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शाहि स्नान तो भाग्य की बात है मगर रोज एक स्नान करता हूं वह है: पाहि स्नान: मोरारिबापु।।

सत्यपुत,प्रेमपुत,सूत्रपुत वाणी समाज में संगम पैदा कर सकती है।।
वाणी,प्राण,श्रवण और चक्षु में सत्य है वह संगम करवा सकता है।।
वह प्रयागपुरुष संगम कर सकता है जिसकी वाणी में श्रद्धा है।।

महाकुंभ मेले में परमार्थ निकेतन आश्रम की संनिधि में प्रवाहित रामकथा के छठ्ठे दिन मलूक पीठाधीश महाराज श्री ने अपना वाणी भाव रखा।।
जैनाचार्य लोकेश मुनि जी एवं उत्तर प्रदेश की गवर्नरश्रीमति  आनंदी बहन पटेल की भी विशेष उपस्थिति रही।।दोनों ने अपने अपने शब्द भाव व्यक्त किये।।दक्षिण भारत के संतो के साथ सेतुरुप बने योगी स्वामी वचनानंद भी उपस्थित रहे।।
बापू ने बताया कि बार-बार पूछा जा रहा है आप स्नान करने गए?शाही स्नान में जाएंगे कि नहीं?यह तो भाग्य की बात है मगर रोज एक स्नान करता हूं वह है:पाहि स्नान।।
तीर्थराज प्रयाग को राजा का बिरूद मिला है तो सचिव भी होगा। प्रयागराज का सचिव-सलाहकार शुभचिंतक-मार्गदर्शन सत्य है।।सत्य पुत,प्रेम पुत,सूत्र पुत वाणी समाज में संगम पैदा कर सकती है।।
छांदोग्य उपनिषद कहता है:वाणी,प्राण,श्रवण और चक्षु में सत्य है वह संगम करवा सकता है।।वह प्रयाग पुरुष संगम कर सकता है जिसकी वाणी में श्रद्धा है इसीलिए यहां लिखा है:
सचिव सत्य श्रध्धा प्रिय नारि।
चारों पदारथ भरा भंडारी।।
ऐसे प्रयाग पुरुष जहां सत्य रूपी सचिव और श्रद्धा रूपी प्रिय नारी है वह चारों पदार्थ से भरा है।। रामचरितमानस में 15 अमृत बताएं वह बात भी बापू ने बताई।।
कथा प्रवाह में राम प्रागट्य का उत्सव अयोध्या में एक महीने तक चला। एक महीने तक दिन ढला ही नहीं।।जीवन की अयोध्या में राम प्रकट होते हैं तब मोह का अंधेरा आता ही नहीं।।ज्ञान और समझ का सदा दिन ही रहता है।।
राम आये थे एक के लिये लेकिन समष्टि के हेतुओं का संगम किया।।
विप्र मतलब घर्म के लिये,धेनु मतलब अर्थ के लिये,सुर मतलब दिव्य समाज के लिये और संतो मतलब मोक्ष और मुक्ति के लिये आये।।
फिर चारों भाइयों का नामकरण संस्कार हुआ।जो सभी को भर देते हैं भरण पोषण करते हैं उनका नाम भरत रखा गया। सबका आधार और राम को प्रिय का नाम लक्ष्मण रखा गया और जिनके नाम स्मरण से शत्रु बुद्धि और शत्रुता का विनाश होता है उनका नाम शत्रुघ्न रखा गया।और जो सुख और आनंद की राशि है जो सबको विराम आराम और विश्राम प्रदान करते हैं वो ईश्वर ब्रह्म का नाम राम रखा गया। दशरथ के वहां राम नाम रखने से पहले भी राम थे। क्योंकि राम सनातन है।आदि है,अनादी है। वर्तमान में भी होंगे और सृष्टि का विनाश के बाद भी राम रहेंगे।। चारों भाइयों के यज्ञोपवित संस्करण हुआ। और विद्या के विद्या के लिए गए और विश्वामित्र यज्ञ रक्षा के लिए दशरथ के दरबार में राम को मांगने के लिए आते हैं
रामचरित मानस मेंन१५ अमृत दिखाये है:
१-नेत्रामृत
२-साधु अमृत
३-संत अमृत
४-वाणी अमृत
५-कृपामृत
६-सरितामृत
७-सौंद्रयामृत
८-रूपामृत
९-स्नेहामृत
१०-प्रेमामृत
११-सुखामृत
१२-नामामृत
१३-श्रवणामृत
१४-वचनामृत
१५-कथामृत

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