Homeगुजरातभजन वाला या मौन हो जाता है या समय पर बोलेगा।

भजन वाला या मौन हो जाता है या समय पर बोलेगा।

हमारे प्राण में भजन की प्रतिष्ठा है।।

प्राणों में भजन प्रतिष्ठा करने का पहला सूत्र है:समता।।

परमात्मा हमारी सभी इच्छा पूरी नहीं करता लेकिन जरूरतें सब पूरी कर देगा।।

इच्छा,भय और क्रोध से जो मुक्त है वह सदा मुक्त है

युक्त होना चाहो या किसी से मुक्त होना चाहे दवा एक ही है-इंद्रियां मन और बुद्धि को वश में रखो।।

मन ठीक है तो समाधि है और अठीक है तो उपाधि।।

रामचरितमानस अक्षरावतार है।।

रामनाम वेद की आत्मा है।।

राम नाम इच्छा मृत्यु देता है,शिवनाम इच्छित वस्तु देता है।।

स्नेह में शंका,प्रेम में प्रपंच,भक्ति में भ्रांति यह परम अपराध माना जाता है।।

तंजावुर-तमिलनाडु की पवित्र भूमि पर बह रही रामकथा के दूसरे दिन पर कथा आरंभ पर कहा: शिवजी कहते हैं यह मेरा अनुभव है यहां भजन ही सत्य है बाकी सभी भ्रांतियां हैं,सपना है।।इसीटोन में भूसुंडी कहते हैं:बिना हरि भजन जीवन के क्लेश नष्ट नहीं होंगे।।रामचरितमानस में सबसे पहले भजन शब्द बालकांड में आया।।

सब जानत प्रभु प्रभुता सोई।

तदपी कहे बिनु रहा न कोई।।

गोस्वामी जी कहते हैं प्रभु की प्रभुता सब जानते हैं। वेद पुराण नेतिनेति कह देते हैं।।महात्मामनीषीयों कुछ ना कह सके। फिर भी कहे बिना रह नहीं पाए वहीं वेद एक खिड़की खोलता हैं। लिखा है:

कहा बेद अस कारननराखा।

भजन प्रभाव भॉंती बहू भाखा।।

क्योंकि भजन बुलवाता है।भजन वाला या मौन हो जाता है या समय पर बोलेगा।यह सब अव्याख्य है फिर भी वेद ने एक खिड़की खोल रखी है।।बहू प्रकार का प्रभाव मतलब क्या?विनय पत्रिका के पद का बहुत आश्रय लिया है।।मूर्तियों में प्राण का प्रतिष्ठा होता है और हमारे प्राण में भजन की प्रतिष्ठा है।। सम,संतोष,विचार विमल,अती सत्संगति यह चार को हे मन तू द्रढ कर! अपने मन के साथ बहुत संवाद करके देखें कि मन में पूरे संसार पर समता है कि नहीं? अपनों के साथ तो सब अच्छा बर्ताव रखते हैं। प्राणों में भजन प्रतिष्ठा करने का पहला सूत्र है:समता-कोई भेद,उच्च-नीच, जाति-पाति कुछ नहीं।।हमारे यहां विविध धर्म कोई कहता है भगवान सातवें आसमान में है। कोई कहता है भगवान है ही नहीं!उपनिषद कहता है यहां भी है, वहां भी है, आगे भी है,पीछे भी है,ऊपर भी है,नीचे भी है,आसपास भी है।।तुलसी जी कहते हैं:

