Homeगुजरातमानस की सद्भावना ने राजकोट को बनाया रामकोट।।

मानस की सद्भावना ने राजकोट को बनाया रामकोट।।

पूरा मीडिया जगत यह यज्ञ में अपना समिध दे रहा है।।

यह राम कथा के लिए तलगाजरडीव्यासपीठ ने एक करोड़ की राशि का तुलसी पत्र अर्पण करने का संकल्प लिया।।

सभी को अपनी ओर से बरसाने के लिए अपील भी की।।

राजकोट के इतिहास में पहली बार इतना विराट आयोजन और इतनी बड़ी शोभायात्रा,सुबह से लेकर दोपहर तक चली।।

निराधार वृध्धों और वृक्षों के लिए आधार बनकर अनराधार दान की वर्षा हुई।।

अन्य कार्य करते हुए वृध्धोंबड़ें लोग को आदर करने का भाव नित्य बने तो आयुष्य, विद्या,यश और बल बढ़ता है:गुरुशरणानंद जी।।

सांख्य महत्व का नहीं है स्नेह का महत्व है।।

कथा में मनी कितनी इनसे ज्यादा मैसेज कहां तक पहुंचे वही महत्व रखने को लिए बापू ने बताया।।

परिवार के एक-एक आदमी एक-एक वृक्ष दत्तक ले तो पूरा जगत हरियाली में पलट जाएगा।।

रामचरितमानस पुस्तक नहीं,यह ग्रंथ भी नहीं सदग्रंथ है।।

भगवान कैलाशपति का मस्तक है।।

वृक्ष जैसे वृद्ध और वृद्ध जैसे वृक्षों की सेवा के लिए राजकोट में सबसे बड़ा आयोजन हुआ और वृद्धाश्रम के लिए नवदिवसीय रामकथा का आरंभ होने जा रहा था।। पूरे विश्व में सबसे बड़ा वृद्धाश्रम किसी को अलग मानसिकता है लेकिन निराधार, लाचार,नि:संतान वृद्ध और ३०० करोड़ के खर्च के साथ १४०० कमरे बन रहे हैं।। हमारे देश की जनसंख्या १५१ करोड़ है,१५१ करोड़ वृक्ष के संकल्प से पूरी भारत को हरी-भरी करने के संकल्प से एक कथा शुरू हो रही है। तब गुजरात में ३० लाख वृक्ष बोए गए और पनप गए हैं।।

यह रामकथा के लिए संरक्षक और पूरा कार्य लेकर बैठे साधु पुरुष परमात्मानंद सरस्वती और रमण रेती वृंदावन से संत परंपरा के गौरव कार्ष्णिपीठाधीशमहामंडलेश्वर गुरु शरणानंद जी और दिल्ली के जैन आचार्य लोकेश मुनि जी ने अपने विशेष भाव भी रखें।।

बहुत से संत महंत और यहां के सांसद रमेश टीलारा, राम भाई मोकरिया,पुरुषोत्तम रुपाला और खोडलधाम के नरेश भाई के साथ यह वृद्धाश्रम के लिए सबसे ज्यादा सब कुछ करने वाले विजय भाई डोबरिया के साथ-साथ ये कथा को ३ महीने से मीडिया जगत पुरा समर्थन कर रही है।। ऐसे गुजराती अखबार फूल छाब की पूरी टीम, नरेंद्र भाई झीबा,जन्मभूमि के हार्दिक भाई और फूल छाब के तंत्री ज्वलंत छाया भाई ने भी व्यासपीठ की वंदना की।।

सुबह ५००० से ज्यादा लोगों ने ५ घंटे तक चली पोथी यात्रा के बाद रामकथा शुरू होने से पहले दीप प्रागट्य हुआ और परमात्मानंद सरस्वती ने अपना भाव रखते हुए कहा कि प्रत्येक भारतीय के लिए भगवान राम आदर्श बने।। वैसे यह कथा २०२६ में होने वाली थी लेकिन हमारे खास विनती को ध्यान में रखते हुए बापू ने यह कथा दी है।। यहां २०० अपंग-विकलांग वृद्ध है।। इसे पहले ६० करोड़ की राशि बापू ने एकत्रित कर दी थी।।४० से ५० करोड़ की राशि वैसे ही समाज ने दी है और अब ३०० करोड़ का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट लिया है।। यहां मां-बाप से भी ज्यादा सेवा हो रही है। इसलिए कहा कि हमारे नींव जैसे कार्यकरो को ज्यादा आशीर्वाद प्रदान करना।। क्योंकि ऐसे वृद्ध है जिनके डायपर बदलते हैं साफ सुथरा करने के लिए सभी सेवाभावी लोग कार्य कर रहे हैं।।

गुरु शरणानंद जी ने एक श्लोक कहा और बताया कि वृद्धो की सेवा करने का आदेश भी नहीं है, यह प्रेरणा भी नहीं लेकिन स्वाभाविक चेष्टा होनी चाहिए अन्य कार्य करते हुए वृध्धोंबड़ें लोग को आदर करने का भाव नित्य बने तो आयुष्य, विद्या, यश और बल बढ़ता है।। लौकिक दृष्टि से नहीं लेकिन मन और विवेक स्वस्थ रहे वह आयुष्य बढ़ता है।।विद्या का व्यापक रूप में विधि निषेध का विवेक होता है।। यश का मतलब शत्रु भी बड़ाइ  करें और बुद्धि रूपी बल भी बढे।। शरणानंद जी ने कहा कि आप एहसान नहीं करते हैं आप वृद्धो की सेवा करते हैं तो आपका विद्या यश बल बढ़ाने का अवसर बढ़ता है।। लोकेश मुनि ने भी अपने भाव रखते हुए सनातनी परंपरा को बापू आगे बढ़ा रहे हैं तो बात बताइ।।

