Homeगुजरातसबका ज्ञान एकरस और अखंड रहे फिर ईश्वर और जीव के बीच...

सबका ज्ञान एकरस और अखंड रहे फिर ईश्वर और जीव के बीच में कोई भेद रहता नहीं।। ईश्वर का ज्ञान एकरस है।।

पुरुष की कसौटी चार प्रकार से:त्यागेन,शीलेन,गुणेन,कर्मणा होती है।।
कभी-कभी सागर जितने विशाल आदमी में से ईर्षा रूपी सिंहिका निकलती हमने देखी है।।
रामायण सूत्रात्मक,सत्यात्मक मंत्रात्मक ग्रंथ है।। मानस का बहुत पाठ करना,अपने पाठ पक्के होंगे और जब पक्के होंगे तब रहस्य उद्घाटन के लिए कोई न कोई महापुरुष आपको मिल जाएगा।।
ईश्वर एकरस है अखंड है।।
जो एकरस और अखंड है वह ईश्वर है।।
कोटेश्वर महादेव त्रिकम राय जी और कमलामाता एवं झूलेलाल की भूमि को प्रणाम करके पांचवें दिन की कथा के आरंभ में बापू ने कहा कि हमने जो चाबी रूप पंक्तियां उठाई है वह कहती है:यदि सबका ज्ञान एकरस और अखंड रहे फिर ईश्वर और जीव के बीच में कोई भेद रहता नहीं।। ईश्वर का ज्ञान एक रस है।।रस भक्ति प्रधान और अखंड ज्ञान परख शब्द है।। हम जीव है फिर भी हम अंश है। लेकिन कोई संत कहते हैं की जीवात्मा कभी परमात्मा नहीं हो सकता।। और अद्वैत सिद्धांत में जगदगुरु शंकराचार्य जी ने कहा है जीव भी शिव हो सकता है।। वैष्णव परंपरा में माना जाता है कि जीव ईश्वर नहीं हो सकता।। रामचरितमानस के अरण्य कांड में लक्ष्मण जीव और ईश्वर के बीच का भेद क्या है वह पूछता है।।शंकर परंपरा में दोनों को एक बताए हैं।। भाव जगत में द्वैत जरूरी है।।गुरु गुरु ही है और शिष्य शिष्य है।। यदि पत्नी अपने पति को कहे कि हम अद्वैत है यह सब कपड़े आप धो डालो यह व्यवहारु नहि लगता।। लेकिन यहां कच्छ में तोरल सती के कपड़े धोने के लिए जेसल बाजार से कपड़े उठाकर निकाला वह उनकी कसौटी थी।। भक्ति मार्ग में चार प्रकार से पुरुष की परीक्षा होती है जैसे सोने की कसौटी चार रीत से होती है वैसे पुरुष की कसौटी त्यागेन,शीलेन,गुणेन,कर्मणा होती है। हम ईश्वर के मार्ग पर कहां तक है वह देखने के लिए यह परीक्षा है।।जैसे सोने की कसौटी घर्षण से- कसौटी के पत्थर से घिसा जाता है, छेद करके,उसे तपा करके और उसे टीप करके कसौटी होती है।। सुंदरकांड में हनुमान जी सीता खोज के लिए निकलते ही वहां चार प्रकार की कसौटी जैसे ही समुद्र लांघते उड़ान भरते हैं मैनाक पर्वत बाहर निकलता है।। पुराणों में लिखा है पर्वतों को पंख होती थी।।पंख से उड़ते थे। लेकिन अभिमान से नुकसान करते थे। इंद्र ने वज्र चला कर पर्वतों की पांखें काटी। उस वक्त मैनाक समुद्र के शरण में जाकर छिप गया और वहां के पंख बच गई। तब समुद्र ने कहा कि जब हनुमान जी निकले तो विश्राम के लिए बाहर निकलता।। मैनाक हिमालय का पुत्र है। माता मैना है इसलिए पार्वती का भाई भी कह सकते हैं।। हनुमान जी निकले विश्राम के लिए मैनाक आया