*मैं बिझी हूं इसका कारण है मैं इझी हूं:बापु*
*रामकथा त्रिभुवनिय कोष है,यहां सब कुछ है।।*
*वेद का भी रक्षण होना चाहिए,वेद जैसा वृद्ध कोई नहीं है।।*
*वेद का महिमा भी रहना चाहिए।।*
*बापू ने कहा कि गायों का जतन करें,केवल पूजा ही नहीं गायों को प्रेम भी करो।।*
*रामायण केवल हिस्ट्री नहीं है,बहुत बड़ी मिस्ट्री है।।*
*साधु वाणी में वेद भी है,मुनियों का मौन भी है और ऋषियों की ऋचा भी है।।*
राजकोट-गुजरात में चल रही नव दिवसीय रामकथा के ऑंठवे दिन पर बापू ने कहा एक उपकारक हेतु के साथ आयोजित रामकथा सब प्रवृत्ति के संरक्षक स्वामी परमात्मानंद जी के साथ संतराम मंदिर नडियाद के वर्तमान पीठाधीश रामदास बापू और संदेश लेकर आए हुए संत और द्वारिका के केशवानंद जी भी विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे।।
बापू ने एक मंत्र से कथा का आरंभ करते हुए कहा:
*मूले ब्ह्मा त्वचा विष्णु शाखे रुद्र महेश्वर:।*
*पत्रे पत्रे तुं देवस्त्राम वृक्षराज: नमोस्तुते।।*
शास्त्र कहता है वृक्ष के मूल में ब्रह्मा,वृक्ष की त्वचा में भगवान विष्णु का वास है।। शाखों में रुद्र महेश्वर शिव और पत्र-पत्र हर एक पर्ण पर तमाम देवताओं का और देवों के भी देव योगेश्वर कृष्ण निवास करते है ऐसे वृक्ष राज को-ऋषि कहते हैं हम प्रणाम करते हैं।।ऐसे वृक्ष का महिमा गान हमारे शास्त्र में हुआ है ऐसे ही वृध्ध के चरण में भी ब्रह्मा है क्योंकि आज हम देख हमारी अगली एक दो पीढ़ी के निरीक्षण से मालूम होगा कि यह सर्जन उनके पैर से हुआ है।। वृद्ध को प्रणाम वह ब्रह्मा को प्रणाम के बराबर है।। शांति पर्व में भिष्मन से प्रश्न पूछा तब कहते हैं श्रेष्ठतम धर्म को प्रणाम करना चाहिए।। भीष्म भी वृद्ध है।। वाल्मीकि रामायण की अहल्या और तुलसी की अहल्या दोनों थोड़े से भिन्न है।। तुलसी की अहल्या में खाली आश्रम है।सन्नाटा है, चट्टान वायु भक्षा पड़ी है।।भगवान जिज्ञासा करते हैं और वाल्मीकि में तेजस्वी प्रतिभा संपन्न आश्रम में भारतीय नारी की आत्मा,प्रतिभा,अलंकार जैसे
पुष्प वाटिका में सीता जी के चार लक्षण दिखाये हैं शोभा,शील और स्नेह आदि अहल्या में भी दिखते है।। वाल्मीकि रामायण के राम,लक्ष्मण झुक कर अहल्या के चरण में वंदन करते हैं।। श्रेष्ठ को वंदन करने चाहिए।।किसी भी वृद्ध वयोवृद्ध, ज्ञान वृद्ध, अनुभव वृद्ध, वैराग्य वृद्ध, धर्म वृद्ध, स्मृति वृद्ध, और तपो वृद्ध होते हैं।। ऐसे सात-सात वृद्ध रामचरितमानस में दिखाएं।।
राम कथा त्रिभुवनिय कोष है,यहां सब कुछ है।। बापू ने कहा कि राजकोट हर समय और कायम राम मय रहे ऐसी प्रार्थना भी मैं करूंगा।। कृष्ण पांडव को मिलने जाते हैं तब धर्मराज को नमन करते हैं। भीष्म के चरण स्पर्श करते हैं। युवाओं को यह सीखने की जरूरत है।।पांच हजार साल हुए अब भी कृष्ण अप्रासंगिक नहीं है।।अर्जुन को गले लगाते हैं क्योंकि वह शखा है और नकुल और सहदेव छोटे हैं उनका सर पड़कर उसे मिलते हैं।।
