किसी के ऊपर संशय करने से नुकसान हमें ही होता है।।
रामकथाएं वटवृक्षों की छांया में ही हुई है।।
हमारे अंदर रहे विश्वास को ब्रह्मचारी ही रहने देना, उन्हें यहीं कहीं किसी से बांधना मत!
विश्वास के वटवृक्ष का बीज है रामनाम।।
मेरे जीवन यात्रा का आखिरी परिणाम यदि कोई है तो वह रामनाम है:मोरारिबापु
रामनाम का बीज विश्वास है।।
हमारे इस प्रेमयज्ञ में किसी का निषेध नहीं वही विधि है।।
सिद्ध शक्तिपात करता है और शुद्ध शांतिपात करता है।।
मॉं नर्मदा के तट पर कबीरवड के वायुमंडल में,भरुच के पास चल रही रामकथा के दूसरे दिन बापु ने आरंभ में कहा:मां नर्मदा रेवा जिसे में बेहता मंदिर कहता हूं वहां पर कबीर गादी को प्रणाम।। और सभी चेतनाओं को प्रणाम करते हुए बताया प्रयाग में एक अक्षयवट स्थूल रूप में है,साधु समाज रूपी प्रयाग में विश्वास ही वटवृक्ष है।। कबीर साहब भी बार-बार विश्वास का स्मरण करते हुए कहते हैं: मोको कहां ढूंढे बंदे मैं तो हूं तेरे पास में,मैं तो हूं विश्वास में…
बटु का मतलब वट भी है और ब्रह्मचारी भी होता है। विचार करने का अधिकार सबको है।लोगों को बोलते हुए बंद कर देना हिंसा है।यहां एक सूखा हुआ वृक्ष था और कोई सत्पुरुष आकर फिर चेतन प्रकट कर दे ऐसा सत्वा और जीवा ने बताया और कहा तब ही श्रद्धा जगेगी! और कबीर साहब 700 वर्ष पूर्व पैदल चलकर आए।पानी सिंचकर सुखा पौधा वटवृक्ष हुआ।।किसी को प्रश्न भी होगा कि 700 वर्ष के बाद भी यह वृक्ष फला होगा,फलित हुआ होगा?लेकिन बापू ने कहा मेरी कथा में कितने ऐसे पौधे को फलित होते हुए मैंने देखा है!
हरिवंश राय बच्चन बहुत-बहुत बौधिक थे।उसने लिखा है कि यूपी के एक गांव में एक जगह नीम के वृक्ष के नीचे एक आदमी बैठे था,वहां हम भी जाकर बैठे।। नीम का वृक्ष 400 साल पहले का था।जब तुलसी जी निकले,रुके और फिर वहां से यह नीम फलित हुआ।।लेकिन किसी ने पूछा था कि यह कैसे हो सकता है? तब हरिवंश राय बच्चन ने कहा तुलसी की जीभ में से निकली चौपाइयों से बहुत से कटु नीम यदि मीठे हो जाते हैं तो यह नीम हुआ इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।।
पानखर में वटवृक्ष कभी सूखता नहीं।हर एक वृक्ष सुख जाते हैं।।लेकिन वटवृक्ष को पानी भी नहीं डालना पड़ता। छोटे-छोटे वृक्षों को ही पानी पिलाना पड़ता है।।चित्रकूट में वटवृक्ष को दिखाकर गुहराज भरत जी से संवाद करते हैं और कहते हैं देखो! पाकरी,जांबू,आम और तमाल के चार वृक्ष की मध्य में वटवृक्ष है।।वटवृक्ष का महिमा निषाद ने गाया।। निषाद कथित महिमा हमारे विषाद को हर लेते हैं। जहां अंधकार और उजास दोनों को साथ लेकर चले इसे हम वटवृक्ष कहे।। साधु रूपी वटवृक्ष अंधकार और उजास को अपनी बाहों-छांया में साथ रखते हैं किसी के ऊपर संशय करने से नुकसान हमें ही होता है।। रामकथाएं वटवृक्षों की छांया में ही हुई है।। हमारे अंदर रहे विश्वास को ब्रह्मचारी ही रहने देना उन्हें यहीं कहीं किसी से बांधना मत!
