गुजराती घर में रहनी चाहिए।।
अपनी मां घर में नहीं रखोगे तो कौन वृध्धाश्रम में भेजेंगे!
अपनी मातृभाषा कुलदेवी है।।
हमारे घर में अशांति क्यों है? घर में एक भगवान है, खोजो!
आज अषाढ़ी बिज,जगन्नाथ पुरी और अहमदाबाद और पूरे देश में रथयात्रा का माहौल।
बापू ने कल वंदना प्रकरण में बताया की शांति हमें हजम नहीं हो रही है।।और बहुत अरसे से चल रहे युद्धों में बच्चों की मौत से व्यथित होकर बापू ने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि बच्चे खाने के लिए भीख मांग रहे हैं। परमिशन नहीं मिलती वरना हम खाने के लिए प्रसाद के रूप में सब कुछ वहां पहुंचाते।।
आज दूसरे दिन रामकथा के आरंभ में बापू ने बताया आज रथयात्रा का दिन। प्रथम नंबर की रथ यात्रा मोक्षदाई नगरी जगन्नाथ पुरी की है। अहमदाबाद की रथयात्रा दूसरे नंबर पर और भावनगर में निकलती रथयात्रा तीसरे नंबर पर है।। गुजरात भारत से आए श्रोताओं में गुजराती कवि तुषार शुक्ल ने जगन्नाथ के बारे में अपनी कविता भेजी,बापू ने पठन किया।।
एक बहुत अच्छी कथा सुनाते हुए बापू ने बताया कि एक प्रांत में पानी की बहुत तंगी थी।।तीन साल से बारिश नहीं हुई थी।कड़क सूचना आई पानी बचाओ एक-एक बूंद बचा रहे थे।।और एक बालक अपने किचन में से मुट्ठी में कुछ लेकर दूर पैर के पीछे जंगल में जाता था। वापस आकर फिर किचन में जाता था, फिर बाहर दौड़ के जाता था।। मॉं देख रही थी। बार-बार ऐसा कर रहा था और मां ने चुपके से पीछे जाकर देखा तो बालक एक मृग के बच्चे को जो पानी के बगैर तड़प रहा था, एक-एक बंद मुख में रख रहा था और तीन चार बूंद पानी पीलाने से जो मृग का बच्चा पानी के बिना मर रहा था, उनमें जीवन प्रकट हुआ।। फिर बचा हुआ पानी बालक ने वृक्ष के मूल में रख दिया।। तब मॉं कहा ऐसा क्यों किया? बालक ने कहा कि मुझे एक जीव और एक वृक्ष को बचाना था।। मां की आंख में आंसू आ गए बापू ने बताया हमारी वृत्ति प्रकृति की वैरी हो गई है जैसे ही मॉं की आंख से आंसू गिरे आकाश भी बरस पड़ा!
बापू ने बताया वृक्ष बचाओ, जल बचाओ, जीव बचाओ।।
दूसरी बात बापू ने यह भी बताई कि इसरो के प्रेसिडेंट एस सोमनाथ ने अभी एक लेख लिखा है। और सावधान करते हुए बताया कि कुछ साल पहले एक उल्का जहां टकराई वहां बहुत माइल का जंगल नष्ट हो गया था।। और फिर २५ साल के बाद ऐसा ही होने जा रहा है तब हम सब वैज्ञानिक स्पर्धा छोड़कर, सब मिलकर इकट्ठे होकर बचाना है।। क्योंकि विज्ञान रूपी रॉकेट में अध्यात्म बूस्टर है।। विनोबा जी भी कहते थे विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय हो।।
बापू ने बताया कि रामकथा को पंचम वेद कहा है भगवान शिव के पांच मुख से निकली यह कथा है। वेद में पांच प्रकार के सूक्त है। एक सूक्त है अध्यात्म सूक्त।जहां दर्शन है। दूसरा संवाद सूक्त है। तीसरा उर्मी सूक्त है, जहां पर्जन्य का वर्णन है। चौथा प्रार्थना सूक्त है, और पांचवा निरपेक्ष सूक्त है।।
बापू ने यह भी बताया की गुजराती घर में रहनी चाहिए। क्योंकि अपनी माॉं घर में नहीं रखोगे तो कौन वृध्धाश्रम में भेजेंगे! अपनी मातृभाषा कुलदेवी है।।
बापू ने कहा:
करीब है तो इशारा कर!
