Homeगुजरातसेवा,स्मरण, संरक्षण और समर्पण वृद्धों के लिए है।।

सेवा,स्मरण, संरक्षण और समर्पण वृद्धों के लिए है।।

सेवा करो लेकिन कोई अपेक्षा मत करो।

अपेक्षा रख कर सेवा करेंगे तो अशांति पैदा होगी।।

शिक्षा आज धंधा हो गया है!

ईश्वर पारायण होने से पहले जीवन पारायण होना चाहिए।।

सद्गुरु हम जहां हैं वहां आते हैं और हमें जहां जाने चाहिए वहां हमें ले जाता है उसे ही हम सद्गुरु कह सकते हैं।।

राममय बने राजकोट के रेसकोर्स मेदान में बहती रामकथा के चौथे दिन दान का प्रवाह अविरत बहता रहा।।बापू ने बताया वृद्धों और वृक्षों की सेवा के उपकारक यज्ञ अनुष्ठान में आज भी तीन गुना दान मुझे मिला है।। किसी ने पूछा था कि वृद्धो की सेवा करने की कोई सरल बात हमें बताओ?

बापू ने कहा दो बात मैंने कही है, और बार-बार में दोहराता हूं।।वृध्ध यदि हाजिर है तो उनकी सेवा करें यदि विदाई ले ली है तो उनका स्मरण करो। गुण संकीर्तन करो,उनकी स्मृति को भूलो नहीं।।आज दो सूत्र और भी कहुं: तीसरा है:वृध्धों का संरक्षण करो उनकी रक्षा करो।। मैंने ये कथा क्यों दी है? क्योंकि किसी के लाभार्थ के लिए कथा देता हूं तब मैंने बहुत बार देखा है, कथा गौण बन जाती है और लाभ प्रधान हो जाता है।। लेकिन अपने यहां साध्य को पकड़ा है इसलिए साधन दौड़ के आ रहे हैं।। यह कथा में आपने कहा है हमें मावतर चाहिए।। ऐसे आप वृध्धों की सुरक्षा कर रहे हैं।।वध्ध का संरक्षक बनो।।बाप की निकट खड़े रहो।। और चौथा सूत्र है समर्पण करो।। वैसे यह चार सूत्र सेवा,स्मरण, संरक्षण और समर्पण वृद्धों के लिए है।।सेवा करो लेकिन कोई अपेक्षा मत करो।यदि अपेक्षा रख कर सेवा करेंगे तो अशांति पैदा होगी।।

बापू ने आज फिर बताया कि यहां के सभी अखबारों ने यह कथा में आहुति बहुत दी है सभी को मैं साधुवाद देता हूं।। व्यवस्था होनी चाहिए लेकिन विषमता नहीं होनी चाहिए।।सेवा में भी हमें रस होना चाहिए। गुजरात के गुणवंत भाई शाह ने लिखा है भागवत कथा क्या करती है?रसवृद्धि करती है। रस तृप्ति होती है और रस निमज्जन रस का स्नान होता है।।सेवा का कोई फल मिले ऐसी सेवा मत करो। लेकिन रस मिले ऐसा कर।। स्मरण में भी अपेक्षा मत रखो। यदि स्मरण में अपेक्षा रखेंगे तो निराशा प्रकट होगी।।

दूसरे विश्व युद्ध में एक सैनिक बहुत रीत से घायल हुआ।उनका दोस्त मिलने के लिए बहुत प्रयत्न किया और अपनी जान की परवाह किए बगैर दोस्त को मिलने के लिए गया।वह दोस्त गोलियों से लथपथ पड़ा था लेकिन बोला कि मुझे मालूम था तुं आएगा ही! प्रतिक्षा एक बहुत बड़ा व्रत है।।विदेश में वृद्ध आश्रम ओल्ड हाउस है। लेकिन हमारे यहां संवेदना है। संरक्षण का फल नहीं लेना वरना अहंकार आएगा और समर्पण करते हैं तब भी फल की अपेक्षा रखने से समर्पण दंभी हो जाएगा।।

