Homeगुजरातराजकोट को राममय बनाकर मानस की सद्भावना रामकथा ने लिया विराम।।

राजकोट को राममय बनाकर मानस की सद्भावना रामकथा ने लिया विराम।।

बापू संस्कृति के संगम है, सनातन के उच्च शिखर पर लहराती ध्वज को दिशा और दीक्षा देने में पूरा जीवन समर्पित किया है:चिदानंद सरस्वती जी।।

सत्य प्रेम और करुणा की कथा ही नहीं कहते,सत्य प्रेम और करुणा के अवतार है:चिदानंद जी।।

गंगा,हनुमान और राम-तीन धाराओं के कारण बापु अविरत बोलते है:ब्रजमहोदय जी।।

रामचरित मानस-सदग्रंथ औषधि है।।

गाय का दूध,गंगाजल औषधि है।।

वृध्धों और वृक्षों औषधि है।।

बाल कांड भगवंत का कांड है।।

अयोध्या कांड आरंभ पंथ कथा है।।

अरण्य कांड संत कथा,किष्किंधा कांड कंत कथा, सुंदरकांड ग्रंथ कथा,लंका कांड रावण के तंत की कथा और उत्तर कॉंड स्वांत:अपनी कथा है।।

विराम के दिन के आरंभ पर कथा के संरक्षक डॉक्टर परमात्मानंद सरस्वती ने आभार दर्शन कहते हुए बताया की:संस्कृत भाषा में रामायण शब्द की दो व्याख्या है:रामस्य अयन-भगवान राम जी का जीवन और रामस्य अयन का मतलब है भगवान राम का घर।।अयोध्या तो है ही,लेकिन राजकोट को भी राम का घर बनाने वाले मोरारी बापू जी का सभी तरह से आभार होना चाहिए।।

आज यहां दो विशेष मेहमान की उपस्थिति हुई वल्लभ कुल तिलक और गोकुल निवासी इंदिरा बेटी जी के भी प्रिय और वडोदरा में बसने वाले कृष्ण ब्रजराज महोदय श्री VYO संस्था का स्थापना किया वैष्णव युद्ध ऑर्गेनाइजेशन संस्था जहां 5 करोड़ वैश्विक वैष्णव को इकट्ठे करने की बात और 30 से ज्यादा हवेलियों के अधिपति,युवाओं के प्रेरणादाई ब्रजराज महोदय ने बताया कि:

व्यास पीठ पर जब भी बापू के दर्शन करते हैं तो यह भाव प्रकट होता है कि हनुमान जी साक्षात विराजमान है।। बापू गंगा जी का सेवन करते हैं, बापू के अंदर हनुमान जी है और राम भी बापू के अंदर है तो जब भी बापू कथा करते हैं तो यह तीन धारा की तरह अविरत कथा का प्रवाह बहता है।।यह भी बताया कि जो आम का जैसे वृक्ष बोते हैं वहां कभी नरक की प्राप्ति नहीं होती और यह बात भी कहीं की बापू ने इतनी कथा कही शायद ‘मानस कृष्ण’ कथा नहीं कही होगी।।

ऐसे ही एक संत परमार्थ निकेतन आश्रम ऋषिकेश का सबसे बड़ा आश्रम के अधिष्ठाता स्वामी चिदानंद सरस्वती ने भी अपना भाव रखते हुए कहा कि:बापू संस्कृति के संगम है।।सनातन के उच्च शिखर पर लहराती ध्वज को दिशा और दीक्षा देने में पूरा जीवन समर्पित किया है।। सत्य प्रेम और करुणा की कथा ही नहीं  कहते,सत्य प्रेम और करुणा के अवतार है।।आज सोच ही जब धूमिल हो गई है तब सनातन की स्पष्ट व्याख्या बापू ने दी है।। बापू जब तक आप है कथा धारा है सनातन को कोई खतरा नहीं है।।सनातन है तो भारत है। भारत है तो सुरक्षा है। माय वे या नो वे एक ही रास्ता है, ‘माय वे इस हाईवे’ आज यह सोच को दीक्षा और दिशा की जरूरत है।।

