मानस हरिभजन।। दिन-१ दिनांक-२१ डीसेम्बर कथा क्रम-९४८
स्वाभाविक मन रामचरन में लग जाए वह भजन है।।
प्रेम और भक्ति अलग है,भक्ति परमात्मा की होती है,प्रेम इंसानों से होता है।।
भजन अव्याख्याित है फिर भी शायद भजन बत्तिस लक्षणा है।।
हर व्याख्या हर भाष्य सत्य को थोड़ा कमजोर कर देती है।।
उड़ान कितनी भी हो हरि भजन ना हो तो क्लेश नहीं जाएंगे।।
क्लेश के तीन केंद्र है:कायिक,मानसिक और सांसारिक।
जहां तीन-तीन पीढी व्यासपीठ को पूर्णत: समर्पित है ऐसा बाजोरिया परिवार।पहले रमाभैया जहां बैठते थे,फिर शुभोदय जी भी संपूर्ण समर्पित रहे और अब शुभोदय के बेटे अभ्युदय भी व्यासपीठ को इतना ही समर्पित है ऐसे मनोरथी परिवार के संकल्प से आज तंजावुर(तमिलनाडु)की पवित्र भूमि से रामकथा का मंगल आरंभ हुआ।।
कथा आरंभ पर परिवार की ओर से बेटी नौमी और स्नेही कांतिभाइ ने विश्व का सब से बडा गर्भ गृह और सबसे बडा शिवलिंग स्थापित है एसे शिव मंदिर के बारे में बताकर सब का हार्दिक स्वागत अभिवादन किया गया।।
उमा कहउं मैं अनुभव अपना।
सत हरि भजन जगत सब सपना।।
-अरण्य कॉंड
निज अनुभव अब कहउं खगेसा।
बिनु हरि भजन न जाहिं कलेसा।।
-उत्तर कॉंड
इन बीज पंक्तियों के साथ कथा आरंभ करते हुए बापू ने कहा भगवान शिव का यह पवित्र धाम।इतना बड़ा लिंग रूप में विग्रह पहली बार देखा।स्वाभाविक कुछ स्मृतियां कैलाशवासी-वृंदावन वासी रमाशंकर भैया और चित्रकूट वासी शुभोदय दोनों चेतनाओं को अंजलि के साथ बापू ने कहा रमा भैया खोजते रहते थे कहां बापू की कथा हो! इनमें से एक यह स्थल भी है।शिव के प्रति अगाध निष्ठा थी। शुभोदय भी इस मार्ग पर चला। लेकिन नियति कुछ और थ।।रमा भैया के साथ गुजरात के गिर के जंगल में जब घूमते थे एक बार वह बोले मानस भजन पर आप कभी बोले, और इसी स्मृति को शिव जी के धाम में श्रद्धांजलि,तर्पण और समर्पण के रूप में अर्पण करते हैं।।इसलिए यह कथा का नामांकन मानस हरिभजन कहेंगे।।
बापू ने कहा यद्यपि यह सब भजन है। भजन के लिए चार वस्तु जरूरी:हमारे मन में सबका हित हो, हमारा चित् निर्विकार हो, किसी के प्रति द्वेष ईर्ष्या राग, पाखंड ना हो,भक्ति और प्रेम दोनों में साधन के दृढ़ता हो और भगवतीय नियम एकरस हो- यह जब होता है तब राम द्रवीभूत होते हैं और आदमी भजन के मार्ग पर चल पड़ता है।।
पांच वस्तु में बिना यत्न मन लग जाता है:शरीर,घर, बल बच्चें,धन संपदा और स्त्री।।ऐसे ही बिना यत्न परमात्मा में मन लग जाए वह भजन है।। रामचरितमानस में भजन के साधन बताए हैं लेकिन स्वाभाविक मन रामचरन में लग जाए वह भजन है।। प्रेम और भक्ति अलग है भक्ति परमात्मा की होती है,प्रेम इंसानों से होता है।। शब्द भेद के कारण भाव वेद संभव है।
तुलसी कहते हैं संसार से आदमी प्रेम करें और प्रेम भक्ति दृढ़ हो यह भगवतीय नियम एकरस रहे समझता हूं कि भजन पर बोला नहीं जा सकता फिर भी कहे बिना नहीं रह पाएंगे!
