Homeगुजरात"मॉं से मानस तक पहुंचा हूं।।"

“मॉं से मानस तक पहुंचा हूं।।”

गुरु को देव नहीं भगवान मानना क्योंकि देव तो स्वार्थी भी होते हैं।।

गुरु कभी हमारा लाभ नहीं,शुभ करता है।।

हर लाभ शुभ नहीं होता लेकिन हर शुभ लाभदाई होता है।।

सत्य आकाश में,प्रेम धरती पर और करुणा पाताल जितनी गहरी है।।

 

आर्जेन्टिनां के मनोहर और बर्फिले शिखरों के बीच उसूआया से चल रही रामकथा के आंठवें दिन बापू ने बताया कि रामनवमी रामचरितमानस का भी प्रागट्य दिन है।।राम को हमने देखा नहीं लेकिन रामचरितमानस को देखा है,छुआ है,सर पर और आंख पर रखा है।।राम त्रेता युग में हुए लेकिन रामचरितमानस सर्वकालिक है।।इसलिए रामनवमी का बहुत महत्व है।।

माता-पिता हठ करें फिर भी माता-पिता को समझ कर रखना क्योंकि वह बड़े हैं,इसीलिए खुद सुधरने का प्रयत्न करना।।मैंमॉं से मानस तक पहुंचा हूं,और वहां से आगे नहि जाना है।। मातृ देवोभव:, पितृ देवोभव के बाद आचार्य देवोभव लिखा है। लेकिन आचार्य और गुरु बिलग है।।अतिथिदेवोभव लिखा है वह गुरु है।। जो तिथि देखकर नहीं हमें जब जरूरत पड़े तब आता है।। गुरु को देव नहीं भगवान मानना क्योंकि देव तो स्वार्थी भी होते हैं।। महाभारत कार कहते हैं जो हम पर क्रोध न करें वह भगवान है।। गुरु कभी हमारा लाभ नहीं,शुभ करता है।।हर लाभ शुभ नहीं होता लेकिन हर शुभ लाभदाई होता है।।सत्य आकाश में,प्रेम धरती पर और करुणा पाताल जितनी गहरी है।।

बापू ने आज मनोज कुमार और उनकी कला को भी श्रद्धांजलि प्रदान की और उनके प्रदान को याद किया।।

गीताकर कहते हैं जो पत्थर,धुली,उनके ऊपर रहे ढेफा और सोना सब में समद्रष्टि रखते हैं उनकी माया और ममता समाप्त हो चुकी है।।

आज यहां अयोध्या कांड के आरंभ में शिव की स्तुति से मंगलाचरण हुआ। और गुरु वंदना से अयोध्या कांड की प्राकृत वंदना भी की।।अयोध्या कांड युवानी का कांड है,युवानी में गुरु की जरूरत है फिर कागभुसुंडि के न्याय से अति संक्षिप्त में कथा के प्रसंग कहते हुए राम वनवास और केवट प्रसंग, सुरसरि पार उतरकर वाल्मीकि से मिले।। चित्रकूट में बसे। फिर सुमंत दशरथ से मिले और दशरथ का देहांत हुआ। भरत अयोध्या को लेकर चित्रकूट गए वहां जनक भी आये, बहुत सी सभा हुई और भरत ने आधार देने के लिए कहा।।कृपा करके पादुका दी पादुका के छह द्रष्टांत देकर महिमा गान हुआ।। भरत जी तपस्वी बनकर अयोध्या में रहे।। फिर अरण्य कांड में अत्रि और कुंभज से मंत्र प्राप्त करके चित्रकूट छोड़कर पंचवटी में निवास किया।जहांसूर्पनखा और खरदूषण को गति दी।। माया सीता का अपहरण हुआ। किष्किंधा कांड में मारुति मिलन और सुग्रीव से मैत्री हुई और सुंदरकांड में हनुमान जी सागर लांघकर लंका में पहुंचे। लंका दहन करके सीता की खोज करके ही समंदर तट पर आए और समंदर तट पर राम की विराट सेना बनी। और सेतुबंध रामेश्वर का स्थापना हुआ।। काग भूसुंडी जी ने युद्ध की कथा बहुत छोटी बताई। संधि और विग्रह मुक्त है वह भगवान है।। यहां संधि का प्रस्ताव विफल रहा और भयानक और भीषण युद्ध के बाद रावण को गति प्रदान करके सीता जी के साथ पुष्पक आरूढ़ होकर अयोध्या में आए।। और दिव्य सिंहासन पर भगवान राम को बैठाकर वशिष्ठ मुनि ने राजतिलक किया।।

रामनवमी के दिन कल इस रामकथा का विराम का दिन है।।

शिष्य के द्वारा होते हैं ये १० गुरु अपराध,इन से बचीये:

१-गुरु में अद्वैत भाव रखना-कितनी भी शास्त्र ऊंचाइपकडी हो,फिर भी गुरु और शिष्य एक नहिहै।।गुरु गुरु है और शिष्य शिष्य है।।

२-गुरु की इर्षा करना।

३-गुरु में मनुष्य भाव रखना-गुरु नररूप हरि है,केवल मनुष्य नहि है।।

४-गुरु ने दिया हुआ मंत्र बदल देना।

५-गुरु ने दिया इष्ट ग्रंथ बदल देना।

६-गुरु की स्पर्धा करना।

७-गुरु के वारस बनने की कामना करना।।

८-गुरु को साध्य के बजाय साधन बनाना।

९-गुरु की तुलना ग्यान,वैराग्य की बजाय रुपियों पैसे और हीरे माणेक से करना।।

१०-गुरु को अंधेरे में रखकर जूठा प्रचार करना।।

ऐसे ही गुरु द्वारा शिष्य के १० अपराध भी बापु ने बताये।।

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