Homeगुजरातसाधु-गुरु का संग भूलाता है तब स्खलन शुरू होता है।

साधु-गुरु का संग भूलाता है तब स्खलन शुरू होता है।

श्रेष्ठ वक्ता का स्थाई भाव यह होना चाहिए साधुओं के पास जो भी सुना है वह उनका नाम लेकर कहते हैं।।
कबीर साहब ने सभी कला को स्पर्श किया है।।
कबीरसाहब ने धर्मधुरंधर नहीं,धर्मदास उत्पन्न किए हैं।।
परमात्मा का मिलन चित् में ही होता है,मन,बुद्धि और अहंकार में नहीं होता।।
दिव्य विचारधारा में कालांतर में कुछ कचरा भी आ जाता है,गंगा गोमुख में है इतनी ही पवित्र गंगासागर में ढूंढनी मुश्किल होती है।।
कबीर साहब विचार का वट है।।
विचार का मूल बुद्धि है।।
निर्णायक बुद्धि विचार वट का आधार है।।
कबीर हुए बगैर कबीर को पहचान नहीं पाएंगे।।
ब्रह्म निरूपण विचार वट का फल है।।

भरुच के पास मैकलसुता पूण्य सलिला मॉं रेवा के तट पर प्रवाहित रामकथा के छठ्ठे दिन आरंभ में कबीर विचारों की प्रस्तुति युवा साहेब मोरबी कबीर आश्रम के महामंडवेश्वर १००८ श्री शिवराम साहब के आश्रित,शब्द ऐर सूर साधक संत श्री कृष्ण दास जी महाराज साहिब द्वारा हूइ।।साहिब ने कबीर ग्रंथ बीजक जो ११ प्रकरणों में फैला हुआ है।जहां कबीर वाणी समाविष्ट है,कबीर अनुभवों का निचोड और गुरुकृपा कैसी होती है उस पर विशेष प्रकाश डालते हुए बताया की कबीर साहेब संबोधन के भी मास्टर माइन्ड थे।।
सौराष्ट्र-कच्छ-गुजरात एवं देशभर के साहेब श्रीओं की उपस्थिति में कथा आरंभ करते हुए मोरारिबापु ने बताया कि चर को अचर करें अचर को चर करें वही ब्रह्म निरूपण।।कभी लगता है रेवा स्थिर हो गई है और वट चल रहा है! श्रेष्ठ वक्ता का स्थाई भाव यह होना चाहिए साधुओं के पास जो भी सुना है वह उनका नाम लेकर कहते हैं।।
शिव भी कहते हैं मैने संतों के पास से सुना है।।
बापू ने कहा मैं जो कुछ बोल रहा हूं मेरा गुरु ही बोल रहा है।यह सब कुछ गुरुमुख है।। साधु गुरु का संग भूलता है तब स्खलन शुरू होता है।। कबीर ने सभी कला को स्पर्श किया है।।
ओशो कहते हैं बाकी सभी संत आकाश के नक्षत्र है और कबीर पूर्णिमा का चांद है। वहां राहु केतु का ग्रहण भी नहीं लगा। कबीरसाहब ने धर्मधुरंधर नहीं धर्मदास उत्पन्न किए हैं।।केतु का मतलब है ध्वज पताका भी कबीर को छूता नहीं।।कबीर में कोई डाघ नहीं है।। कृष्ण और शुक्ल का भेद समाप्त हो गया।पक्ष मुक्त, द्वंद मुक्त महापुरुष है।।
हमारे यहां एक काल में निर्गुण और सगुण का भेद हुआ।।कबीर और तुलसी के बीच में भी सगुण निर्गुण के भेद उत्पन्न करने के प्रयास हुए। कबीर साहब ने भी कितनी सगुण की स्थापना की है। लेकिन हमने एक तरफा ही अर्थ किए हैं।
