Homeगुजरातसदैव वर्तमान होती है,पानी काल बदलता है : कथाकार श्री मोरारी बापू

सदैव वर्तमान होती है,पानी काल बदलता है : कथाकार श्री मोरारी बापू

*रामकथा नदी है,सरिता है।।*
*अध्यात्म सदैव कालातित होता है,परमात्मा भी कालातित है इसलिए कायम है।।*
*जहां से निकले वहां समय पर न पहुंचे उसकी पीड़ा होना भजन है।।*
*जहां से यात्रा की है वहां समय पर लौटना भजन कहते हैं।।*
*गुरु का भय रखने से हम अभय हो जाएंगे।।*
*गुरु की पादुका का आश्रय करते उसे किसीका डर नहीं लगता।।*
*जिसके बिना जलन शांत नहीं होती वह भजन है।।* 
*भजन जन्म-जन्म का साथी है।।*
*रामनाम सबसे बड़ा भजन है।।*
तांजौर-तमिलनाडु से प्रवाहित रामकथा के चौथे दिन वाल्मीकि उत्तराखंड में फलादेश बताते हैं। हम सब और कथा श्रवण करने वाले और कथा के मनोरथी के लिए अंत में लिखा है कि राम की कथा, हरि कथा श्रवण करते हैं,आयोजन करते हैं उनके पिता,प्रपितामह,पीताओं के पिता सब धन्य हो जाता है।वह श्लोक का पठान हुआ।।
हरिकथा,रामकथा,भागवत कथा सब कथा का फलादेश आखिरी सर्ग में लिखा है।।यहां लिखा है कि प्रयाग आदि तीर्थ में निरंतर स्नान का फल मिलता है। नैमिष आदि वन में निवास करने का फल मिलता है।।केवल सुनने से भी इतना फायदा है वह नानक देव भी बताते हैं।।कथा सुनते-सुनते सुख मिलता है भविष्य में सुख की बात नहीं।।नदी सदैव वर्तमान होती है,पानी काल बदलता है।।रामकथा नदी है,सरिता है।।अध्यात्म सदैव कालातित होता है परमात्मा भी कालातित है इसलिए कायम है।।
जहां से हमारी यात्रा सी शुरू हुई वहां जाना अतीत नहीं वर्तमान है।।जहां से निकले वहां समय पर न पहुंचे उसकी पीड़ा होना भजन है।।सीता पृथ्वी से बार-बार कहती है मुझे रास्ता दो वह सीता का भजन है।।ज्ञान मार्ग कहता है जहां से निकले वहां नहीं जाना चाहिए,भजन कहता है फिर वहीं जाओ। जहां से यात्रा की है वहां समय पर लौटना भजन कहते हैं।।जनकपुर का नगर दर्शन में राम घबराते हैं डर लगता है क्योंकि भजन में भंग होगा।। हम कितने भी बड़े ना हो! गुरु का थोड़ा भय रखना। गुरु का भय रखने से हम अभय हो जाएंगे।।गुरु की पादुका का आश्रय करना उसे किसीका डर नहीं लगता।। तुलसी के अन्य ग्रंथों में भजन की बहुत विद्या लिखी है।।पिता, पिता के भी पितामह, पूर्वज पर भजन अपना प्रभाव दिखाएगा।।जो पूरा का पूरा  स्व गृह में लौट आता है उसे अपने पूर्व जन्म का ज्ञान होता है।।भजन आक्रमक शक्ति नहीं है। समय पर काम आए वो भजन है।।शीतल प्रकाश है।राम प्रेम का अनुगमन करते है,पुनीत प्रेम के पीछे चलते हैं।।जिसके बिना जलन शांत नहीं होती वह भजन है भजन जन्म-जन्म का साथी है।। आज वहां ले जाना है।।भजन साध्य है लेकिन साधन नहीं है।।भजन भक्ति दोनों एक है।।भजन और भक्ति तक पहुंचाने के कई साधन है।।
मानस में छोटा सा प्रसंग पंचवटी में लक्ष्मण जी भगवान राम को ज्ञान,माया,जीव,ईश्वर के बारे में पूछते हैं और भक्ति के बारे में कहते हैं कि मार्ग दिखाओ।।भजन अनुपम है। सुख का मूल है। साधु अनुकूल हो जाए तो भजन प्राप्त होता है।।साधु स्वर्ग नहीं देता,आप जहां हो वहां स्वर्ग पैदा कर देता है।।भक्ति का मार्ग सुगम है।पहला सुगम रास्ता विप्र चरण में अत्यंत प्रेम।। विप्र का अर्थ केवल ब्राह्मण नहीं।।जिनके विवेक की बहुत प्रधानता हो वह विप्र है।।जहां विराग की प्रधानता हो विप्र है।।अपने-अपने कर्मों में कुशलता वो सुगम रास्ता है वेदों ने जिन कर्मों की प्रतिष्ठा की है।। प्रपंच,धोखा, फरेब बाधक तत्व है।।यहां नवधा भक्ति के बारे में गहराई से संवाद हुआ।।नवधा भक्ति सुगम पथ है मानस कथित नवधा भक्ति में भजन केंद्र में रखा है।। किसी साधु पुरुष के असंग चरण में अतिशय प्रेम भजन है।।
बापू ने कहा तेरे प्रकार के कथावाचक। कभी कोई प्रसंग में आंखे भीगी नहीं होती, कोरे रह जाते हैं! और ऐसे ही कथा वाचक टीका भी करते हैं! वह कली प्रभाव है।।
विनय पत्रिका में भी भजन प्रति रहे बीज मंत्र का वर्णन है।। जप भी एक रास्ता है। प्रभु का नाम लेने लेते समय आंख से अश्रु निकले वह सबसे बड़ा तर्पण है।। सहज सनेह घृत-घी है।संशय समिध है क्षमा की अग्नि में जलाकर भस्म कर देना।।ऐसे सुगम मार्ग पर चलने से राम का साक्षात्कार होता है तुलसी कहते हैं मैं उस मार्ग का मार्गी हूं।।तुलसी को पढा नहीं,छुआ नहीं,वह मार्गी के बारे में भी हमें बोलते हैं! बीजमंत्र,राममंत्र जो महादेव जपतै है वो तुलसी ने पसंद किया।रामनाम सबसे बड़ा भजन है राम कथा धारा में शिव और सती का प्रसंग और सती ने राम की लीला की परीक्षा की,विफल हुई। और दक्षि यज्ञ पर शिव आदि देवताओं को निमंत्रण नहीं मिला।।

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