हमारा विचार और विश्वास के किनारों में बहता वैराग्य का मार्ग है।।
बापु ने पितामहों की अवतरण सीडी में ध्यान स्वामी बापा, जीवनदास बापा, नारायणदास बापा,प्रेमदासबापा और रघुरामबापा की परंपरा बताइ।।
सनातनी परंपरा में कौन से नारायण हमारे परम पितामह है?
बापु ने इशारों संकेतो में साफ कह दिया कि आदि नारायण कौन है।।
चित्रकूटधाम-तलगाजरडा वायु मंडल में समाविष्ट,बापु के दादा गुरु के धर्म-कर्मक्षेत्र की पवित्र भूमि काकीडीगॉंव की धरा पर बह रही रामकथा धारा के दूसरे दिन यादों की बहती अश्रु धाराओं को जबरदस्ती रोकते हुए स्वस्थ होकर बापू ने कहा कि जिस भूमि पर,जिस धरती पर दादा की चरण रज रही है वह धरा को प्रणाम।जो रामजी मंदिर में बैठकर महाभारत के प्रसंग कहते थे वह विराजित ठाकुर जी के सभी स्वरूपों को प्रणाम।। और समग्र ग्राम जनों को भी प्रणाम करते हुए बापू ने कहा कि जब मंदिर का जिर्णोद्धार हो रहा था तब कहा कि यह जो स्वरूप है वह हटाकर अच्छी मूर्ति बैठा दें। मैं चुप था लेकिन आज का रहा हूं कि यह सभी मूर्तियां ने त्रिभुवन दादा को सुने हैं इसलिए यह सभी मूर्ति को बदल पाएंगे नहीं।। कोई घटना काल के संदर्भ में अमिट छाप रखती होती है।।
पूछा गया था कि दादा ने हर एक दिन की कथा का कोई क्रम बनाया? बापू ने कहा कि नहीं। एक दो बात कही थी।पहले दिन की कथा शाम के समय आरंभ करनी।।
फिर बापू ने बताया कि यह कथा के बाद ऋषिकेश में विष्णु दादा को गाने के लिए हमें जाना है। बहुत समय पहले एक प्रश्न हुआ था।हमारे त्रिभुवन परिवार में, विचार को प्रधानता या विश्वास को देते हैं क्या है?बापू ने कहा कि विचार तो प्रधान है ही लेकिन विश्वास हमारा हार्द है।। महत्व की बात यह है विचार बगैर विश्वास नहीं।।हमारेतलगाजरडी विचार विश्वास के गहरे पानी में नहा कर निकलते हैं हरिद्वार में दशनाम आश्रम है वहां विष्णु दादा विष्णु देवानंद गिरी महामंडलेश्वरथे।कैलाश आश्रम की एक शाखा वहां भी है।और विष्णु देवानंद गिरि बापू के बालक के रूप में बहुत आदर भी मिला था।आज जहां पर परमारथ निकेतन आश्रम है और इस आश्रम की भी बहुत शाखाएं हैं। इन्हीं शाखा में एक साधु का प्रश्न था कि बापू आपका मार्ग विचार का है कि विश्वास का? तब मैंने कहा था कि मैं बहुत छोटा पडता हूं मैं केवल राम कथा गाता हूं।। लेकिन आज बता रहा हूं वैसे तो विष्णु दादा विचार के मार्ग पर गए और त्रिभुवन दादा विश्वास के मार्ग पर चले।। इसलिए विचार भी पकडे,लेकिन यह दो किनारे तट है किसी को हम छोड़ नहीं पाएंगे। विचार और विश्वास तो है ही।।लेकिन मेरा तलगाजरडा का मार्ग वैराग्य का मार्ग है।।
बापू ने कहा कि भागने के लिए तीन कारण हो सकते हैं: एक है परिवार में से कोई तिरस्कार करें। बहुत सी ऐसी कथाएं मिलती है। हमारे गुजरात में लोकगीत भी है।।नरसिंह मेहता के जीवन में भी कुछ ऐसा हुआ था,फिर क्रांति हुई थी।। गुरु तीन प्रकार से दिखते हैं: गुरु दीपक है। बिजली की चमक है और मणि है।। तीनों प्रकाश की जात है। लेकिन जब अंधेरा छा जाए तो दीपक रूपी गुरु आसपास आ जाते हैं। दूसरा दाहक गुरु है और तीसरा मणि का प्रकाश शीतल है, ठंडा है।विश्वास भरपूर है,आखिरी है लेकिन विचार को भी हम दूर नहीं रखते।।यह दोनों का बीच का वैराग्य का मार्ग है दुनिया निंदा के रूप में बैरागी बावा कहे उसे हम सच साबित करते हैं।।भागने के लिए कोई धन कमाने के लिए भी निकल जाते हैं और तीसरा भ्रमण ज्ञानर्जन के लिए। दुनिया भर में भ्रमण करते हैं तक्षशिला नालंदा में जो विदेशी लोग भी ऐसे ही आए थे।।