ब्यापकुएकु ब्रह्म अबिनासी।

सत चेतन घन आनंद रासि।।

-बालकॉंड

जिन्हकिरहि भावना जैसी।

प्रभु मुरतितिन्हदेखहितैसी।।

-बालकॉंड

इन्हीं बीज पंक्ति से आरंभ करते हुए बापू ने कहा कि राजकोट में भगवत कृपा से यह अवसर आ रहा है सर्वजनहिताय, सर्वजनप्रीताय और सर्वजनसुखाय यह रामकथा होने जा रही है।। वह सभी वृद्धो को प्रणाम।। वह वृक्षों जो वृक्ष बोए गए हैं सभी को प्रणाम।।और हमारी प्रसन्नता बढ़ाने के लिए रमन रेती से आए गुरु शरणानंद जी।। मंगल कार्य के संरक्षण साधु पुरुष परमात्मानंद जी और लोकेश मुनि जी को प्रणाम करते हुए यह कथा के आयोजन विजय भाई डोबरिया लाठी में २ साल पहले संकल्प किया गया था।।

बापू ने कहा अमेजॉन के जंगल में कथा कर रहे थे वहां तो बहुत बड़ा जंगल है फिर भी पांच-पांच वृक्ष बोये थे।। सांख्य महत्व का नहीं है स्नेह का महत्व है कथा में मनी कितनी इनसे ज्यादा मैसेज कहां तक पहुंचे वही महत्व रखने को लिए बापू ने बताया।। बापू ने यह भी कहा कि राजकोट का पूरा अखबार जगत और मीडिया ने बड़ी आहुति दी है और अपने समिध अर्पण कर रहे हैं।।

यह वैश्विक नहीं त्रिभुवनिय कथा हो रही है। बापू ने कहा कि सबसे पहले मैं संकल्प करूं मेरी व्यास पीठ,मेरे फ्लावर्स मेरे गीले सुखे समिध की तरफ से एक करोड रुपए की राशि का तुलसी पत्र इन दिनों में हम अर्पण करेंगे।। क्योंकि कथा वचनात्मक नहीं रचनात्मक भी होनी चाहिए।। और स्वामी जी के हाथ में एक करोड़ का तुलसी पत्र हम रखेंगे।। अन्नकूट लोग इकट्ठा करते हैं लेकिन पुजारी अपना तुलसी पत्र अर्पण करते हैं तो पूरा प्रसाद बन जाता है।।

बापू ने रणछोड़ दास जी महाराज को भी याद किया बापू ने बताया कि यदि आदमी अपनी आय का दसवां हिस्सा भी अर्पण करें तो पूरा जगत अच्छा हो जाएगा।। धर्म की बहुत व्याख्या हुई किसी ने कहा धर्म सत्य समान है,किसी ने दया समान बताया। किसी ने कहा कि दूसरों का हित करने वाला धर्म है।। तुलसी जी ने कहा की सेवा धर्म अत्यंत कठिन है।। क्योंकि दान देकर दातार बनना आसान है लेकिन सेवक बनना ज्यादा कठिन है। परिवार के एक-एक आदमी एक-एक वृक्ष दत्तक ले तो पूरा जगत हरियाली में पलट जाएगा।।

बापू ने बताया कि यह कथा का विषय हमने पहले से तय किया था और दो पंक्ति बालकांड में से हमने ली है।। पूरे रामचरितमानस में बहुत वृद्ध भी दिखते हैं पूरा रामचरितमानस वृक्षों से भरा है और राम के साथ-साथ कौन से वृक्ष जुड़े हुए हैं वह भी रामचरितमानस में लिखा है।। यहां तरु नहीं कल्पतरु मुझे दिखते हैं।।संत के बाद यदि कोई उपकारक है तो वह बीटप वृक्ष है। फिर सरिता, पर्वत और धरती यह पांच उपकारक है।। रावण असुर होने के बावजूद वृक्षों का जतन करता हैं। सत्य बोलना कठिन है अच्छा बोलना कठिन नहीं है बापू ने कहा कि वृक्ष और वृद्ध दोनों एक समान है दोनों की जड़ बहुत गहरी होती है।। दोनों का काम समाज को छाया करने का है।। दोनों फल देते हैं वात्सल्य देते हैं।। दोनों समाज को औषधि देते हैं। वृद्ध भी अपनी धीरज से भूकंप को आने से बचाते हैं वृक्ष भी भूकंप आने से हमें बचाते हैं।।वृध्धों की आंख में स्नेह का जल होता है और वृक्षों की आंखों में भी आभार का आंसू आता है।।

बापू ने कहा कि अपने पास जो भी कुछ है उसकी बरसा करना।। गांधी जी शायद इतने प्रभावक वक्ता नहीं होंगे लेकिन आचारक वक्ता थे इसीलिए वह जो भी बोलते थे वह सब कुछ होता था।।

बाद में ग्रंथ महिमा का गान करते हुए बापू ने कहा कि रामचरितमानस पुस्तक नहीं, यह ग्रंथ भी नहीं सदग्रंथ है।। भगवान कैलाशपति का मस्तक है। पहले बालकांड में ७ श्लोक में वंदना और बाद में लोक तक जाने के लिए सोरठा और दोहे से पूरा वंदना प्रकरण।। गुरु वंदना का प्रकरण और बाद में हनुमंत वंदना के बाद आज की कथा को विराम दिया गया।।

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