भजन अनुष्ठान नहीं है,साधन नहीं है,यह मार्ग नहीं मंजिल है,आखिरी पड़ाव है।।
साडे छह दशक से आज तक बोल रहा हूं कभी थकावट नहीं हुई,क्योंकि मेरा साधन नहीं साध्य है
साधन श्रमदायी है,भजन विश्राम दायी है।।
बेरखा साधु पुरुष का जेवर है।।
जीवन में समस्याओं के हल की बात करें लेकिन हल्की बात ना करें।।
मेरा भी अनुभव है सब कुछ पाया। इनफ फॉर धीस लाइफ!
बुद्ध पुरुष की चरण रज ही मेरा अनुभव है।।
तमिलनाडु के तंजावुर-तांजौर से चल रही रामकथा के पांचवे दिन पर शिवधाम पार्वती की पावनस्थली की समस्त चेतनाओं को प्रणाम करते हुए राज परिवार से आई आदरणीय बहन को भी प्रणाम करते हुए बताया कि बहुत जिज्ञासायें भी है।।
आप तीन घंटे यज्ञ करें।वैदिक,पौराणिक,गायत्री मंत्र मानस की चौपाई बोलकर स्वाहा करें,या हनुमान चालीसा तीन-चार घंटे के बाद थकावट होती है।। एक ही स्थान पर इतना बैठना आनंद तो आता है लेकिन शरीर की सीमा है।श्रम भी होता है।आपके पास क्षमता है,रोज आधे घंटे दरवाजे पर बैठकर जो भी आए दान करें।लेकिन उम्र के कारण,शारीरिक तकलीफ के कारण दान में आनंद होते हुए भी श्रम होगा।।उपनिषद का स्वाध्याय करने से अच्छा लगेगा लेकिन थकावट होगी ही।।मौन रखने से अच्छा लगता है लेकिन मौन तोड़ना श्रम देता है। जगत के सभी साधन-अनुष्ठान में श्रम है,विश्राम एकमात्र भजन में है।।भजन अनुष्ठान नहीं है,साधन नहीं है,यह मार्ग नहीं मंजिल है,आखिरी पड़ाव है।। तुलसी का भी यही अनुभव है।सब साधन से साधनों से श्रम हुआ।।तुलसी कहते हैं रजमात्र कृपा मेरे प्रभु की हुई और पायो परम विश्राम!भजन विश्राम देता है।।अनुष्ठान,जप,तप,दान सब शुभ साधन करने चाहिए लेकिन वह थकावट देते हैं।।
बापू ने कहा कि मेरे हृदयकोष में मुख्य शब्द ब्रह्म है इसमें भगवान शब्द तीसरे स्थान पर है।सबसे पवित्र शब्द साधु है।।ब्रह्म-विष्णु कभी कपट भी करता है साधु कपट नहीं करता।।दूसरा शब्द भजन है और भगवान तीसरे स्थान पर है।।
इतनी कथा सुनने के बाद तीन-चार घंटे के बाद थकावट नहीं लगती तो आप सुन नहीं रहे भजन कर रहे हैं।।मैं साडे छह दशक से आज तक बोल रहा हूं कभी थकावट नहीं हुई।क्योंकि मेरा साधन नहीं साध्य है।।साधन श्रमदायी है भजन विश्राम दायी है याज्ञवल्क्य के अनुभव भी है।। गार्गी और याग्यवल्क्य के के संवाद है।थोड़े कठिन है।महर्षि अरविंद ने भी प्रवेश किया है।किसी ने पूछा त्रिभुवन दादा का क्या अनुभव? त्रिभुवन दादा के साथ दंडी संन्यासी का एक फोटो देखा होगा, उसी ने पूछा था आपका अनुभव क्या है?दादा ने कुछ कहा नहीं बेरखा बताया! यही मेरा अनुभव है।। बेरखा साधु पुरुष का जेवर है।।
उपनिषद का सार श्रीमद् भागवत गीता है।भगवत गीता का भाष्य सार रामचरितमानस है।भगवत गीता में योग है,वही रामचरितमानस में विविध पात्र के द्वारा प्रयोग किए हैं।रामचरितमानस का भाष्य सार सुंदरकांड है।सुंदरकांड का सार और भाष्य हनुमान चालीसा है और हनुमान चालीसा का सार प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप में भजन है।।
किसी ने पूछा बापू आपका अनुभव? बापू ने कहा जो दशरथ का अनुभव है वह मेरा अनुभव है।।दशरथ कहते हैं आंगन में ब्रह्म खेल रहे हैं लेकिन गुरु की चरण रेनू अपने सिर पर धारण करने से दुनिया के समस्त वैभव मेरे वश में आ गया है।सब कुछ मैंने पाया है।वैसे मेरा भी अनुभव है सब कुछ पाया। इनफ फॉर धीस लाइफ!
