किसान दिवस हर साल उन किसानों को समर्पित है, जो अपने परिश्रम से हमारे लिए अन्न उपजाते हैं और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देते हैं। किसानों की भूमिका केवल भोजन उपलब्ध कराने तक सीमित नहीं है; वे हमारे गांवों और सामुदायिक जीवन को भी सशक्त बनाते हैं।यहाँ पांच ऐसे किसानों की कहानियाँ हैं, जिन्होंने परंपरागत खेती से आगे बढ़कर आधुनिक तकनीकों और नए तरीकों को अपनाया। इन बदलावों ने न सिर्फ उनकी जिंदगी बदली, बल्कि उन्हें सफल उद्यमी भी बना दिया। इनकी मेहनत और नवाचार ने यह साबित कर दिया कि अगर किसानों को सही जानकारी, साधन और सहयोग मिल जाए तो वे अद्भुत बदलाव ला सकते हैं।
इन किसानों कोआनंदनाकी पहल “प्रोजेक्ट उन्नति” से मार्गदर्शन और मदद मिली। इस प्रोजेक्ट ने उन्हें खेती की नई तकनीकों और उपकरणों से लैस किया, जिससे उनकी उत्पादकता बढ़ी और वे अधिक संवहनीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में योगदान दे सके। इन कहानियों से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि एक विकसित और आत्मनिर्भर भारत बनाने में किसानों का सहयोग और सशक्तिकरण कितना महत्वपूर्ण है।
यहाँ उन पाँच असाधारण यात्राओं के बारे में बताया जा रहा है, जो ऐसे प्रयासों की स्थायी शक्ति दिखाती हैं:
- बंजर जमीन से हरे-भरे बाग तक: चेन्ना रेड्डी की कहानी :
चेन्ना रेड्डी, जो कभी बेंगलुरु में प्लम्बर का काम करते थे, ने अपनी किस्मत बदलने का साहसिक कदम उठाया। वे आंध्र प्रदेश के जंगलापल्ली गांव लौटे, जहाँ उनकी पैतृक भूमि पानी की कमी के कारण बंजर पड़ी थी।आनंदना – द कोका-कोला फाउंडेशनकेप्रोजेक्ट उन्नति मैंगोके जरिए उन्होंनेअल्ट्रा हाई-डेंसिटी प्लांटिंग (यूएचडीपी)औरड्रिप इरिगेशनजैसी आधुनिक तकनीकें सीखीं।
इन तकनीकों ने उनकी जमीन को फिर से उपजाऊ बनाया। आमों की फसल की पैदावार और गुणवत्ता में वृद्धि हुई और उर्वरकों व कीटनाशकों की खपत कम हो गई। आज उनकी बंजर भूमि आमों के लहलहाते बाग में बदल चुकी है। उन्होंने न केवल अपनी किस्मत बदली, बल्कि दिखाया कि सही तकनीक और धैर्य के साथ कोई भी किसान अपनी ज़मीन को उपजाऊ बना सकता है।
- कॉफी से इको-टूरिज्म तक: तुलाबाती बडनायक की प्रेरक यात्रा:
ओडिशा के जनजातीय गांव कोरापुट में रहने वाली तुलाबाती बडनायक ने अपनी सूझ-बूझ और मेहनत से न केवल अपनी जिंदगी बदली, बल्कि अपने समुदाय के लिए भी मिसाल बनीं। पहले कॉफी की खेती से उनके परिवार का गुजारा मुश्किल से हो पाता था। लेकिनप्रोजेक्ट उन्नतिसे मिली मदद ने उनकी किस्मत बदल दी।
संवहनीय खेती के तहत उन्होंने बेहतर गुणवत्ता वाली कॉफी के लिएफसल चुनने और धूप में सुखानेजैसे नए तरीके अपनाए। उनकी कॉफी को बाजार में ऊंचे दाम मिलने लगे। इसके साथ ही, उन्होंने अपने गांव की प्राकृतिक सुंदरता को इको-टूरिज्म में बदल दिया। आज तुलाबाती न केवल अपनी आय बढ़ा रही हैं, बल्कि गांव की अन्य महिलाओं को भी सशक्त बना रही हैं, उन्हें अपनी सफलता का हिस्सा बना रही हैं। उनकी कहानी दृढ़ता और नवाचार का एक चमकदार उदाहरण है।
