वैसे तो मेरे लिए कोई उद्देश्य नहीं है,तुलसी के कदम पर कहूं तो-व्यास पीठ का उद्देश्य: निरूद्देशे…निरुद्देशे…निरूद्देशे..
कथा साधन नहीं साध्य है।।
हमारी आंखों से दिखाई दे वह आकाश और जो हम ना देख पाए वह अवकाश है।।
आदमी जितना रिक्त इतना विररक्त।।
पोथीसत्व बनें,कथागत बनें।।
“मेरी रामकथा ज्ञान यज्ञ नहीं गान यज्ञ है।जहां गान है वहां प्रेम भी होगा।।”
संयुक्त राष्ट्र हेडक्वार्टर (युनो)न्यूयॉर्क से प्रवाहित रामकथा के तीसरे दिन एक जिज्ञासा से कथा शुरू की। पूछा है विश्व संस्था यूएनओ के इस बिल्डिंग में नवदिवसीय कथा का उद्देश्य क्या है? बापू ने कहा व्यवहार जगत सदैव उद्देश्य ध्यान में रखता है।।अपना गोल अपना लक्ष्य ध्यान में रखता है। वैसे तो मेरे लिए कोई उद्देश्य नहीं है। तुलसी के कदम पर कहूं तो गोस्वामी जी के उद्देश्य, में भी तुलसी को गा रहा हूं। व्यास पीठ का उद्देश्य निररद्देशे…निरुद्देशे…निरूद्देशे.. कथा के माध्यम से कोई अपना उद्देश्य सिद्ध कर लेता है।। कथा को हम साधन बनाते हैं तो और बात बनती है।। कथा साधन नहीं साध्य है।। कथा फल नहीं है।।
बुद्धकालीन दो शब्द:तथागत-बहुत प्यार शब्द है और बोधिसत्व वह भी प्यारा शब्द है।। किसी ने यह भी पूछा है इन दिनों में बहुत जल्दी-जल्दी कथा गा रहे हैं आपको १००८ कथा पूरी करनी है क्या? बापू ने कहा आप चिंता मत करो, मेरा कोई लक्ष्य नहीं है।
ओशो कहते हैं गुरु शिष्य के बीच में कैसा संबंध होता है? गुरु कुछ नहीं देता, शून्य देता है और शून्य को लेने के लिए जो तत्पर होता है वह शिष्य है।। दोनों के बीच में शून्य का विनिमय होता है। शून्य के अतिरिक्त कुछ नहीं देता।।
आकाश और अवकाश में क्या अंतर है?बापू ने कहा हमारी आंखों से दिखाई दे वह आकाश और जो हम ना देख पाए वह अवकाश है।। यह भी कहा की गोलियां फूल बन जाए और बम है वह हमारे कावड़ यात्रा के बोल बम बम बोल हो जाए!
आदमी जितना रिक्त इतना विररक्त।। चारों ओर पूरी दुनिया हो मगर भीतर से जितना रिक्त बनते जाए उतना विररक्त होंगे।। गोस्वामी जी ने तीन उद्देश्य लगाए: स्वांत: सुखाय-निज सुख के लिए रघुनाथ गाथा।। मोर मन प्रमोद-मेरे मन को बोध हो और निज गिरा पावन करने हेतु-मेरी वाणी पवित्र हो जाए।।
बापू ने कहा मेरी रामकथा ज्ञान यज्ञ नहीं गान यज्ञ है।जहां गान है वहां प्रेम भी होगा।।
मुझे पूछा है तो कहो मेरा कोई उद्देश्य नहीं। जो हो रहा है उसका स्विकार किया जा रहे हैं।।१००८ कथा हो भी, न भी हो!
बापू ने कहा हम तथागत नहीं हो रहे। कथागत हो सके। उद्देश्य के रूप में नहीं आनंद के रूप में।। बोधिसत्व उद्देश्य नहीं है। पोथी सत्व उद्देश्य बने।
हम पोथी सत्व बने,कथागत बने।।
यूएनओ के १७ उद्देश्य है। यह देखता हूं तो लगता है उत्तराकॉंड में राम राज्य का वर्णन है वहां बीज पड़े हैं।।
बापू ने उत्तर भारत में सावन चल रहा है दूसरा सोमवार है, महाकाल के मंदिर में भगवान शिव का रुद्राष्टक चल रहा है वह गाकर महादेव की यादों से पंडाल भर दिया।।
और फिर खग,मृग,सुर,असुर, नर, मुनि सब चरण के उपासक हैं वह विस्तार से समझा कर दादा की अमृतवाणी के छींटे भी बांटे।।
बापू ने महाभारत के पात्रों के नाम के सात्विक सात्विक और वास्तविक अर्थ बताते हुए कहा कि भीम का अर्थ है: साहसी। युधिष्ठिर जो द्वंद में स्थिर है और यह बताया कि रामराज लाने के लिए साहस करना चाहिए। यूनो को कुछ साहस भी करना चाहिए किसी देश के दबाव के आए बिना।।
अर्जुन का अर्थ है जो संवेदनशील है। विश्व शांति के लिए संवेदना होनी चाहिए। रामायण का रा महाभारत का म मिलाकर राम बनेंगे। ऋषभदेव का र और महावीर स्वामी का म लें तो भी राम बनेंगे।। पूरा जगत राम मय है।।
बापू ने कहा की साहस स्थिरता रुजुता के साथ नकुल का मतलब है वैराग और त्याग और सहदेव का अर्थ है संयम।। सहदेव बनना बड़ा कठिन है। क्योंकि सब कुछ जानते हुए भी चुप रहते हैं।। कुंती का मतलब है तिक्ष्ण। कुंती धर्म और भीम की मां है। और माद्री कौन?मा नकारात्मक शब्द है,आद्री का अर्थ है पर्वत।मा-आद्री-माद्री: जो पर्वत नहीं वह माद्री, जो जड़ नहीं चैतन्य से भरी है, दो रत्न सहदेव और नकुल दिए हैं।।
किसी ने पूछा कि आप की कथा में क्या लाभ होगा बापू ने कहा लाभ के लिए मत आना। लाभ नहीं होगा,शुभ होगा।। क्योंकि हर लाभ शुभ नहीं होता लेकिन छोटा सा शुभ अनेक लाभों से ज्यादा है। तुलसी जी के राम का विराट रूप का वर्णन गान करके चौपाइयों से बापू ने पंडाल भर दिया और साथ ही साथ नरसिंह मेहता की हुंडी का गान करके रास का भी आयोजन किया।।