Homeगुजरातबुद्धपुरुष ज्यादा नहीं बोलते

बुद्धपुरुष ज्यादा नहीं बोलते

स्मरण कभी भी हो सकता है,भजन के लिए समय निश्चित होता है।।
राम महामंत्र है,बीज मंत्र,शिव मंत्र,पार्वती,वाल्मीकि का मंत्र और पूरे जगत का मंत्र है।।
राम नाम रटन में शोषण नहीं लेकिन पोषण होना चाहिए।।
जनक राज योगी है,भोग के नीचे योग छीपाकर रखा है।।
चरित्रवान की ही कथा होती है।।
अवधूत शिरोमणी संतराम जी महाराज की पावन,पुनित,प्रवाही,परोपकारी परंपरा में नडीआद से चल रही रामकथा के छठ्ठे दिन पर आरंभ में ऋषिकेश कैलाश आश्रम के वेदांत व्याकरणी स्वामी सच्चिदानंद गिरी ने अपना प्रवचन दिया।।
आज भागवत कथाकार जिग्नेश दादा,लिंबड़ी मोटा मंदिर ललित किशोर दास जी महाराज और अनेक संत महंत और कथा जगत उपस्थित था।।
स्वामी जी ने कहा कि योगीराज मानस संतराम जी का वांग्मय स्वरूप है।अपने घर में स्थापित करना चाहिए। जैसे श्रीमद् भागवत श्री कृष्ण का और रामचरितमानस भगवान राम का वांग्मय स्वरूप है।। बापू ने कहा कि यह ग्रंथ समाज को दुर्भाव से मुक्त करने के लिए सूत्र देता है। लेकिन परस्पर दुर्भाव मुक्त होना भी जरूरी है।। यहां लिखा है आहार और निद्रा का ध्यान रखना जिसे योग मार्ग में प्रति होना है।।शंकराचार्य जी ने छह सूत्र बताए अपने हित के अनुकूल भोजन करना। आहार और निद्रा के बारे में भी कहा है। नित्य एकांत में रहना। कोई कोना पकड़ के बैठ जाना! सामने वाले आदमी का हित हो उतना एक बार कह कर चुप हो जाना।। बुद्धपुरुष ज्यादा नहीं बोलते। ओशो कहते हैं मैं जवाब नहीं देता मैं सबको जागृत करता हूं।। कम से कम विहार करना और अपने आप को खुद काबू में रखना और नियत समय पर भजन में बैठ जाना।। स्मरण कभी भी हो सकता है,भजन के लिए समय निश्चित होता है।।
बापू ने कहा कि विभीषण के घर में नव प्रकार के तुलसी हनुमान जी ने देखे।।श्रवण तुलसी,कीर्तन, स्मरण,पद सेवन,अर्चन,वंदन, दास्य और आत्म निवेदन तुलसी है।।वो वीभीषण की नवधा भक्ति है अयोध्या के इष्ट देव श्री रंग स्वामी और लंका के इष्ट देव नृसिंह है।।
किसी के शरण में जाना दासत्व है।।
सात रतन हमारे वेद ने दिखाए हैं:आंगन हो ऐसा घर,सात्विक भोजन,लोक लज्जा टिकी रहे ऐसे वस्त्र अच्छी शिक्षा,अच्छी औषधि की व्यवस्था,हमारे संस्कार बने रहे ऐसे मनोरंजन के साधन होने चाहिए ऐसा हमारे देश का वेद और वेद पुरुष ही कह सकते हैं।। यह सात रत्न है।।
बापू ने कहा राम भी योगी है।।शुकदेव जी को भी योगी कहा है।।जनक योगी है:
योग भोग महुं राखउ गोइ।
रामहि बिलोकत प्रगटेउ सोइ।।
ऊपर ऊपर से संसारी और अंदर से परम योगी है।। राम को देखकर योग बाहर निकलता है।।
राम कथा के प्रवाह में राम जन्म के बाद एक महीने का दिन हुआ।।फिर उपनयन संस्कार और नामकरण संस्कार के वक्त दशरथ ने वशिष्ठ को बताया कि अपनी अंतःकरण की प्रवृत्ति के मुताबिक नाम रखना।। जैसे रविशंकर महाराज का नाम बोलने से गुजरात ऊंचा दिखता है।।गांधी जी का नाम बोलने से पूरा भारत उज्जवल दिखता है वैसे राम का नाम लेने से अखिल लोक उज्जवल दिखता है।। यह चारों भाइयों वेद के महा वाक्य है राम महामंत्र है,बीज मंत्र,शिव मंत्र,पार्वती,वाल्मीकि का मंत्र और पूरे जगत का मंत्र है।। राम नाम रटन में शोषण नहीं लेकिन पोषण होना चाहिए।। यहां लिखा है आधी अर्धाली में चरित्र की कथा और आधी में कथा गान लिखा है।।
जिनका चरित्र उत्तम हो उनकी ही कथा का गान होता है।।चरित्रवान की ही कथा होती है।। विश्वामित्र का अयोध्या में आगमन, यज्ञ रक्षा के लिए राम लक्ष्मण निकलते हैं।रास्ते में ताडका का वध हुआ अहल्या का उद्धार करके जनकपुर में निवास करते हैं।।

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