एक शुद्ध रूप में केवल ब्रह्म का विचार,अन्य कोई बात ना हो यह भी ब्रह्म विचार है।। दूसरा किसी वस्तु का सहारा लेकर,ब्रह्म को केंद्र में रखकर,अन्य ग्रंथो का आधार लेकर ब्रह्म का प्रतिपादन करें वह भी ब्रह्म विचार है।। और तीसरा ब्रह्म स्वयं अपना विचार प्रस्तुत करें वह ब्रह्म विचार है।। यह सनातनी त्रिपिटकहै।आध्यात्मिक त्रिकोण भी कह सकते हैं हमारे यहां प्रस्थानत्रयि भी है।। बापू ने कहा कि महात्मा ब्रह्म है।।साधु महात्मा को भोजन करवाते हैं ऐसा हम बोलते हैं तब ब्रह्म भोज करते हैं ऐसा कहा जाता है।। बुद्धात्माबुद्धपुरुषपरब्रह्म है और परमात्मा परात्पर ब्रह्म है।।शांत चित्र और एकांत दो मिल जाए तो सब कुछ मिल जाता है।। इतने अकेले हो जो कि गुरु के सिवा तुम्हारे पास कोई ना हो। उसी को ही देखो,उसी को ही सुनो,गुरु को स्पर्शो और गुरु को ही चखो।।

विष्णु दादा ने कहा कि श्रुति यह पीयाउ है वहां से अद्वैत का अमृत पियो।। और ज्ञान के बारे में कहा जितना अधिक आप शांत हो जाओ उतना आप ध्यानातित है।। शांतिपूर्ण ध्यान का मार्ग अपना कर के एकांत में अकेला होकर धन्य हो जाओ।। ऐसा वेदांत रत्नाकर में विष्णु दादा ने लिखा है।। राम कथा भी वेद है।। कला,साधना,शिविर,विद्या सब तब ही सार्थक है जब दूसरे का शोषण न करें।।श्रोता वक्ता का साधन नहीं साध्य हो जाए।।

किसी ने पूछा क्या फर्क है कबीर और तुलसी के दोहों में? बापू ने कहा कबीर के दोहे में क्रांति है तुलसी के दोहे में शांति है।। बहुत पहले कबीर पर एक कथा कही थी तब निवेदन किया था कि:कबीर क्रांतिकारी,शांतिकारी और भ्रांतिहारि है।।

कथा प्रवाह में शिवजी सहज आसान बिछाकर  बैठे हैं तो कैसे दिखते हैं?

बैठे सोह काम रिपु कैसे।

धरे शरीर सा्तरसु जैसे।।

कामदेव अपना शरीर शांत रस बनाकर जैसे बैठा हो ऐसे शिवजी बैठे हैं।।और पार्वती राम जन्म के बारे में पूछती है।।शिवजी का मौन मुखर हो जाता है।। मौन में मुखरता का जन्म होता है फिर मुखरता मौन में समा जाती है।। शिवजी ने पांच कारण बताएं जो शब्द,स्पर्श,रूप,रस और गंध से जुड़े जा सकते हैं।। और अयोध्या में शीतल मंद और सुगंध वायु बहने लगी और देवताओं ने स्तुति की।। सब ने स्तुति की और भगवान,ईश्वर,परब्रह्म परमात्मा अयोध्या के आंगन में,दशरथ के आंगन में मां कौशल्या के कूखप्रगट हुए।।और एक भारतीय माता ने ईश्वर जो चतुर्भुज है वह कैसे दो रूप वाला मनुष्य होता है वह दिखा दिया।। और राम का प्रागट्य हुआ।। पूरे पंडाल और ऋषिकेश की भूमि से त्रिभुवन को राम जन्म की बधाई के साथ बिल्कुल सरलता से और संक्षिप्त में राम जन्म का गान करके कथा को विराम दिया गया।।

आज कथा पंडाल में योग ऋषि बाबा स्वामी रामदेव जी आए।। उसने अपना भाव रखते हुए बापू के बारे में सब कुछ कहा और बापू को अपना बाप बताते हुए यह भी कहा कि हम सब संतो के बाप जैसे बापू है।।

और साथ ही अभी-अभी एक शंकराचार्य जी ने 370 कलम पर जो निवेदन किया था उन पर अपनी नाराजगी प्रकट करते हुए अपना भाव रखा और व्यास पीठ राम कथा और बापू की तरफ अपना आभार और वंदन भाव रखते हुए रामदेव जी ने अपनी बात रखी।।

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