बुद्ध पुरुष की चरण रज ही मेरा अनुभव है।।
चार प्रकार के भक्त कहे:अर्थार्थि,आर्त,जिज्ञासु और ज्ञानी।।ज्ञान का अर्थ यहां प्रेम है।अंधेरे को हटा ना सको तो एक दीप जला लो! प्रेम न कर सको तो नफरत करना बंद कर दो! बात खत्म!! रामचरितमानस में 9-10 बार अनुभव शब्द आया है छोटी सी गीता और छोटी सी रामचरितमानस अपने बच्चों के दफ्तर में डाल देना।।पढ़ाई करने के लिए जाता है यह कथा सुनने के बाद यह प्रयोग करें।।पढ़ने का दबाव न करें,दबाव मत डालना लेकिन यदि हमारे पास 500 का नोट है तो आनंद रहता है भजनानंदी की आंखें रामायण और गीता है।। यह शास्त्र हमारे नेत्र है। इस कथा से कहना शुरू करता हूं पांच-पांच वृक्ष बोना।।पानी का बचाव करो और आपके बच्चों की स्कूल बैग में यह दो छोटे ग्रंथ डाल दो।।परिणाम आएगा।।केवल बच्चों को ही नहीं अपने यात्रा की बेग में भी रामचरितमानस या गीता जी, पढ़ो ना पढ़ो कोई चिंता नहीं क्योंकि यह हमारी आइडेंटिटी है।। बहिर विज्ञान इती सिद्धम कहता है लेकिन वेद विज्ञान इतनी शुद्धम में मानता है। कल वेद विज्ञान परिषद में भी प्रवचन में कहा था।।
जीवन में समस्याओं के हल की बात करें लेकिन हल्की बात ना करें।।स्वामी शरणानंद जी भी 25 दिसंबर आज के दिन निर्वाण दिन है।।इशु क्राइस्ट को याद करते हुए बापू ने श्रद्धांजलि अर्पण करते हुए अटल बिहारी वाजपेई और मदन मोहन मालवीय को भी याद करते हुए अंजलि प्रदान की।। परमात्मा ने जैसा बनाया ऐसा ही रहे तो परमात्मा की कृपा ज्यादा रहेगी।।भजन में तरक्की कैसे होगी अक्रिय हो जाओ।।भजन क्रिया है ही नहीं। एक अवस्था है,स्थित है।।अनिंदक हो जाओ।अहिंसक बनो।अनिद्रा और अनित्य भजन की तरक्की करवाता है और अनृत,अनृत्य,अद्वैत भाव भजन को कम करता है।।
फिर शिव चरित्र की कथा सुनाई। शिव विवाह के बाद सती शिव को राम जन्म के बारे में पूछते हैं।।और राम जन्म के पांच विद विद कारण की संवादी चर्चा करते हुए पांच कारण बताते हैं।। और बाद में अयोध्या के भवन में भगवान राम का प्रागट्य होता है वह सभी संवादी चौपाइयों का गान करते हुए तमिलनाडु की भूमि से समस्त त्रिभुवन को राम जन्म की बधाई देते हुए आज की कथा को विराम दिया गया।।