ब्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी।

सत चेतन घन आनंद रासि।।

-बालकॉंड दोहा २३

जिन्ह के रहि भावना जैसी।

प्रभु मुरति तिन्ह देखी तैसी।।

-बालकॉंड दोहा २४१

इन्ही बीज पंक्तियों से आरंभ करते हुए बापू ने कहा हेतु पूर्वक पवित्र उपकारक हेतु के लिए गाई गई इस रामकथा के विराम के दिन संवाद का समापन नहीं लेकिन निरंतर संवाद चालू रहे यह विराम हो रहा है। यह विजय भाई जब बोलते हैं हृदय से बोलते हैं। साधु के बालक की तरफ से साधुवाद दे रहा हूं।

वर्षों पहले नैरोबी में लोहाना हॉल में कथा गान की, कथा के बाद जब मैं जा रहा था एक छोटी सी बाला अपनी स्कूल से आई मेरी गाड़ी के पास हाथ हिला रही थी, मैंने भी हाव भावों से प्रतिसाद दिया दूसरे दिन उनके पिता के घर चाय पीने के लिए गया।।उसी वक्त वह बच्ची स्कूल गई थी थोड़ी देर में आई और आकर स्कूल की बैग रखकर पूरे कद का आईना था सामने नृत्य करने लगी! मैंने सब कुछ देखा।। जब आदमी के पास शब्द नहीं होते तो एक ही उपाय बचता है:नृत्य करना।। परमात्मानंद जी के सानिध्य में भी हमने ऐसा ही किया और उनके लिए एक ही शब्द है:नो वर्ड,नो वर्ड।।संस्था के लिए जो कुछ उन्होंने किया उनके लिए नो वर्ड शब्द ही है।। शब्द नहीं होते तब हम क्या करते हैं?कालडी से केदार की यात्रा में वेद को लेकर निकले आदि शंकराचार्य जी ने लिखा है।।भगवान शंकराचार्य जब यात्रा करते थे तब वृक्ष की डाली डाली नृत्य करती थी।। मैं शरीर से नृत्य कर रहा था और इससे पहले आत्मा नर्तन कर रही थी।। वल्लभ पीठ को शीत प्रकाश देने वाले वल्लभाचार्य परंपरा में आए बहुत बड़ा अभियान लेकर फिर रहे युवा वल्लभीय पीठ को व्यासपीठ का प्रणाम।।

और ऋषिकेश के पर्याय बने,परमार्थ निकेतन के बाबा चिदानंद सरस्वती जो गंगा के किनारे रहते हैं तो बहुत उदार होते हैं। वह मुझे पूरे गंगा के प्रवाह से नहलाते हैं। बापू ने कहा कि दोबारा राजकोट में आने की कोशिश जरूर करूंगा।। हमें कोई नई कांड नहीं बनाने लेकिन जितने कांड बाकी है वह सब पूरे करने हैं।। शास्त्र और लोकोक्ति के आधार पर औषधि कौन-कौन सी है। आप और मेरे शरीर के रोग के अलावा मानस रोग को भी औषधि निर्मूल करती है।।एक ही रामचरितमानस- सब ग्रंथ, दर्शनों, अन्य ग्रंथ औषधि है।।उनका नाम,लीला,रूप,धाम भी औषधि है।।और सूर्य भी औषधि है।। सभ्यता के कारण हम कोट, टोपी आदि पहनते हैं। सूर्य के सीधे संपर्क में नहीं रहते। हमारे ऋषि मुनि बीमार नहीं होते थे क्योंकि सूर्य के सिदे संपर्क में रहते थे। गाय का दूध भी औषधि है।।और सुबह के बजे शाम को दोहन किया हुआ दूध ज्यादा मात्रा में औषधि है ऐसा चरक कहते हैं।। गंगाजल औषधि है।।बुद्ध पुरुष के शब्द,स्पर्श,रूप,रस और गंध भी औषधि है सद्गुरु बीमारी मिटाते हैं। इसमें कोई अंध श्रद्धा बीच में नहीं लाना है।।सतगुरु के हाथ का गुणातित स्पर्श औषधि है।। वह वरद और अभयद है। बापू ने कहा कि इस पोथी के प्रताप से कहां से लेकर हम कहां तक की यात्रा की! यह तो बहिर यात्रा है लेकिन भीतर में भी हमने आंतरिक यात्रा कहां से कहां तक की है।।

