पांच मिनट शुद्ध हृदय से हरिनाम लो,पाप की औकात नहीं कि आपके पास रहे।।
किस के पास बैठने से आनंद आयेगा?
जो निष्क्रिय हैं,जिनका होना ही पर्याप्त है ऐसे आदमी के पास बैठना आनंद देता है।।
जो हर हाल में शांत है उनके पास बैठने से आनंद मिलता है।।
वातावरण में वरसादी ठंड और आह्लादकता के साथ स्थानिकमातायें बहनों का उत्साह और ज्यादा उत्साहित करता है।।जहां ये कथा का गान हो रहा है वो देवलीबगडमलारी गांव,चमौली के पास स्थित,छठ्ठे दिन की कथा में प्रवेश करते हुए पहले यहां पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देते हुए बातें की।एक प्रश्न ऐसा मिला किसी ने पूछा था कि थोड़े दिन पहले वृंदावन में एक महापुरुष की वीडियो देखी थी उसमें बताया था कि दांपत्य जीवन में किसी कारणवश जघन्य पाप हो जाए तो उसके प्रायश्चित के लिए श्रीमद् भागवत या गीता के श्लोक सुनने का प्रावधान बताया है।।और पूछा कि हम व्यास पीठ के आश्रयी है और व्यास पीठ से दूसरा कोई समाधान सुनना चाहते हैं।। बापू ने कहा कि कोई भी महापुरुष कोई उपाय बताएं तो वही करो! आप व्यास पीठ के आश्रय में है तो मैं कहूंगा वह मान लेंगे लेकिन जो महापुरुष ने कहा उनसे यह विपरीत होगा।। वैसे सभी महापुरुषों के बीच एक अमृत सेतु होता है। वह पत्थर का या लोहे का नहीं।।जिससे आपने पहले सुना उसे पता लगे कि मेरा नहीं माना तो बुरा भी लग सकता है।।भागवत का पाठ, गीता का पाठ करो यदि कनिष्ठ लगे तो महापुरुष से पूछ कर रामचरितमानस का पाठ करो।।कोई भी पाप ऐसा नहीं जो हरिनाम से ना मिटे।। मैं तो यह भी कहूं कि रामचरितमानस भी नहीं केवल हरिनाम, हरि नाम में भी आपको जो नाम में रुचि है,ज्यादा नहीं पांच मिनट शुद्ध हृदय से हरिनाम लो,पाप की औकात नहीं कि आपके पास रहे।। और किसी ने पूछा था कि कभी आंखें भीगी हो जाती है अकारण ऐसी अनुभूति होती है उसे क्या कहें?आनंदानुभूति कह सकते हैं।। लेकिन यह स्थिति कुछ समय चलती है। निरंतर ऐसी स्थिति में रखने का कोई मार्ग नहीं। केवल कृपा।।बापू ने कहा कि मेरा यह अनुभव है केवल बुद्धपुरुष की कृपा का यह कृपानंद है।। सीमित साधन से असीमित आनंद की उपलब्धि मुश्किल है।।अचानक आंख भीग जाए ये कर्म नहीं बुद्धपुरुष की कृपा और करुणा है।। दया गुण है जिसमें वह गुण है वह दयालु है।।
अति कोई भी चीज अच्छी नहीं।अत्यंत सुख भी अच्छा नहीं अत्यंत दुख भी अच्छा नहीं।। विवेकानंद जी ने झहर विष की व्याख्या करते हुए कहा था एनीथिंग इन एक्सेस इस पोइझन।। हद से ज्यादा मात्रा भी विष है।।
पूर्ण शरणागति की बात और है लेकिन अंध बनकर सब कुछ स्विकार कर लेंगे तो हम प्रश्न नहीं कर पाएंगे।।रामचरितमानस के पूर्ण ज्ञानियों ने भी पहले संशय किया है।।
पूर्ण निष्ठा किसे कहते हैं?पांच निष्ठा है:: गुरु ने दिए शब्द पर निष्ठा।। सद्गुरु बैदबचनविश्वासा। स्पर्श निष्ठा कोई पहुंचे हुए महापुरुष हमें छू लिया वो स्पर्श मूल से फूल तक हमारे हर मनोरथ पूरा कर देगा।। रस निष्ठा-बुद्ध पुरुष जहर भी दे उसे पी लेना वह रस निष्ठा है।। और रूप निष्ठा आंतर और बाह्य रूपों में निष्ठा।। गंध निष्ठा-जीन को अपने गुरु की नूरानी खुशबू,डीवाइनस्मेल आती है।। आप अन्यथा ना लेना लेकिन मेरे त्रिभुवन दादा के कपड़ों की गंध आज भी आती है,यह मेरी गंध निष्ठा है।।
पाकिस्तानी शायरा परवीन शाकिर कहती है::
तेरी खुशबू का पता करती है।
मुझ पर एहसान हवा करती है।
मुझको इस राह पर अब चलना ही नहीं।
जो मुझसे तुझे जुदा करती है!
किस के पास बैठने से आनंद आएगा? उपनिषद में एक मंत्र है-निष्कलंनिष्क्रीयंशांतमनिर्वद्यंनिरंजनं वहां कहते हैं जो सभी कला से मुक्त है ऐसे बुध्धपुरुष के पास बैठने से आनंद मिलता है।।जो निष्क्रिय हैं। जिनका होना ही पर्याप्त है ऐसे आदमी के पास बैठना आनंद देता है।। जो हर हाल में शांत है उनके पास बैठने से आनंद मिलता है।। जो अनींदनीय है उनके पास बैठने से और जो निरंजन निराकार निस्पृही है उनके पास बैठने से आनंद मिलता है।।