अरण्य कांड की एक पंक्ति जहां शिव मां पार्वती को सुनाते हैं। दूसरी पंक्ति उत्तरकॉंड में कागभुसुंडि गरुड़ के सामने प्रसंग उठाते हैं।।
रामचरितमानस में 32 बार भजन शब्द आया भजन 32 लक्ष्णा होना चाहिए।। बार-बार कहूंगा भजन अव्याख्याित है फिर भी शायद भजन की यह 32 व्याख्या है। हर व्याख्या हर भाष्य सत्य को थोड़ा कमजोर कर देती है।।
सातों कांड में भजन शब्द है सबसे ज्यादा भजन शब्द का प्रयोग उत्तराकॉंड में किया है। उत्तरावस्था में बहुत भजन होना चाहिए। इतनी कथा सुनी अब भजन बढना चाहिए।। यह शब्द का क्रम देखिए सत हरि भजन जब साधक को भजन सत होता है उसी क्षण जगत सपना लगता है।। ऐसी जागृति हो साधक को यह अनुभव होता है।। अनुभव उसे कहते हैं जो कहा जाए,अनुभूति वह है जो शब्दों में बयां नहीं होती।। यह शिव बोल रहे हैं। शिव सत्य है हरि भजन सत्य है यह प्रतीति होती है तब जगत सपना लगता है।। ऐसा अनुभव कर लेना चाहिए ब्रह्म से ऊंचा कोई नहीं फिर भी साधु सबसे ऊंचा है यह दो पंक्तियां रामचरितमानस ने हमें दी हुई पादुका है।। जो स्थान प्रेम का वर्धन करें संस्कृत में उसे पीठ कहते हैं।। पार्वती के तीन नाम उमा अंबिका भवानी,उमा प्रथम है।। महाभारत में आठ प्रकार के शस्त्र बताएं जो खुद को मारते हैं काम, क्रोध,लोभ, क्लेश आदि।। उड़ान कितनी भी हो हरि भजन ना हो तो क्लेश नहीं जाएंगे।।क्लेश के तीन केंद्र है:कायिक,मानसिक और सांसारिक।
फिर सातों कांडों में पहले कांड के श्लोक से साथ मंगलाचरण करते हुए ग्रंथ महात्मा की बात करते हुए बापू ने छंद और सोरठा में वंदना प्रकरण, पंचदेव की उपासना पद्धति और गुरु वंदना और बाद में हनुमंत वंदना तक की कथा का गान किया।।
विशेष:
तंजावुर (जिसे तांजौर के नाम से भी जाना जाता है) भारत के तमिलनाडु राज्य का एक शहर है,जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और महत्वपूर्ण धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ कुछ मुख्य पहलू दिए गए हैं:
हिंदू धर्म
1. बृहदीश्वर मंदिर: यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल, यह भव्य मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है।
2. शैव केंद्र के रूप में तंजावुर: तंजावुर सदियों से शैव धर्म (भगवान शिव की पूजा) का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है, जहाँ कई प्रमुख शैव संत और विद्वान इस क्षेत्र से आए हैं।
अन्य धर्म
1. ईसाई धर्म: तंजावुर में ईसाई आबादी काफी है, यह शहर 17वीं और 18वीं शताब्दी में ईसाई मिशनरी कार्यों का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।
2.इस्लाम: यह शहर एक बड़ी मुस्लिम आबादी का भी घर है, यहाँ तंजावुर मस्जिद सहित कई ऐतिहासिक मस्जिदें हैं।
त्यौहार और समारोह
1.महा शिवरात्रि: बृहदेश्वर मंदिर में हिंदू धर्म का प्रमुख त्यौहार महा शिवरात्रि बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
2. तंजावुर त्यागराज आराधना: यह वार्षिक संगीत समारोह प्रसिद्ध कर्नाटक संगीतज्ञ संत त्यागराज का सम्मान करता है।
सांस्कृतिक महत्व
1. कर्नाटक संगीत: तंजावुर को कर्नाटक संगीत के केंद्रों में से एक माना जाता है, जहाँ कई प्रसिद्ध संगीतकार और संगीतकार इस क्षेत्र से आते हैं।
2. तंजावुर पेंटिंग: यह शहर अपनी पारंपरिक पेंटिंग के लिए प्रसिद्ध है, जो अपने जटिल डिजाइन और जीवंत रंगों के लिए जानी जाती हैं।
तंजावुर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक महत्व इसे भारत की आध्यात्मिक और कलात्मक परंपराओं की खोज करने में रुचि रखने वालों के लिए एक आकर्षक गंतव्य बनाता है।