यहां एक वेद मंत्र-अपाणिपादौ…..का गान करते हुए बापू ने कहा कि यह वेद मंत्र निराकार का प्रतिपादन करता है। कबीर साहब ने निराकार का प्रतिपादन किया है।।यह मंत्र कहता है परमात्मा जिसे पैर नहीं है, हाथ,नाशिका नहीं है,जीह्वा नहीं है। लेकिन कबीर साहब बोले हैं,जीह्वा का आश्रय किया है। पैदल चलकर आए हैं। पैर का भी उपयोग किया है चरण पक्षालन भी किए होंगे। किसी के ऊपर हाथ रखकर हाथ का उपयोग किया है।मुख से खाना खाया होगा।। तुलसी भी यही बात करते हैं। ब्रह्म को हाथ,नासिका,मुंह,शरीर के इंद्रियों की जरूरत नहीं।परमात्मा गोतित है। वह बिना आंख भी देख सकता है। बिना पैर भी चल सकता है। लेकिन हमें उनके पैर पूजने हैं।वह हमें अपनी आंखों से देखे ऐसा करना है। इसलिए तुलसीदास भी सगुन ब्रह्म के उपासना की बात करते हैं।। जिनका चरित्र ब्रह्म में रममाण हो गया हो,वो योगी हो या भोगी कोई फर्क नहीं पड़ता ऐसा शंकराचार्य कहते हैं।।परमात्मा का मिलन चित् में ही होता है।मन,बुद्धि और अहंकार में नहीं होता।।भरत और राम का मिलन चित्रकूट रुपी चित् में हुआ है।।
कबीर ने रूपक बनाकर बातें की है। सगुन का विरोध नहीं किया। यदि परमात्मा को आंख की,पैर की जरूरत नहीं। लेकिन हमारे हाथ पकड़ने वाला कोई हमें चाहिये।जिनके चरण स्पर्श करने हैं ऐसा कोई चरणवाला चाहिए।। ईश्वर आकाश है उसे गणवेश की जरूरत नहीं। लेकिन फिर भी काले और सफेद बादल में मेघ धनुष रूपी कपड़े पहनता है। तुलसी ने भी निर्गुण का प्रतिपादन करके सगुन की मांग की है।। दिव्य विचारधारा में कालांतर में कुछ कचरा भी आ जाता है। गंगा गोमुख में है इतनी ही पवित्र गंगासागर में ढूंढनी मुश्किल होती है।।
कबीर विचार का वट है। कबीर ने विचार का विरोध नहीं किया। विचार वट का मूल क्या है? मन में विचार नहीं आते,केवल संकल्प-विकल्प आते हैं। विचार का मूल बुद्धि है।।और यह बुद्धि विकसित होकर प्रज्ञा,सुमति,सदमती बनती है तब विचार वट बनता है।।सुमति में से विचार का कबीरवट जन्म लेता है।। उनका आधार निश्चयात्मक बुद्धि है। कबीर कहे कमाल को दो बात सिख ले।
कर साहब की बंदगी, भूखे को अन्न दे।।
निर्णायक बुद्धि विचार वट का आधार है।। विचार वट की डाली भी बहुत सी है।।जैसे वेद विचार, विवेक विचार,विमल विचार,वचन विचार,हृदय विचार,ब्रह्म विचार,वर्ण विचार,संतोष विचार,समता विचार,विज्ञान विचार यह डाली है।।और तर्क कुतर्क दृष्ट तर्क,इष्टतर्क विचार वट के पर्ण है।।
कबीर को समझने के लिए तुलसी को देखना पड़ेगा तुलसी को समझने के लिए कबीर को देखना पड़ेगा तभी सेतु बंद होगा।। कबीर हुए बगैर कबीर को पहचान नहीं पाएंगे।।तर्क की हवा का मतलब है अफवाह।। तर्क रूपी पर्ण कब गिर जाते हैं कुछ नक्की नहीं,उसे मौसम लागू पडते हैं।वट को वैसे फूल नहीं होता लेकिन निर्विचार का फूल विवेक विचार वट को होता है।।अनेक बीजक का संग्रह ऐसा वट का फल है:ब्रह्म निरूपण विचार वट का फल है।।और ब्रह्म निरूपण को बिल्कुल सरलता से कान में डालकर फिर पचा सकता है वही रस है।। विवेक भी वट है। विचारों में भी विवेक होना चाहिए कथा प्रवाह में नामकरण संस्कार।।चारों भाइयों के नाम के बाद विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को अपने यज्ञ रक्षा के लिए दशरथ के पास मांगने आए और आखिर में राम लक्ष्मण को लेकर वन में निकलते हैं रास्ते में ताड़का आदि को निर्वाण देते ही राम ने अपनी लीला का आरंभ किया।।

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