जिसने हमारा जीवन का सृजन किया ऐसे कोई भी वृद्ध हमारा ब्रह्मा है।। हमारा पालन पोषण करने वाला बुद्ध हमारा विष्णु भी है और हमारे अंदर रहे दोष और कसाई,हमारी खराब आदत अन आवश्यक को हरने वाला वृद्ध हमारा महादेव महेश है।।और तमाम प्रकार की प्रक्रिया को वृद्धो के पर्ण है। वेद का भी रक्षण होना चाहिए वेद जैसा वृद्ध कोई नहीं है।।वेद का महिमा भी रहना चाहिए।। बापू ने कहा कि गायों का जतन करें,केवल पूजा ही नहीं गायों को प्रेम भी करो।।रामायण केवल हिस्ट्री नहीं है बहुत बड़ी मिस्ट्री है।।
बापू ने कहा जो हिंदुस्तानी हो तो कारण बगैर वृक्ष को मत काटे।अति आवश्यक हो तो पहले पांच वृक्ष बॉयें और बाद में ही एक वृक्ष काटना चाहिए।। यह वृद्धाश्रम नहीं वृद्ध मंदिर है।। बापू ने कहा कि मैं बिझी हूं इसका कारण है मैं इझी हूं।।मैं सहजता से सबको मिल सकता हूं।। हमारे चार प्रकार की वाणी परा,पश्यंति, मध्यमा,वैखरी तो है ही।लेकिन और एक चार वाणी एक वेदवाणी, दूसरी ऋषियों की वाणी,तीसरी आचार्य की वाणी है।। लेकिन आचार्य के अनुयायियों ने आकर बहुत ज्यादा ग्रुप के सृजन किया।। लेकिन विश्व को अब जरूरत है साधु की वाणी।।साधु वाणी में वेद भी है, मुनियों का मौन भी है और ऋषियों की ऋचा भी है।।
कथा प्रवाह में संक्षिप्त रूप में भूसुंडी रामायण का आश्रय लेकर बापू ने कहा कि नवदिवसीय कथा जिन्होंने सुनी होगी उनके पितृओं जहां भी होंगे नृत्य करते होंगे।। राम जन्म के बाद अयोध्या में एक महीने तक दिन रहा।।फिर नामकरण संस्कार,विद्या संस्कार,उपनयन संस्कार के बाद विश्वामित्र के साथ लीला का आरंभ करते हुए राम ने एक ही बाण से ताड़का को मुक्ति दी ।।और बापू ने कहा आकाश सनातन का परिचय है।। हर एक काल में प्रासंगिक हो और वर्तमान में प्रत्यक्ष हो वो सनातन है।। सना और तन का समन्वय है।। सूरज भी अस्त होगा। चंद्र नक्षत्र पृथ्वी भी नष्ट होंगे लेकिन आकाश रहेगा।। सभ्यता लंबी होती है,लेकिन धर्म ऊंचा होता है।। राम अहल्या के आश्रम में आए तुलसी जी ने यहां त्रिभंगी छंद लिखा है। क्योंकि अहल्या का पाप,ताप और संताप राम की चरण रज ने ले लिया।। राम विचारक,सुधारक,स्वीकारक ही नहीं उद्धारक भी है आज इस रामकथा में सबसे ज्यादा श्रोताओं की हाजरी थी और प्रसाद पंडालों में भी लंबी-लंबी लाइन थी। बहुत लोगों ने प्रसाद भी लिया होगा फिर राम लक्ष्मण और विश्वामित्र जनकपुर में आए और राम विवाह में शिव का धनुष मध्य में से तोडा उनके अलग-अलग भाव संतों और महात्माओं से सुने हुए भाव को बापू ने रखा।।और राम विवाह के प्रसंग के बाद अयोध्या से विश्वामित्र ऋषि विदा लेते हैं और बालकांड की समाप्ति पर आज की कथा का विराम हुआ।।
कल इस कथा का विराम दिन है कथा सुबह १० बजे शुरू होगी।।