हनुमान ने स्पर्श कर के त्याग किया हनुमान का त्याग की कसौटी थी।। फिर सुरसा आई और अपना देह बढ़ने लगी तब हनुमान ने शील से सूक्ष्म लघु रूप लेकर सुरसा से निकल गये।। शीलवान कभी स्पर्धा में नहीं पड़ता।। सनातन गोस्वामी और जीव गोस्वामी की बात कही।। काशी के दिग्गज पंडित ने शास्त्रार्थ के लिए सनातन गोस्वामी को प्रस्ताव किया।। तब सनातन ने कहा कि मैं पहले ही लिख देता हूं मैं शास्त्रार्थ में हार गया हूं।।और वह लेकर पंडित अभिमान से फिर रहा है इस वक्त जीव गोस्वामी ने पंडित को हराने के लिए आमंत्रण दिया,पंडित को हराया और लिखवा कर सनातन गोस्वामी के पास आए।। सनातन ने कहा कि 1 साल तक मुझे मुंह मत बताना।। क्योंकि हारने के लिए ही में साधु हुआ हूं।। तीसरा निशिचरी जो परछाई पकड़ती है। हनुमान ने गुन से उसे हराया और सिंहिका राहु की मां थी।। बापू ने बताया कि कभी-कभी सागर जितने विशाल आदमी में से ईर्षा रूपी सिंहिका निकलती हमने देखी है।। लंकिनी के सामने अपने कर्म से जीते हैं।।
रामायण सूत्रात्मक,सत्यात्मक मंत्रात्मक ग्रंथ है।। बहुत पाठ करना अपने पाठ पक्के होंगे और जब पक्के होंगे तब रहस्य उद्घाटन के लिए कोई न कोई महापुरुष आपको मिल जाएगा।। ईश्वर एकरस है अखंड है।।
अष्टमूर्ति शिव है।हनुमान कोटेश्वर है इसलिए अष्टमूर्ति है।। सुंदरकांड में हनुमान की आठ मूर्ति दिखाई है:रामचरितमानस को पकड़ लीजिए बेड़ा पार होगा।।
अष्टमूर्ति हनुमान रूपी ईश्वर की पहली लीला अतुलित बल धाम है-लंका में प्रवेश करते समय किसी से डरते नहीं।। हेमशैलाभ देहं हैं- पूरा सोने से बना है।।दनुजबन कृशानु-राक्षसों के वन को जलाने के लिए हनुमान अग्नि है।। हनुमान ने सुषेण,रावण, विभीषण,कुंभकरण और सीता का आंगन जलाया नहीं है।।ज्ञानियों में अग्रणी है। ज्ञानी बंधन से डरते हैं हनुमान ज्ञानियों के अग्रणी है बंधन को भी स्विकार करते हैं।। सकल गुण निधान है गुणों का कोई पार नहीं है।।नानराणांधिशं वानरों में श्रेष्ठ हनुमान है।। हनुमान बाहुक में राम ने महावीर कह कर बुलाया है रघुपति के प्रिय भक्त है।।अनेक कसौटी में से पार हुए और वातजातं-असंग मदद करके,हवा की तरह स्पर्श करके निकल जाते हैं।। असंगतता आठवां लक्षण है।।
जो एकरस और अखंड है वह ईश्वर है।।
शिव चरित्र की कथा में 87000 साल समाधि के बाद शिव जागते हैं।। सती को सन्मुख आसन दिया रस प्रद कथा सुनाने लगे।। तब दक्ष यज्ञ के लिए ऊपर से विमान जाकर देखकर सती ने यज्ञ में जाने की जीद की।। आमंत्रण के बिना गई और वहां ब्रह्मा विष्णु और शिव का स्थापन नहीं देखा।। शिव का अपमान सह नहीं पाई।। यज्ञ का अध्ययन किया और खुद भी यज्ञ में प्राण त्याग किया।। यज्ञ बलिदान के लिए होते हैं बदला लेने के लिए नहीं होते।।

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