कुंभ शुरु होते ही संग्राम रूका,इझरायल और गाझा ने युध्धविराम घोषित किया।।
भारत के संतो की चेतनाओं ने संगम करवाया।।
महाकुंभ के अवसर पर ९५०वीं रामकथा भी हूइ प्रवाहित।।
ये स्विकार का,समन्वय का कुंभ है।।
यह प्रयाग सेतुबंध का कुंभ है।।
ये त्रिभुवनीयमहाकुंभ है।।
भारत सनातन है सनातन भारत है।।
परम पावन महाकुंभ और प्रयागराज के अक्षय वट पर परमार्थ निकेतन आश्रम स्वामी चिदानंद सरस्वती जी की निश्रा में महामंडलेश्वर संतोष दास जी-सतुआ बाबा के दिव्य संकल्प और रमाबहनजसाणी परिवार के मनोरथ से आज मोरारिबापु के श्री मुख से ९५०वीं रामकथा के सूर और शब्द प्रवाहित हुए।।
कथा आरंभ पूर्व कुंभ में ही सब के दुर्लभ दर्शन होते है ऐसे परम पवित्र मुनि रमण रेती से कार्ष्णि मुनि गुरु शरणानंद जी,गीता मनिषीग्याना नंद जी,दशनाम परंपरा के महामंडलेश्वरअवधेशानंद गिरि जी,३० साल पहले केलिफोर्नियाअमरिका की डोकटरी की बडीप्रेकटीस का त्याग कर के हरिद्वार आकर साध्वी बनी भगवती सरस्वती जी और भागवताचार्यभाइ श्री रमेशभाइ ओझा-सब ने अपने शुभ भाव व्यक्त किये।।
माघ मकरगतरबि जब होइ।
तीरथपतिहिंआव सब कोइ।।
देव दनुज किंनर नर श्रेनी।
सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनी।।
इन्हीं बीज पंक्ति से कथा का आरंभ करते हुए बापू ने तीर्थ और तीन प्रवाह मान तीर्थ के संगम में मानसिक रूप से स्नान करके प्रयागराज के प्रगट अप्रगट समस्त चेतनाओं को और भारद्वाज जी के आश्रम की पवित्र भूमि को प्रणाम करते हुए बताया यहां जितने महत् पाद आए,गए,आएंगे सबको प्रणाम।।
प्रतिवर्ष कुंभ में कथा गाने का मनोरथ रहता है और इस साल सतुआ बाबा और परमार्थ निकेतन आश्रम के मुनि दोनों ने संगम करके इस पवित्र भूमि को पसंद किया।।
बापू ने कहा कि देश के यशस्वी प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में यह पवित्र कुंभ का आयोजन और साधु समाज के महत्व के स्थान पर विराजित योगी जी मुख्यमंत्री जी के मार्गदर्शन में इतना अच्छा आयोजन हुआ है।।
पहले ‘मानस संगम’ विषय पर संवाद करने की बात थी लेकिन इतना बड़ा महाकुंभ,इतने सालों के बाद आ रहा है इसलिए इस कथा का विषय-नाम ‘मानस महाकुंभन रखने जा रहा हूं।। सभी महानुभाव के मन से संगम की बात निकल रही है। हम भी संगम की बात ही करेंगे।। पूरी दुनिया में जब संग्राम फैल रहा है ऐसे समय में संगम हो जाए! और ऐसा ही हुआ!! यह कुंभ शुरू हुआ 13 तारीख और 14 आते ही इझराइल और गाझा ने युद्ध विराम घोषित किया।।यह भारत के संतों की चेतनाओं ने काम किया है। किसी भजनानंदीबुद्धपुरुषों की आवाज अस्तित्व ने सुनी है।। और यह कुंभ पूरा होते-होते ही सभी जगह पर संगमी कदम उठे ऐसा बापू ने मनोरथ व्यक्त किया।।