हरि व्यापक सर्वत्र समाना।

प्रेम ते प्रगट होहि में जाना।।

यह समता है,यह समता को गीता ने योग कहा है। दूसरा संतोष है। पुरुषार्थ और हमारे प्रारब्ध के मिलन से जो कुछ मिला-हानि लाभ उसमें संतोष लेकिन यह व्यवहार की धरा पर है।। इस कथा को ज्यादा गंभीरता से सुनना, बाजी मार सकते हो! या आप हारोगे या हरि हारेगा! यह भजन का एक प्रभाव है।।परमात्मा हमारी सभी इच्छा पूरी नहीं करता लेकिन जरूरतें सब पूरी कर देगा।। इच्छा, भय और क्रोध से जो मुक्त है वह सदा मुक्त है योगेश्वर कृष्ण ने कहा।। युक्त होना चाहो या किसी से मुक्त होना चाहे दवा एक ही है-इंद्रियां मन और बुद्धि को वश में रखो।।और वह भजन से ही वश में आएगी।। इंद्रिय से इच्छा,मन के कारण भय,बुद्धि के कारण क्रोध पैदा होता है।। मन ठीक है तो समाधि है और अठीक है तो उपाधि।। नारद का मन निर्मल है तो समाधि लगी और इंद्र को वही देखकर उपाधि हुई।। ताले भी रामायण में है और कुंजियां भी मानस में ही मिलती है।। तीसरी बात है सत्संगति साधु संग। कोई हरि का प्यारा मिल जाए राम को चित् कहा है जो साधु निरंतर राम भजन करता है उसका संग द्रढ करो।। रामचितहै।चित् का चित् राम का नाम है।।विचार निर्मल रखना विचारों में गलत खनिज गलत कचरा ना आ जाए।तुरंत रोकने का प्रयत्न करना। यह चारों को द्रढ करके हरि को भजना चाहता है तो है जीव! इतना कर यह शिव मत है।।ऐसा भजन मानस में 32 बार आया है भगवान की कथा सुनना भजन है। हृदय में हरि का ध्यान भी भजन है। हर एक में हरी दर्शन करके सर झुकाए वो भजन है।। मूर्तियां बहुत बिकती है लेकिन प्राण प्रतिष्ठा के बाद आरती उतरती है।। परमात्मा ने यह मनुष्य के रूप में सभी मूर्ति और प्राण देकर प्रदान की है।।सबको प्रणाम करना भजन का प्रभाव है। कब यह समय हमारे जीवन में आए कि सब में हरि देख कर प्रणाम करें! परमात्मा ने यह करुणा देकर हमें प्रदान की है।। सेवा,श्रवण, स्मरण,सब में हरी दर्शन,समता,संतोष,निर्मल विचार और साधु संग-सब भजन प्रभाव है।। क्रोध करने के सब साधन है फिर भी क्रोध न करें। प्रत्येक द्वंद में जो धीरज रखते हो राम है। धैर्य भजन है।। राम वनवास के कारण की सूची बनाएं तो सरस्वती कारण बनी।कैकयी कारण बनी। मंथरा भी कारण बनी।लेकिन राम कहते हैं दूसरों पर दोष मत डालो राम का धैर्य देखो! उसने कहा ना पिता, ना माता, ना लक्ष्मण,ना वशिष्ठ आदि महात्मा,ना मंथरा कारण है। वनवास का कारण केवल में हूं!! सब चकित हो गए। तब राम ने कहा कि भरत का प्रेम द्रव-प्रवाही रूप में और घन रूप में है।।जैसे समंदर में अमृत है लेकिन तरंगों में दिखता नहीं। प्रेम रुपी अमृत की समाज को जरूरत है इसलिए 14 साल का मंदराचल पर्वत बिरहा का उनसे भरत रूपी सागर का मंथन करना था।। और तब प्रेम मार्ग के मार्गी को देखिए वह घन भी होगा, द्रव भी होगा।। सहनशीलता वह घन रूप है और करुणा मूर्ति वह द्रव रूप है।। राम कथा कहने वाला कोई मनुष्य नहीं शिव भी नहीं,कागभुशुंडी जी पक्षी है।। याग्यवल्क्ययग्य से निकले हुए वस्त्र पहने पहनने वाले का पुत्र है रामचरितमानस अक्षरावतारहै।।कृष्ण ने द्रौपदी की लाज रखने के लिए वस्त्र अवतार किया।। भरत को जरूरत थी तो प्रभु ने पादुका अवतार धारण किया यह सामान्य पुस्तक नहीं। इसको हमने जीवन समर्पित किया। कितना जीवन! एक जन्म नहीं अनेक।लेकिन प्रोफेशनल लोग ऐर-गैर निवेदन करते हैं।।यह व्यवसाय नहीं। व्यवसाय ना बनाओ तो इसमें लाभ नहीं शुभ शुभ और शुभ ही है।। राम अवतार कौशल्या के कारण और यह मानस का अवतार सरस्वती के कारण हुआ। शिवजी ने नामकरण किया- रामचरितमानस।। वाल्मीकि रामायण का नाम नारद ने रखा है। यह नाम अष्टमूर्ति शिव ने रखा इसलिए 8 अक्षर है। शिव अष्टमूर्ति है जहां: पृथ्वी मूर्ति,जल मूर्ति,आकाश मूर्ति अग्नि मूर्ति,दिन मूर्ति,रात मूर्ति,वायु मूर्ति और यजमान मूर्ति है।।

रामनाम वंदना प्रकरण का गायन हुआ। वेद में राम नाम है,दिखता नहीं।।रामनाम को प्राण कहा है लेकिन राम नाम है तो वेद है। रामनाम वेद की आत्मा है।। राम नाम इच्छा मृत्यु देता है,शिव नाम इच्छित वस्तु देता है।।कुंभ के बाद भारद्वाज ने यज्ञवल्क्य के पैर पड़े और रामकथा के बारे में पूछा स्नेह में शंका,प्रेम में प्रपंच,भक्ति में भ्रांति यह परम अपराध माना जाता है।। पहली बार रामचरितमानस धुन का गान किया गया।।

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