मानस कुंभ में परम विवेकी और परम शरणागत दो मुनिओं का संगम है।।
प्रयाग संन्यास और संसार के बीच का संगम है।।
कथा त्रिवेणी में स्नान करने के लिये तन के साथ मन,सिध्धि उपरांत बुध्धि और वित्त से ज्यादा चित्त जरुरी है।।
यहां एक ही वस्तु उतारनी है वो है-अहंकार।।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की विशेष उपस्थिति और आशीर्वादक उद्बोधन से कथा पंडाल झूम उठा।।
प्रयागराज में महाकुंभ मेले में परमार्थ निकेतन आश्रम की छॉंव में बह रही रामकथा के दूसरे दिन बापू ने कहा कुंभ में बहुत व्यास पीठ सुबह-शाम कोई ना कोई ग्रंथ लेकर मुखर हुई है। रामचरितमानस स्वयं महाकुंभ है। जिसमें से कथा का अमृत निकला है।यह जो संगम है वहां स्नान करने के लिए हमें तन लेकर आना पड़ता है।।
भरोसे से कहना चाहूंगा हर कुंभ में चर्मचक्षु से नहीं दिखाई देती ऐसी अशरीरिचेतनायें अवश्य अवश्यअवश्य आती है।।
कथाकुंभ में स्नान करने के लिए केवल तन काम नहीं करेगा।मन को भी लाना पड़ेगा।कहीं अपनी सिद्धियां लेकर आते हैं।।यह कुंभ में बुद्धि लेकर आना पड़ेगा।बुद्धि बहुत जरूरी है, यद्यपि वह तत्व बुद्धि से पर है फिर भी एक प्रज्ञा जरूरी है।।
कथा के महाकुंभ में स्नान करने के लिए सिद्धि के साथ बुद्धि भी लेकर आना।यहां दिन गुना रात चौगुना कमल की एक-एक पंखुड़ी हर कुंभ में खुल रही है खील रही है।। प्रयाग आने के लिए वित्त चाहिए कथा कुंभ में स्नान करने के लिए चित् की जरूरत पड़ती है। वहां स्नान करने के लिए कपड़े बदलते हैं यहां एक ही वस्तु उतारनी है-अहंकार।।यह पानी नहीं पवित्र जल है फिर भी कहूं वहां पानी में गोता लगाया जाता है यहां संतों की वाणी में गोता लगाते हैं।।
तुलसी कहते हैं मैंने यह कथा वराह क्षेत्र में गुरु से सुनी।बचपन के नादानी में बार-बार कथा सुनाई मेरे मन में बैठी नहीं और फिर मन को प्रबोध मिले इसलिए भाषा बद्द की। चार घाट:ज्ञान,उपासना,कर्म और शरणागति के घाट पर कथा बहती है।। शरणागति में किसी के चरणों में रहना पड़ता है। ऐसे बुद्ध पुरुष के चरण में हम शिखरस्त हो जाते हैं शरणागति के गोमुख से कथा धारा बहती है। शरणागति भाव से हम प्रवृत्ति में प्रवेश करते हैं। भारत भूमि नहीं है,सनातन ब्रह्मा की विभूति है, अपने बच्चों को कान में यह बात अवश्य डालना।। यहां संगम हो रहा है रामचरितमानस का पहला संगम जुगल मुनियों के बीच में हुआ।।यहांभरद्वाज की महिमा की दो पंक्तियों में दिखाई है:
भरद्वाज मुनि बसहिंप्रयागा।
तिन्हहिं राम पद अति अनुरागा।।
तापस सम दम दया निधाना।
परमारथ पथ परम सुजाना।।
भरद्वाज वाल्मीकि के शिष्य है।वर्तमान में भरद्वाज है ऐसा तुलसी जी लिखते हैं। इसका मतलब अशारीरिक उपस्थित है।।भरद्वाज आज भी है। गंगा जब तक बहती रहेगी भरद्वाजरहेंगे।।शंकर रहेंगे तब तक जटा रहेगी, जटा रहेगी तब तक गंगा बहेगी और जब तक गंगा रहेगी भरद्वाज भी रहेंगे।। राम चरण में अति अनुरागी है। बड़े तपस्वी है। दया की मूर्ति है।परमार्थ के मार्ग के निष्णांतहै।परमार्थ का भाव लेकर कोई भी आए स्वागत है। प्रयाग संसार और संन्यास के बीच का संगम है।। संसारी भी संन्यासी की तरफ चले,संन्यासी भी स्वागत करें यह जरूरी है।। गंगा जमुना सरस्वती पवित्र तो है ही, लेकिन बाह्य स्वच्छता भी जरूरी है।।भरद्वाज का आश्रम परम रम्य है।
