शास्त्र शस्त्र की तरह खटखटाने के लिए नहीं है।। योग का दूसरा कदम अपरिग्रह है।।
“बोलता रहा हूं,बोलता रहूंगा और बीच में जो कुछ होगा,अगले जन्म में फिर आकर बोलना ही है:बापु”
“भगवद कथा में अरुचि हो उसे खास भगवद कथा सुननी चाहिए:भाइश्री”
जो शांत हो,शुद्ध हो और समत्व से भरा हो,वह योगी है।।
संतराम महाराज की पावन ज्योति की संनिधि में प्रवाहित रामकथा के आंठवे दिन आरंभ में विशेष वक्तव्य की श्रेणी में भाइश्री रमेशभाइ ओझाने अपना वक्तव्य देते हुए बताया की:श्रीमद्भागवत में व्यास जी श्रोताओं को रसलंपट कहते हैं।।वक्ता की कर्मेंद्रिय और श्रोता की ज्ञानेंद्रिय के साथ मन जुड़ रहे तो सार्थकता बनी रहती है।।भगवद कथा में मुख परोसतता है और कान ग्रहण करता है।।भगवद कथा हितकर होती है।।करैला और कृष्ण किसी भी रूप में आए अच्छे ही लगते हैं।।व्यास पीठ की बात भी कभी कटु लगे फिर भी हितकर्ता होती है।। जैसे कोई तूफानी बच्चों को मॉं पकड़कर स्नान करवाती है और आंख दिखाकर बैठा देती है।।कथा रूपी मॉं भी मन रूपी बालक के साथ वही काम करती है।।मन को शुद्ध करने के लिए श्रीमद् भागवत से अच्छा कोई साधन नहीं।।क का मतलब रस और उसमें स्थित कर दे वही कथा।। कथा भटकते हुए मन को पकड़ कर लाती है। मन रस ही खोजता है और कथा रसाल होती है इसीलिए मन कथा में लग जाता है।। और फिर मन को कथा स्नान करवा कर शुद्ध करती है।। कथा के पांच फल है:अरति को दूर करें, तृष्णा को भगाती है,अविलंब शुद्धि होती है, हरी में अनुराग भक्ति उत्पन्न होता है और हरी सामने से आते हैं।।भगवद कथा में अरुचि हो उसे खास भगवद कथा सुननी चाहिए।।
यहां सोला भगवत विद्यापीठ से भागवत ऋषि भी आए अपने शब्द भाव रखते हुए उन्होंने बताया संतराम मंदिर सभी संतों का पीयर है।।श्रीमद् भागवत का महत्व धुंधुकारी की कथा हमें शून्य करता सिखाती है। शून्य होते सिखाती है और आखिर में आश्रय पूर्ण में हो जाना भी सिखाती है यह कथा में विधिविध प्रकल्प चल रहे हैं। टाउन पुलिस स्टेशन आयोजित थैलेसीमिया के दर्दियों के लिए ब्लड डोनेशन कैंप चल रहा है। वहां सभी धर्म के लोग रक्त का दान करते हैं।।मुस्लिम समाज की बहन और बेटियों ने भी रक्तदान किया है।।
और यहां संतराम गर्भ संस्कार केंद्र तपोवन जहां गर्भाधान संस्कार द्वारा निरोगी संतानों के लिए संपूर्ण सेवा हो रही है इस केंद्र में 12 साल में 900 से ज्यादा बहन बेटियों ने तपोवन का लाभ लिया है चाइल्ड केयर सेंटर भी चल रहा है।।
आज कथा में सभा पंडाल साहित्य पंडाल लग रहा था। क्योंकि अनेक विद कवि और साहित्यकारों की उपस्थिति थी।।कवि भाग्येश ज्ह और गुजराती साहित्य परिषद के प्रमुख हर्षद त्रिवेदी,पद्म श्री भीखुदान गढवी भी विशेष उपस्थित रहे।।गोवर्धनराम त्रिपाठी जैसे साक्षरों की ये भूमि पर साक्षरों की वंदना हो रही है।।
कथा के आरंभ में बापू ने कहा रामचरितमानस में राज शब्द 28 बार आया है और 29वीं बार योगीराज शब्द लिखा है।।धर्म सम्राट करपात्री जी महाराज ने गंगा तट पर काशी नरेश को योग परक वक्तव्य देते वक्त कहा था यह 29 वां उन्मनी दशा जो योग का विशिष्ट स्थान है।।
शंकराचार्य जी कहते हैं 100 गुना सुनो,हजार गुना मनन करो,लाख गुना निधि दर्शन करो और अनेक गुना निर्विकार समाधि में प्रवेश करो।।
हमसे यह नहीं हो सकता ऐसा कहकर कथा श्रवण और श्रवण भक्ति को छोड़ना मत!
योग का पहला द्वारा वाक् निरोध-वाणी पर संयम रखना है।।हमारे जैसों के लिए यह मुश्किल नहीं है। शास्त्रों शस्त्र के जैसे खटखटाना के लिए नहीं है।। दूसरा कदम अपरिग्रह है।।
बापू ने कहा मैं बोलता रहा हूं,बोलता रहूंगा और बीच में जो कुछ होगा,अगले जन्म में फिर आकर बोलना ही है।।
ईश्वर नाम से पहचाने जाते हैं रूप से नहीं पहचान पाएंगे।।आशा और इच्छा का त्याग करना तीसरा कदम है और नित्य एकांत का सेवन करना वो योग का चौथा कदम है।।
यहां वासंती नाम की गणिका के पास अंत काल में तुलसीदास ने श्री रामचंद्र कृपालु पद का गायन किया वैसे ही संतराम महाराज के पास सूरत की माणेक नाम की गणिका गई और महाराज ने हाथ रखकर उद्धार किया ये कथा भी बापु ने सुनाइ।।
रामदास जी महाराज के ग्रंथ की पंक्तियों का गान करके कथा प्रवाह में राम लक्ष्मण जनकपुर के दर्शन के लिए जाते हैं।। दूसरे दिन गुरु के लिए पुष्प चुनने जाते हैं। सीता जी भी वहां देवी पुजन के लिये आइ है। पुष्पवाटीका के प्रसंग में राम सीता का प्रथम मिलन लिखा है।।यहां बारह प्रकार का दर्शन दिखाया है।। राम योगी है। जो शांत हो,शुद्ध हो और समत्व से भरा है वह योगी है।।
धनुष्याभंग की पंक्तियों का गायन करके कहा ईश्वर के दशावतार का गूढ रहस्य यहां छुपा है।।
राम सीता का विवाह और परशुराम का आवा-गमन और अंत में अयोध्या से विश्वामित्र की विदाई का करूण सजल प्रसंग कहकर आज की कथा को विराम दिया गया।।
कल यह कथा का विराम दिन है।।