- जे.सी. पुनेथा: बागबानी के जरिए नई शुरुआत :
जे.सी. पुनेथा, जो पहले एक टेक्सटाइल इंजीनियर थे, ने 70 साल की उम्र में अहमदाबाद का अपना सफल करियर छोड़कर उत्तराखंड के चंपावत में सेब की खेती शुरू की। यह फैसला सिर्फ पेशा बदलने का नहीं था, बल्कि प्रकृति से फिर से जुड़ने और अपनी जमीन को उपजाऊ बनाने का एक प्रयास था।प्रोजेक्ट उन्नति ऐपलके सहयोग से उन्होंने सेब के पौधे लगाए और ड्रिप इरिगेशन सिस्टम का इस्तेमाल किया।
शुरुआत में चुनौतियां आईं—अहमदाबाद में परिवार से दूर रहना और खेती की देखभाल करना आसान नहीं था। लेकिन पुनेथा ने मेहनत और लगन से इसे सफल बनाया। आज वह अपने बगीचे को और बड़ा कर रहे हैं और अपने अनुभव से अन्य किसानों को प्रेरित कर रहे हैं। उनकी कहानी यह साबित करती है कि नई सोच और दृढ़ निश्चय से हर उम्र में सफलता पाई जा सकती है।
- गीता माहेश्वरी: खेती से सामुदायिक सशक्तिकरण तक का सफर :
तमिलनाडु के ठेनी जिले की गीता माहेश्वरी, पिछले एक दशक से खेती कर रही हैं। कुछ साल पहले उन्होंनेप्रोजेक्ट उन्नति ग्रेप्सऔरकेवीके केनडेक्टके तहत ट्रेनिंग ली, जहाँ उन्होंने कीटनाशक के सही उपयोग और फसलों की देखभाल की आधुनिक तकनीकें सीखीं। इसका नतीजा यह हुआ कि उनकी आय दोगुनी हो गई और खेती का दायरा भी बढ़ गया।
खेती के अलावा, गीता ने केवीके केनडेक्ट की सब्सिडी योजना का लाभ उठाकर अपने गांव चिननाओवलापुरम में एक वेडिंग हॉल, पीएसपी महल, खोला। यह हॉल उन परिवारों के लिए है जो शादी समारोह पर अधिक खर्च नहीं कर सकते। गीता का यह कदम उनके समुदाय को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में बड़ा योगदान है।गीता की कहानी केवल व्यक्तिगत तरक्की की नहीं है, बल्कि यह दिखाती है कि जब महिलाएं सशक्त होती हैं, तो वे पूरे समुदाय को आगे बढ़ाती हैं।
- सिविल सेवा से सेब की खेती तक: खिलानंद जोशी की प्रेरक कहानी
75 साल की उम्र में खिलानंद जोशी ने सरकारी सेवा से रिटायर होकर उत्तराखंड के चंपावत में अपने गांव लौटने का फैसला किया। अपने परिवार की खेती की परंपरा को फिर से जीवित करने का सपना लेकर, उन्होंनेप्रोजेक्ट उन्नति ऐपलके तहत सेब की खेती शुरू की। संवहनीय खेती का पहले से कोई अनुभव न होने के बावजूद, उन्होंने अपनी मेहनत और नई तकनीकों की मदद से खेती में एक नई शुरुआत की।
खिलानंद नेअल्ट्रा-हाई डेंसिटी रोपणऔरड्रिप इरिगेशनजैसे आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल किया, जिससे उनकी जमीन एक एग्रीकल्चर हब में बदल गई। उनकी मेहनत से न केवल सेब की शानदार पैदावार हुई, बल्कि उनका गांव भी आधुनिक खेती की विधियों से प्रेरित हुआ। आज उनके पास दस कर्मचारी हैं, और उन्होंने एक ऐसा स्थानीय सिस्टम बनाया है जो रोजगार और खेती का ज्ञान साझा करता है।खिलानंद की कहानी यह सिखाती है कि उम्र कभी भी नए सपने पूरे करने की सीमा नहीं होती। सही तकनीक, समर्पण और नई सोच से खेती में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। उनकी दूसरी पारी ने यह साबित कर दिया कि अगर जुनून और मेहनत हो, तो हर बदलाव संभव है।