बापू ने कहा कि पंछी का पींछा निकल जाता है पंछी को मालूम भी नहीं होता। वैसे ही त्याग कब हो जाए वह मालूम नहीं वही अच्छा और सच्चा त्याग है अगले मास पूर्ण कुंभ में 18 से 24 जनवरी तक कथा गाने का मौका मिला है तो वहां ‘मानस संगम’ विषय पर कथा गान करेंगे।।वृध्ध भी औषधि है और वृक्ष भी औषधि है।।वृक्ष की छाया, मूल,छाल, पान, फूल, फल,रस और गंध भी औषधि है।।वध्धोपनिषद और वृक्षोंपनिषद बनना चाहिए।। कलम से शायद ना लिख पाए लेकिन पूरा देश यदि वृक्षों से हरा भरा बने तो वह उपनिषद है।। मेरे फ्लावर पांच पांच वृक्ष का जतन करें वह भी मैं कह सकता हूं।। हमारे घर में बच्चा है वह ब्रह्मचर्य आश्रम है। हम ग्रहस्थ आश्रम है और हमारे वृध्ध वानप्रस्थ आश्रम है।तीनों आश्रम व्यवस्थित हो तो कोई सन्यासी भीक्षा लेने आएगा।।

वृक्ष के पास पांच तत्व है: मूल में पृथ्वी है, सिंचाई में जल है, हवा वायु तत्व है, आकाश में विहार करते हैं वहां आकाश तत्व है और सूर्य के तेज से विकास होता है वह सूर्य तत्व है।।

बापू ने कहा यह विजय भाई डोबरिया को राष्ट्रीय लेवल पर नोंध होनी चाहिए, पद्मश्री मिलना चाहिए बापू ने कहा कि सात कांड में बाल कांड भगवंत का कांड है। अयोध्या कांड आरंभ पंथ कथा है।अरण्य कांड संत कथा,किष्किंधा कांड कंत कथा, सुंदरकांड ग्रंथ कथा, लंका कांड रावण के तंत की कथा और उत्तर कॉंड स्वांत: अपनी कथा है।।

बापू ने कहा कि सभी स्वयंसेवक, सभी दाता, आयोजक,छोटे से छोटा कार्यकर से लेकर बड़े के बड़े सब कोई और यहां के मीडिया जगत अखबार ने घर-घर तक कथा पहुंचाई है।।सभी के लिए बापू ने प्रसन्नता व्यक्त की और इस कथा का सुफल त्रिभुवन में रहे वृक्ष और वृद्धो को दिया।।

कथा के बाद प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए परमात्मा नंद जी ने कहा कि संत शब्द का मुर्तिमंत रूप बापू है।।बापू की सरलता सहजता को हेत कहते हुए पूरी कथा के लिए बापू का धन्यवाद अदा किया।।

अगली-९४८वीं रामकथा २१ डीसेम्बर से २९ डीसेम्बर के दरमियान तांजोर(तमिलनाडु) में प्रवाहित होगी।।

ये कथा का नियमित प्रसारण नियत भारतीय समय के अनुसार पहले दिन शाम ४ बजे और शेष दिनों में सुबह १० बजे से आस्था टीवी चेनल और चित्रकूटधाम-तलगाजरडा यु ट्युब चेनल एवं संगीतनी दुनिया परिवार से होगा।।

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