वेद कहता है हमारे घर में सात रत्न है। वैसे दम, दमन इंद्रिय निग्रह अर्थ वाला शब्द है। लेकिन संस्कृत में दम का एक अर्थ घर भी होता है।। हरि नाम लेते-लेते यदि हम जागते हैं तो हमारे लिए वह चौथा प्रहार है।।ओशो कहते हैं साधु जागे वही ब्रह्म मुहूर्त है। बापू ने आज टकोर की की बच्चों को इतनी सुबह पढ़ाई के लिए मत भेजो। एक राज्य में बहुत बड़े विद्यालय का उद्घाटन में गया था लेकिन मालूम हुआ कि यह उनका धंधा है! शिक्षा आज धंधा हो गया है! इतनी जल्दी नींद में से जगा कर किसी बच्चे को शाला में भेजते हैं वह क्या खाक पढ़ाई करेगा! थोड़ा प्रैक्टिकल बनो! लेकिन शिक्षा अब धंधा बन गई है!!

दिनचर्या के बारे में बापू ने पांडुरंग दादा ने दी त्रिकाल संध्या को संवादी रीत से समझाया।।

बापू ने कहा कि मैं आपको साद देने के लिए आया हूं।। कुछ कहने के लिए आया हूं।। यदि कथा हमारे अंदर उतर जाती है तो थाक-थकान भी नीचे उतर आता है।। वेद में कहा है हमारे घर में सात रत्नहै।।एक रत्न अग्नि है और अग्नि से जुड़े ही सभी सब रत्न है।। खाने योग्य खुराक खाओ। पीने योग्य ही पियो।।सात्विक भोजन यह हमारा रत्न है युवाओं को बताया कि ड्रग से बचें।। पहेनने योग्य कपड़े पहनना।अच्छे कपड़े और दूसरा रत्न है। लेकिन कपड़े को अग्नि से क्या लेना देना? कपड़े कपास से बनते हैं कपास की अग्नि से जुड़ा हुआ है स्वच्छ कपड़े दूसरा रत्न है।।आंगन में वृद्ध की खाट और एक दो वृक्ष को आंगन का रत्न है।।क्योंकि वृक्ष को सूर्य प्रकाश का अग्नि चाहिए। घर में हमारे पास औजार होने चाहिए वह सब औजार ही हमारे रत्न है घर में मनोरंजन के लिए भी साधन होने चाहिए।। वेद ने वहां तक हमारा ध्यान रखा है।। हमारे घर में रेडियो टीवी अग्नि से जुड़े हुए हैं।। ईश्वर पारायण होने से पहले जीवन पारायण होना चाहिए।।

सद्गुरु हम जहां हैं वहां आते हैं और हमें जहां जाने चाहिए वहां हमें ले जाता है उसे ही हम सद्गुरु कह सकते हैं।। समय-समय पर दीप रंगोली हो।। बापू ने बताया कि मुंबई के किसी साहित्यकार ने जब झवेरचंदमेघानी को कहा की सौराष्ट्र में कुछ है ही नहीं इस एक ही बात पर ‘सौराष्ट्र की रसधार’ बहुत बड़ी गुजराती भाषा की कृति झवेरचंदमेघानी ने लिखी है।।भगवान कृष्ण वृध्ध उम्र में एक वृक्ष पीपल पर शरीर छोड़ने के लिए आते है।।

बापू ने विमला ताइ का प्रसंग कहा जे. कृष्णमूर्ति ने जब विमलताइ के सर पर हाथ रखा तो विमलताइ का बधीरपनामीट गया।।  किसी भी घर में पुस्तक होने चाहिए ।।बुद्ध भी पहले वृक्ष की शरण में गए हैं इसलिए बापू ने कहा वृक्षंशरणंगच्छामि।।

कथा प्रवाह में शिव चरित्र में दक्ष प्रजापति यज्ञ करते हैं।।लेकिन पार्वती को निमंत्रण नहीं मिला। पार्वती फिर भी यज्ञ में जाती है।।वहां ब्रह्मा विष्णु और शिव का कोई स्थान नहीं देखकर यज्ञ को विध्वंस किया और खुद को यज्ञ में डालकर जलकर भस्म हो गई।।और दूसरा जन्म में हिमाचल के वहां जन्मी।।वो पूरी कथा बापू ने कहकर आज की कथा को विराम दिया।।

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