दादा की तरफ से मिले ह्रदय दान की थोड़ी धड़कन ही मुझे कहानी है। दादा कहते थे हमारे मूल गुरु कौन? हमें निंबार्की कृष्ण उपासक, फिर राम, शिव तो शिव है।। वह तो प्रपितामह का भी प्रपितामह है लेकिन मूल पुरुष ध्यान स्वामी बापा है।। तो क्या दिन भर ध्यान स्वामी, ध्यान स्वामी करते रहेंगे तो लोग हमें व्यक्ति पूजा वाले कहेंगे।। हमारे लिए तो व्यक्ति ही सर्वस्व है,इसलिए ध्यान स्वामी शब्द में से स्वामी निकल जाए तो सिर्फ ध्यान रहे।। सब कुछ आ गया।।और कौन ध्यान? कृष्ण का या शिव का? और कोई विचार नहीं।।जीवन का विचार। इसलिए दूसरा आया जीवन दास दादा।। बापू ने कहा कि यह बहुत ऊंचाई की बातें हैं। लेकिन किसे सुनाउ? जिनके पास थोड़े विचार है वह तर्क करते हैं सुनने के लिए भी तैयार नहीं है।।इसलिए बिल्कुल खाली भोले हृदय की ग्रामीण जनता के दिल में यह बीज बो रहा हूं।।इसका ध्यान करें।जीवन का ध्यान करें ध्यान हमारा गुरु है। लेकिन तलगाजरडी व्यक्ति में फंस ना जाए वह भी हमारे पितामह ने सोचा और कहा कि ध्यान और जीवन के बाद परंपरा में नारायण दास बापू आए।।बापू ने कहा कि बापू शब्द निकाल दो सिर्फ नारायण।।लेकिन यहां बहुत बड़ी स्पष्ट करनी पड़ेगी। क्योंकि मैं यह शब्द बोलूंगा तो तर्क शुरू हो जाएंगे कि बापू हमारे नारायण की बात करते हैं।। इसलिए कहा मैं जो कह रहा हूं वह देवाधिदेव नारायण।। गलत तर्क ना करें। नरसिंह मेहता बोले हैं वह नारायण।।नारायण का मतलब बद्री नारायण। आदि नारायण।नरनारायण।सूर्यनारायण।सत्यनारायण।नारायण सरोवर भी कह सकते हो।।व्यास जिन्हें वंदना करते हैं वह परम विष्णु।। परात्पर ब्रह्म के रूप में नारायण। परमेश्वर।। तो यह दूसरा कदम था हमें लोगों को हमें लोकतक जाना है। इसलिए नीचे उतर रहा हूं।यदि ऊपर जाना होता तो कभी का निकल गया होता! आखिरी आदमी तक पहुंचना है और उसी को अवतरण कहते हैं।।नारायण के बाद प्रेमदास बापू हमारा नारायण प्रेम तत्व है। गांधी ने सत्य को।इशु ने प्रेम को परमेश्वर कहा।। फिर रघुराम दादा आए दादा मुझे कहते थे कि जोगियो के हृदय में,वेदांतियों के मन में खेलता हो राम हो सकते हैं। लेकिन हमारे लिए रघुवंश में प्रकट हुआ राम ही मुख्य है।। यह दो किनारों के बीच में वैराग्य का तरापा लेकर निकला हूं।।
दादा ने कहा कि शाम को कथा शुरू करना।शाम को कलयुग है। सुबह सतयुग, दोपहर को त्रेता युग फिर द्वापर आता है।।फिर कुछ क्रम नहीं कहा था लेकिन इतना बताया था कथा पूरी होने के बाद उस गांव जल्दी छोड़ देना इसलिए दुनिया भर में कहीं भी है हम निकल जाते हैं।।
जगत में कुल कितने वंश है?सूर्य और चंद्रवंश और तीसरा अग्निवंश भी है।।तीन कूल का ध्यान रखो एक ब्रह्म कुल जो पितामहों का पितामह है। दूसरा गुरुकुल।तीसरा मातृ पितृ कूल उसे कलंक लगे ऐसा एक भी कदम नहीं भरना।।