एक मंच कुंभ में होता था और जब-जब कुंभ लगता था वहां ब्रह्म निरूपण,धर्म विधि,तत्व मीमांसा,भक्ति ज्ञान और वैराग्य की चर्चा होती थी।।फिर एक मंच ऐसा होना चाहिए सब एक साथ बैठकर कुंभ में ऐसी चर्चा करें।।
रामचरितमानस को केवल धर्म ग्रंथ मत समझो। यह वैज्ञानिक ग्रंथ भी है।मॉडर्न साइंस जो अभी खोज नहीं पाया वह भी यहां पाया जाता है।।यहां कुछ दे सको तो भी ठीक है लेकिन यहां से बहुत कुछ लेकर जाना है।।वाणी आसन और स्थान पवित्र है।अति पवित्रता का भी यह संगम है।। एक खोज है एक संदेश है। दो मुनियों का संगम है।एक परम विवेकी दूसरा परम शरणागत।।बुद्ध पुरुष के सामने निर्भीक होकर संशय रख देने से रामायण खुलेगी। उसे कोई संशय नहीं था लेकिन हमारा प्रतिनिधित्व करते हैं।। गुढ तत्व सुनना था। प्रश्न पूछे हैं राम तत्व क्या है? आज तक ये चर्चा चलती है राम क्या है?राम तो एक ही है:वही दशरथ का बेटा है, वही घट-घट में लेटा है उसी का विस्तार है और वही सबसे न्यारा सबसे बाहर भी वही है।।प्रभाव प्रकट होता है स्वभाव गुप्त होता है।।
आज जब योगी आदित्यनाथ जी आए तब परमार्थ निकेतन आश्रम के मुनि ने योगी का स्वागत करते हुए कहा कि सिद्धों की परंपरा के बारे में सुना था लेकिन प्रयाग की धरती पर देखा यह परंपरा कीर्तिमान स्थापित करेगा।। प्रयाग एक नहीं यह प्रयाग नहीं प्रयोग है।। उत्तर प्रदेश से लेकर पूरे विश्व को नए कीर्तिमान की तरफ ले जाता है अकल्पनिय, अद्वितीय मैनेजमेंट है।।योगी जी शासक साधक और उपासक का संगम है।। योगी जी के जीवन शुद्धि से भरा है।शुद्धि बुद्धि और सिद्धि का भी संगम है।।देव भक्ति, देश भक्ति भी है। महंत भी है और परम संत भी है।। कुंभ को वही परंपरा वही मर्यादा और वही महानता वापस लेने वाले योगी जी है।।
योगी आदित्यनाथ ने कहा कि प्रयागराज की एकता का संदेश ही अखंड भारत का मार्ग प्रशस्त करने वाला है।।जगतगुरुसतुआ बाबा के बारे में भी कहा और यह भी कहा कि बापू की हर कथा में नई बात, नई रोचकता देखने मिलती है। कथा का संदेश राष्ट्रीय एकता का संदेश होना चाहिए। अखंड भारत का संदेश होना चाहिए।।
बापू ने योगी जी आए आदर देते हुए कहा कि आपने शुभकामना रखी और बापू ने बताया कि आपने अपने कार्य क्षेत्र के बहुत से काम किया जिसे देश परिचित है।।लेकिन यह कुंभ के आयोजन में तो कुछ शब्द नहीं कह सकते इतना ही कह पा रहा हूं साधु,साधु,साधु।।
फिर वंदना प्रकरण में सीताराम की वंदना के क्रम में जानकी जी की वंदना के तीन संबंध दिखाएं।वह जगत जननी भी है। जनकसूता भी है और राम की अतिसय प्रिय भी है।। इसका मतलब पिता की शुद्ध बुद्धि,माता के रूप में महाबुद्धि और रामप्रिया के रूप में परमबुद्धि है।। तुलसी जी कहते हैं इसकी वंदना करने से हमारी मति निर्मल होती है। इन केन्द्रों से प्रार्थना करने से निर्मल मति बनती है।। नाम वंदना का प्रकरण का संक्षिप्त गान करते हुए आज की कथा को विराम दिया गया।।