अमृत कहां है?कोई कहते हैं स्वर्ग में। कोई कहते हैं पाताल में।। यदि स्वर्ग वाले अमृत पान करते हैं तो पाताल वाले नहीं जा पाएंगे। पाताल में अमृत पान होता होगा तो स्वर्ग वाले नहीं जा सकते। लेकिन एक ही जगह यह त्रिभुवन का कुंभ है जहां देव, दनुज,किन्नर और पूरी मानव जात कुंभ स्नान और अमृत पान के लिए आता है।।येस्विकार का, समन्वय का कुंभ है।। यह प्रयाग सेतुबंध का कुंभ है रामचरितमानस में 12 प्रकार के संगम है। इसलिए रामचरितमानस पूरा कुंभ है।।हमारा मानस-घट हृदय भी कुंभ है। 9 दिन हम यही बात आगे करेंगे यहां नाम का अमृत,कथा अमृत मतलब लीला का अमृत,रूप का अमृत और धाम का अमृत निकलेगा चार जगह कुंभ होता है।।
और विश्व को यह 12 वस्तु के संगम की बहुत आवश्यकता है।।सतयुग में,त्रेतायुग में और द्वापर में कई मुद्दे पर संगम हुआ लेकिन कलयुग आते ही सेतु टूट गया। तोड़ दिया गया या तो काल ने यह काम किया।।
लेकिन यह कुंभ की असर बहुत अद्भुत होने वाली है सनातन शब्द का अर्थ आप अपनी तरह न कीजिए लेकिन शब्दकोश,हृदय कोष और संतों के मन में जो अर्थ है वह बताइए।। भारत सनातन है सनातन भारत है।। यह त्रिभुवनीयमहाकुंभ है और इसीलिए शिविरों में महापुरुष से महापुरुषों के मुख से सरस्वती मुखर होती है तो गंगा यमुना और सरस्वती तीनों का संगम हो रहा है।।
इतनी छोटी सी भूमिका के बाद मंगलाचरण के दो श्लोक के बाद हनुमंत वंदना करके आज की कथा को विराम दिया गया।।
*बापु की कुंभ कथायात्रा ३६ साल पहले शुरु हूइ।
प्रयागराज पर ये आंठवी कथा है।।*
२१-१-१९८९ में प्रयाग की पहली और कुल कथा क्रम की ३८८ वीं कथा पूर्ण कुंभ में मानस विनय पत्रिका के पद विषय पर गाइगइ।।
२१-१-१९९५ में अर्ध कुंभ पर मानस प्रयाग विषय पर कथागान हुआ जो कुल कथा क्रम की ४८५वीं कथा थी।।
२२-१-२००१ में पूर्ण कुंभ के अवसर पर मानस भरद्वाज-१ कथा का गान हुआ जो कुल कथा क्रम की ५७५वीं कथा थी।।
६-१-२००७ में अर्ध कुंभ अवसर पर मानस त्रिवेणी विषय पर कथा चली जो कुल कथा क्रम की ६६०वीं कथा थी।।
१९-१-२०१३ में मानस तिर्थराज कथा का गान हुआ जो कुल कथा क्रम की ७४१वीं कथा थी।।
१९-१-२०१९ में मानस संगम विषय पर ८४२वीं कथा का गान हुआ था।।
२८-२-२०२० में माघ स्नान पर मानस अक्षय वट कथा का गान हुआ जो ८६२वीं राम कथा थी।।
ये आंठवी कथा १४४ साल में एक बार आते महाकुंभ के अवसर पर प्रवाहित हो रही है जो कुल कथा क्रम की ९५०वीं रामकथा है।।
यहां ३ अर्धकुंभ और ३ पूर्ण कुंभ एवं एक माघ स्नान के विशेष अवसर पर कथा हो चूकी है।।
इस साल शर्दी-ठंड भी बहोत है,भीड भी बहोत है और उत्साह भी चरम सीमाओं पर है।।