चला गया हो तो पुकारा कर!
आज बापू ने उत्कंठा शब्द पर रसभरी बातें करी और कहा कि पांच उत्कंठा के बिंदु है: एक है परम प्रेम हो, फिर साक्षात्कार हो, जो परम हो उसके प्रति द्वेष ना हो, उसके बारे में बातें करें ऐसा साधु का मिलन हो और कोई मंत्र मिले।।
एक रसभरी कहानी कहते हुए बापू ने कहा हिमालय की तलेटी में बौध मठ था। बहुत छात्र पढ़ते थे। अचानक क्या हुआ सभी छात्र चले गए! कुछ साधु शिक्षक बच्चे रहे आश्रम खाली हो गया तब मुख्य साधु ने मीटिंग बुलाकर पूछा कि सब चले क्यों गए? जवाब किसी के पास नहीं था।। तब बताया गया कि यहां से भी आगे चोटी पर एक परम साधु रहता है। वह साल में एक बार आंख खोलता है। एक बार ही होंठ खुलते हैं। वहां जो उनके पास हमारा जवाब होगा। सब निकल पड़े और प्रतीक्षा में बैठे।साधु ने आंख खोली सब ने मिलकर पूछा कि हमारे यहां से सब चले गए, साधु ने कहा आपके मठ में एक भगवान है उसे पहचानो! फिर होंठ बंद हो गए।। सब नीचे आकर दूसरे ही दिन से एक दूसरे के प्रति व्यवहार ठीक होने लगे। क्योंकि इसमें कौन भगवान है किसे पता? और एक साल में सब हरा भरा हो गया।।
बापू ने बताया हमारे घर में अशांति क्यों है? घर में एक भगवान है, खोजो!
बापू ने यह भी कहा कि सत्संग से भी मूल्यवान है स्वसंग।। सत्संग का फल स्वसंग है।। हमारी वृत्ति प्रकृति की वैरी बन चुकी है। इतनी वस्तु एक जगह इकट्ठी हो जाए तो जगत को बहुत नुकसान होगा संपत्ति, ज्ञान और सत्ता। इसका वितरण होना चाहिए।।सत्ता संपत्ति और सन्मति एक जगह पर केंद्रित होने से जगत को बहुत नुकसान करेगी।। मंत्राष्टक कथागन में पहला मंत्र साबर मंत्र बताया है शिव और पार्वती कैलाश पर बैठे थे। नारद आए पूछा कि पृथ्वी पर क्या स्थिति है? नारद ने कहा कलि प्रभाव है और फिर शिव और पार्वती ने साबर मंत्र की झाल उत्पन्न की।। बापू ने कहा कि हम २० हर्ट्झ से लेकर २०००० हर्ट्झ की तरंग लंबाई के बीच में जी रहे हैं।। लेकिन २० हर्ट्झ से नीचे के तरंग जो सुन सके वह शुद्ध हो जाते हैं।।२०००० से ऊपर के तरंग सह सके वह बुद्ध हो जाते हैं।। यह साबर मंत्र के बारे में बापू ने कहा कि सही शब्द शाबर है।। साबर नाम का घास भी है और एक हिरन जिनके सिंग डेढ़ गुने ज्यादा लंबे होते हैं यह साबर हिरण घने जंगल में नहीं रहते हैं क्योंकि डाली में सिंग फस जाते हैं।। साल में दो बार सिंग गिर जाते हैं और फिर वर्षा ऋतु में नए निकलते हैं।। तो साबर मंत्र भी ऐसा ही है। कुछ निश्चित नहीं कभी सिंग फूटे कब गिरे। ऐसा सर्जन, कोई बंधारण भी नहीं, कोई अर्थ भी नहीं, कोई मैल भी नहीं। ठीक से जप भी नहीं होता।। लेकिन फिर भी सामान्य जन श्रद्धा से जाप करें तो काम निकल जाता है। जैसे सांप उतारने का मंत्र भी साबर मंत्र है।।
फिर वंदना प्रकरण में नाम वंदना के बारे में पूरा प्रकरण बापू ने संवाद रूप से बात कर आज की कथा को विराम दिया।।