परमात्मा परम अव्यवस्था का नाम है।।
शब्द को पकड़ना और पचाना-साधु ही कर सकता है।।
कबीर में कोई जाति,वर्ण,धर्म,शाखा पथ नहीं है,क्योंकि वह खुला आकाश है।।
परम तत्व की व्यवस्था के रूप में जो बुद्धपुरुष धरती पर आते हैं उसे भी कोई नियम लागू पडते नहीं।।
कबीर का तेज जहां उतरा वो कमाल ही होगा, धमाल नहीं हो सकता!
विश्वास का मूल क्या है?विश्वास का आधार क्या है? पर्ण क्या है? फूल,फल और रस क्या है?
रामनाम वट-विश्वास का मूल है।।
अपने गुरु के चरण में दृढ़ भरोसा वो विश्वास का आधार है।।
मंगलेश्वरकबीरधाम की मॉं रेवा की भूमि से प्रवाहित रामकथा के तीसरे दिन कथा आरंभ पर मांजलपूर कबीर मंदिर के महंत पद्मनाभ साहब ने अपने आशीर्वाद के भाव रखें।।
कबीर की प्रवाही पवित्र और परोपकारी धारा को साहिब बंदगी करते हुए बापू ने कहा कि कबीर परंपरा में कोई कहे हम कबीरपंथी है तो अच्छा नहीं लगता।क्योंकि कबीर पंथ इतना छोटा पथ नहीं,बहुत बड़ा राजमार्ग है। उस काल की चींटी और हाथी भी उन पर चले हैं।। तुलसी जी भी विनय पत्रिका में कहते हैं गुरु ने मुझे राज मार्ग दिखाया है।। पंथ में कभी संकीर्णता की स्पर्धा की संभावना है।।हमने कहा था कि कबीर विश्वास का,विराग का,विवेक का,विचार का और विद्रोह का वटवृक्ष है।।किसी भी वृक्ष को स्थूल रूप से देखें तो मूल थड़, शाखाएं,पर्ण, फूल,फल और रस हम देख सकते हैं।। कबीरवड के दर्शन से इनमें कौन से मूल? कौन सा थल है? शाखाएं कौन है वह भी हम दर्शन करेंगे।।
कबीर साहब ने श्रद्धा की बात बहुत कम की, विश्वास की बात ज्यादा की है।।यह साहस है,छलांग है।। कबीर यहां अलग दिखते हैं।। कबीर साहब होंगे तब साथ कितने होंगे?एक ही बुद्धपुरुष।। हम आए तब भी अनामी थे और जाएंगे तब भी अनामीरहेंगे।।जो भी परम अवतरित होते हैं उन पर कोई कमेंट नहीं कर पाएंगे। परमात्मा परम अव्यवस्था का नाम है।।जैसेगॉडपार्टिकल किसी के काबू में नहीं।।जैसेजोहरी पारस को परखते हैं, वैसे साधु शब्द को परखते हैं, कबीर कहते हैं मैं साधु को परखता हूं।।शब्द को पकड़ना और पचाना-साधु ही कर सकता है।। कबीर में कोई जाति,वर्ण,धर्म,शाखा पथ नहीं है।।क्योंकि वह खुला आकाश है। कबीर कमल में से जन्मे है।कमलअसंग है हम सब संग से आए हुए हैं।। बुद्ध पुरुष के शब्द को,शबरी के विवेक को और रघुनाथ जी के स्वभाव को जो समझ पाएंगे वह पार हो जाते हैं।।कोई कहते हैं सूर्य चंद्र सभी नियम में चलता है तो यहां अव्यवस्था तो नहीं है! लेकिन सूरज को नियम लागू पड़ता है ईश्वर को कोई नियम लागू नहीं पड़ता। परम तत्व की व्यवस्था के रूप में जो बुद्धपुरुष धरती पर आते हैं उसे भी कोई नियम लागू पडतेनहीं।।कबीर का तेज जहां उतरा वो कमाल ही होगा, धमाल नहीं हो सकता।।कोई परम तत्व धरती पर आता है तब पांच तत्वों को धारण करता है।।कुंभ भी पांच तत्व में से पसार होता है:माटी-जो पृथ्वी तत्व है। कुंभ में पानी भरते हैं वो जल तत्व है। कुंभ को अग्नि के ऊपर तपाते हैं वह अग्नि तत्व है और घटाक्ष कुंभ का आकाश है और वायु की आवतजावन होती है वो कुंभ का वायु तत्व है।।
विश्वास का मूल क्या है?विश्वास का आधार क्या है? पर्ण क्या है? फूल, फल और रस क्या है? कबीर कहते हैं:
एक राम दशरथ का बेटा।
एक राम घट घट में लेटा।
एक राम तीनो लोक प्रसारा।
एक राम है सबसे न्यारा।।
किसी भी महापुरुष के बाबत में निर्णय करने से पहले संदर्भ ग्रंथ देख लेने चाहिए अन्यथा हम अन्याय कर बैठेंगे।।कबीर ने विधर्मियों का भी विरोध नहीं किया तो राम का विरोध कैसे करेंगे! समन्वय के सूत्र समझना हैं तो तलगाजरडा में आओ! रामनाम वट-विश्वास का मूल है।और अपने गुरु के चरण में दृढ़ भरोसा वो विश्वास का आधार है तीन डाली है: ध्रुवता-शाश्वतता,पात्रता और पद विश्वास।। पात्रता के बारे में शबरी का संदर्भ ज्यादा उपयोगी होता है।।पर्ण है जितने भी पद लिखे हैं,सब विश्वास के पर्णहै।जो नर्तन करते हैं और सद्गुणों की सुगंध फूल है।।चारों फलों की अपेक्षा से मुक्ति वही फल है।।और रस है? हरिरस।।
फिर कथा प्रवाह में रामचरितमानस के चार घाट जहां भूसुंडी का विज्ञान बोलता है और गरुड़ रूपी ज्ञान सुनता है। तुलसी का वैराग्य बोले और अपना ही मन संसारी है वह सुनता है।। प्रयाग में परम विवेक बोलता है और शरणागति सुन रही है।।
तब कुंभ लगा था और कुंभ में भारद्वाज याग्यवल्क्य को राम तत्व के बारे में पूछते हैं।। उस वक्त के कुंभ में ब्रह्म निरूपण,तत्व विधि, तत्वज्ञान और भक्ति की चर्चा होती थी और फिर याज्ञवल्क्य ने शिव कथा से आरंभ किया।।