परमात्मा पितामहों का पितामह है इसलिए पांच पितामहों की पूजा में पहले पितामह परम पिता परमात्मा है।।उसी को वंदना करने के लिए महाभारत भगवत गीता में एक मंत्र है। यह मंत्र की विराग मुनि(जोड़ियां धाम)के साथ चर्चा भी बहुत हुई।वैसे ब्रह्म के कोई लक्षण नहीं लेकिन हमारे जैसों के लिए समझने के लिए यह श्लोक है:
परम ब्रह्म परम धाम पवित्रंपरमंभवान।
पुरुषंशाश्वत्तंदिव्यं आदि देवंअजंविभुं।।
पहले आदि पितामह यहां किसी का नाम नहीं। परम ब्रह्म। जिनकी कोख से आदि अनादि ब्रह्मांड प्रगटे हैं बापू ने कहा कि साफ करने के लिए आया हूं अनुयायी बहुत होते हैं शिष्यों एक दो होते हैं।। परम ब्रह्म जो निर्गुण और सगुण से भी पर है।। जिनका धाम परम है।। हम अपनी रीत से अपना धाम नक्की करते हैं।। जो परम पवित्र है। वह मूल ब्रह्म को चूकना नहीं।।आदि पुरुष जो शाश्वत है।। हम तो कैलेंडरों में संवत्सर में बंधे हुए हैं।। जो सनातन है जो दिव्य है।। जो आदि देव है। जो अजन्म है लेकिन उनके अंदर अनंत ब्रह्मांड प्रगटे हैं।। सभी जगत में जितनी विभूति है सबका आगे वह विभु। वह परमपिता है।।
आज बापू ने महाभारत की दूसरी कथा सुनाते हुए कहा युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया और यज्ञ के बाद राज भवन में चिंता ग्रस्त बैठे हैं।।कुंता आती है और बोलती है तब युधिष्ठिर ने कहा कि दो दुख के बीच में सुख रहता है। फिर पूछा कि यह यज्ञ में कुछ अघटित बात तो नहीं हुई! युधिष्ठिर ने कहा कि दुर्योधन को देखकर भीम ने थोड़े कटु वचन बोले वह अच्छा नहीं लगा। फिर पूछा कि आपको ऐसा कुछ हुआ? तब कुंता ने कहा कि शिशुपाल का सर काट दिया वह अच्छा नहीं हुआ। मॉं और बेटे के बीच में बहुत बड़ा संवाद है। तब कुंता कहती है की शिशुपाल का कुछ गलती भी होगी।।युधिष्ठिर ने तर्क किया की यज्ञ में पहली पूजा किसकी होनी चाहिए भिष्मदादा ने कहा प्रथम पूज्य द्वारकाधीश है। शिशुपाल ने विरोध किया। माता बोली कि विरोध तो बहुत करते हैं, इसलिए किसी का सर नहीं काटा जा सकता। आज की राजनीति को भी सीखना है महाभारत आज भी राजधर्म प्रासंगिक रूप से सीखाकाहै।।युधिष्ठिर ने कहा कि द्वारिकाधीश को गालियां दी। फिर मां कहती है कि जगत किसी को नहीं छोड़ता।लेकिन महाभारत में ऐसे बहुत पात्र रहे जो बोलने योग्य समय पर बोले नहीं है।हमारे भारत में कटोकटी के वक्त विनोबा जी सभी की अपेक्षा से अलग बोले।वहां भीष्म जैसा ही हुआ है क्योंकि कटोकटी अनुशासन पर्व है और विनोबा जी क्यों ऐसा बोले वह तो वही कह सकते हैं।।यहां संवाद चला और रथ आ रहा है।विदुर वापस आए पूछा गया कि क्यों आए?विदुर ने कहा कि मैं दूत के रूप में आया हूं।।युधिष्ठिर को लेने।लेकिन यह भी कहता हूं कि आज मेरा नहीं मानना उसमें मेरा अपमान नहीं है। मैं आपको धृत खेलने के लिए बुलाने आया हूं आमंत्रण देने आया हूं। बहुत से महापातक में एक जुहारी है। फिर शराब सेवन।व्याभिचार,चोरी,हिंसा असत्य बोलना यह महापातकहै।।युधिष्ठिर ने कहा कि मैं खेलूंगा नहीं केवल देखने जाता हूं।
और इस कथा के बाद सीताराम की वंदना और राम नाम वंदना प्रकरण में राम नाम जब सूर्य चंद्र और अग्नि का बीज है, ऐसा रामनाम जो बीज मंत्र है। वह रामनाम का वंदन और गायन किया गया और आज की कथा को विराम मिला।।