एक गांव में चोरी हुई।बहुत बड़ी चोरी थी।गांव लोको इकट्ठे होकर बताया कि हमारे गांव में ही चोर होना चाहिए। लेकिन किसी ने बताया नहीं।फिर ऐसा निर्णय लिया गया चार आदमी एक कपड़े को पकड़ कर खड़े रहे और पूरा गांव,व्यक्तिगत उन कपड़े के नीचे से गुजरना होगा,पसार होना होगा। और जिसने चोरी की होगी वह पसार होते ही मर जाएगा।।ऐसा हुआ पहली बार सब एक के बाद एक कपड़े के नीचे से पसार हुए,कोई मरा नहीं।दूसरी बार भी यही हुआ। तीसरी बार भी सब पसार किया लेकिन कोई मरा नहीं! सब ने विचार किया यह कैसे हो सकता है?आखिर में मालूम हुआ जो चार आदमी ने कपड़ा पकड़ रखा था वही चोर थे! समाज की भी यही दशा काल और काल में होती है विश्वास तीन जगह काम करता हैं:बुद्धि,हृदय और आंखों पर।।
बापू ने कहा कि अच्छे से अच्छा दर्पण अंधेरे में प्रतिबिंब नहीं दिखाता उसे बाहर निकालते हैं तो उनके ऊपर धूल के कारण प्रतिबिंब नहीं दिखता! अंदर रहा तमोगुणी अंधकार और बाहर रहा रजोगुणी उजास प्रतिबिंब नहीं दिखने देता।। लेकिन बुद्धपुरुष अंदर और बाहर दोनों अंधकार को मिटा देते हैं।।
वटवृक्ष को बोना नहीं पड़ता। राजकोट की कथा को याद करते हुए बापू ने बताया कि पांच-पांच वृक्ष बोना चाहिए।।जहां वट,नीम,पीपल,बिली के वृक्षों में देवताओं का निवास होता है।।विश्वास को भी बोना नहीं पड़ता इसमें बीज होता है।।विश्वास के वटवृक्ष का बीज है रामनाम।।मेरे जीवन यात्रा का आखिरी परिणाम यदि कोई है तो वह रामनाम है।।और रामनाम का बीज विश्वास है।।
बापू ने बड़ौदा के पास छानी गांव में हुए मनसुखराम मास्तर की कहानी का प्रसंग सजल आंखों से गाया गीता जी के 17वें अध्याय में एक श्लोक है वहां लिखा है यज्ञ में विधि,मंत्र,दान दक्षिणा और श्रद्धा होना चाहिए।।हमारे इस प्रेमयज्ञ में किसी का निषेध नहीं वही विधि है।।भोजन कराते हैं वही अन्नदान है रामनाम रूपी मंत्र है।ज्ञान का उपदेश दक्षिणा है और सभी में हमारी श्रद्धा है।।
सिद्ध शक्तिपात करता है और शुद्ध शांतिपात करता है।।
कथा प्रवाह में कल हनुमंत वंदना का गान हुआ।बापू ने कहा कि राम ने गुरु को पैर छूते हुए धनुष्यबान हाथ में लिए और पूरा वनवास जीवन निकाल कर फिर वनवास के बाद गुरु को प्रणाम कर के धनुष रख दिए।। दोनों के बीच में धनुष्य के अनेक रूप रामचरितमानस में दिखते हैं।।यहां धनुष-बान विज्ञान मय है।।कृष्ण के हाथ में रही बांसुरी प्रेममय है।।
फिर रामनाम का महिमा का गान करते हुए बापू ने कहा कि केवल विश्वास से रामनाम लेना ये नाम भी है और महामंत्र भी है।।