शब्द वही सच्चा है जो कभी बोला नहीं गया,लिखा नहीं गया।।
हम जो बोलते हैं वह केवल चिंगारी है।।
शब्द आकाश नहीं आकाश का संतान है।।
शब्द आकाश का एक गुण है,आकाश ही बिन बोला शब्द है,बिन बोली कविता है।
अनुराग जनित विराग मूल है।।
धर्म वैराग्य का आधार है।।
मॉं रेवा के तट पर बह रही मानस कथा धारा का पॉंचवांदिन। आरंभ में युवा कमलेश साहब के द्वारा कबीर विचार की प्रस्तुति हुइ।।
कबीर वैराग्य का वट है वह जानने के लिए पौराणिक संदर्भ में देखना पड़ेगा।।
एक बार जनक ने याज्ञवल्क्य से वैराग्य के बारे में पूछा।।जनक नाम नहीं जनक वंश है।विदेह राज जनक १७वां वंशज है।सबसे पहले निमी का वंश शुरू हुआ।।निमी यज्ञ के लिए वशिष्ठ के पास गए वशिष्ठ ने कहा कि मैं अभी देवराज इंद्र के यज्ञ में हूं बाद में आपका पुरोहित पद का स्वीकार करूंगा।। निमी को अच्छा नहीं लगा और गौतम के पास यज्ञ करवाने गया।।वशिष्ठ ने देखा और शाप दिया।।बापू ने कहा कि मेरा साधु स्वभाव, मुझे लगता है यह कैसे हो सकता है?क्योंकि वशिष्टगुणातित है।। निमी रजोगुण से भरा राजा है।। फिर भी श्राप दे सकते हैं!शाप दिया कि आप मृतक हो जाओ। यज्ञ चल रहा है और निमी का देह गिर गया। और सभी ऋषि और सब ब्राह्मण देवताओं ने प्रार्थना करी यहां निमी का वंश बंद हो जाएगा कोई उपाय करो!मृतक के शरीर का मंथन किया जाए। मंथन के बाद एक पुरुष का जन्म हुआ जिसे विदेश कहते हैं। क्योंकि कोई मॉं नहीं है और देह में से नहीं जन्मा है और यह स्थल का नाम मिथिला हुआ।। यह सबसे पहले जनक है बाद में 17वें जनक जो शिरध्वज और कुशल ध्वज नाम के दो भाई, जानकी के पिता शिर ध्वज नमक जनक है।। उनका एक मंत्री मैत्रय था और एक ब्राह्मण विद्वान बंदी था। जिसने बहुत पंडितों को शास्त्रार्थ में हराकर सबको दरिया में डुबो दिया था।। बापू ने कहा शब्द वही सच्चा है जो कभी बोला नहीं गया, लिखा नहीं गया। हम जो बोलते हैं वह केवल चिंगारी है।।शब्द आकाश नहीं आकाश का संतान है।।आकाश का एक गुण है,आकाश ही बिन बोला शब्द है।बिन बोली कविता है। हम सब बयां करते हैं वह केवल खाक है।। जो महात्मा अपने शरीर पर लगाते हैं।। यहां बंदी शब्द का अर्थ भाष्यकारो ने अर्थ किया श्रेष्ठ वचन बोलने वाला ब्राह्मण।। मैत्रय की एक बेटी थी मैत्रीयी। सुंदर विभूषि प्रभाव और स्वभाव अद्भुत था।।याज्ञवल्क्य के वहां जनक ने सेवा के लिए रखी।। एक बार अथर्ववेद का गान कर रही थी। याग्यवल्क्य ने देखा और लगा कि यह सेविका नहीं हो सकती।। जनक से पूछा यह कौन है?मेरे मंत्री की बेटी है तब याज्ञवल्क्य ने कहा मुझे विवाह करना है। ब्याह करना है। उपनिषद काल से पहले सभी ऋषि गृहस्थी थे बाद में त्यागी हुए।। याग्यवलक्य की एक पत्नी कात्यायनी है। फिर विवाह हुए और सब मौजूद थे वहां सभा में जनक ने प्रश्न किया: वैराग्य क्या है?और केवल शाब्दिक भूमिका पर नहीं लेकिन प्रत्यक्ष साक्षात दर्शन कराओ।। इस वक्त यज्ञवल्क्य खड़े हुए और कहा कि मुझे 24 घंटे दीजिए मैं आपके सामने प्रत्यक्ष दर्शन कराऊंगा।। घर पर गए पत्नियों को हुआ चेहरे पर चिंता ग्लानि है तब या ञुषी ने कहा कि मुझे संन्यास लेना है।। सभी संपत्ति आपको दे देता हूं।। मैत्रीयी ने कहा कि संपत्ति क्या है? तब मुनि बोले यह सब मिथ्या है। मिथ्या क्यों दान करते हैं? प्रिय के लिए तो सबसे अच्छा हो वही दान करते हैं।। बृहदारण्यक उपनिषद में विस्तृत संवाद है।।आत्म सुख भी भोग है। और याज्ञवल्क्य में वैराग उतरने से पहले मैत्रीयी में उतरा और दोनों हाथ पकड़ कर सभा में आए। तब याग्यवल्क्स ने मैत्रेयी का हाथ पकड़ कर कहा कि यह है वैराग्य!! में उनके पीछे हूं।। ऐसा वैराग्य का वट कबीर साहब है।।
वैराग्य का मूल है प्रेम जनित। अनुराग जनित विराग मूल है।। और धर्म वैराग्य का आधार है। वैराग वट की तीन शाखा:कायिकवाचिक और मानसिक है।। धर्म वस्त्र नहीं चमडी है।।।कायिक केवल वस्त्र बदलने का वैराग्य है।।वाचिक- वाणी से बोलने वाला बातचीत है और आत्मा भी रंग गया हो वह मानसिक है।।वैराग्य के पर्ण तुलसी पत्र,बिली पत्र, भोजपत्र और कदली पत्र कह सकते हैं।।अभय वह वैराग्य का फल है और चारों ओर फैली हुई सुवास फूल है।।अभय के रस का अहंकार नहीं होना चाहिए।। त्याग वैराग्य का अमृत रस है।। फिर बापू ने रास करवाया और खुद ही अति भावुक होकर रास में शरीक होते हुए बापू ने भी पंडाल में नृत्य प्रस्तुत करते हुए कथा गान किया।।