Homeगुजरातये धर्म के लिबाश में कुछ और हो रहा है।।

ये धर्म के लिबाश में कुछ और हो रहा है।।

ये धर्म नहि,आततायि कृत्य है:यहां की बेबाक चल रही वटाल दूषित वृत्ति पर बापु का दर्द।।

हमारे देवता और माताजी को मटके में छुपा कर रखना पड़ता है!यह धर्म प्रवृत्ति नहीं आततायी कृत्य है।।

सरकारों को भी कहते हैं लेकिन कोई सुनता नहीं लेकिन आपका मोरारि बापू आपकी बात सुनता है।।

आप जो मानते हैं मूल में,वह आप नहीं है,मूल आप कुछ और है।।

जिनकी एक आंख में व्हाल और दूसरी आंख में वात्सल्य दिखे उनका शरण लेना।।

जिनकी जीह्वा में सत्य का स्वाद और प्रिय सत्य का प्रसाद हो वहां जाना।।

कथा का काम है स्वाद और प्रसाद देना।।

*जिनके हृदय में हर एक के लिए प्रेम और करुणा हो वहां जाना *

सोनगढ और व्यारा की भूमि पर बह रही रामकथा के पांचवें दिन कथा आरंभ पर इस विस्तार में सनातन धर्म की सेवा करने के लिए अपने पूरी जिंदगी और और बरसों जिसने अर्पण कर दिए ऐसे सेवार्थियों को विशेष याद करते हुए बापू ने यहां की परिस्थिति के बारे में बहुत बड़ी बातें की।।

बापू ने बताया कि थोड़ी बहनें मिलने के लिए आई थी और उनकी बातें सुनकर हो रहा है इतना ज्यादा अत्याचार इस भूमि पर हो रहा है!कोई भाई अकेला सनातन को बचाने के प्रयत्न करता हैं तब वहां भीड़ इकट्ठा होकर मारपीट पर आती है।उन्हें पीटते है। क्या धर्म ऐसा सीखना है!एक वीडियो देखकर बापू ने उन पर अपनी यह बात की।। वह लोग कह रहे हैं कि अपने ही समाज के लोग आकर हमारे मंदिर को तोड़कर देवळ स्थापित कर देते हैं।। वहां सविनय विनय करते हैं,कानूनी कदम भी उठाते हैं, यहां के राजकीय लोगों को भी बात करते हैं लेकिन सभी राजकीय लोग उनके ही हैं! हम चुनकर जिन्हें सत्ता में लाते हैं वह भी हमारी बात नहीं सुन रहे! पुलिस फरियाद नहीं लेती है। कलेक्टर की हुई अर्जी को दबाकर रख देते हैं।यहां के धारा सभा के सदस्य भी कुछ सुनते नहीं है। सत्ता भी कभी-कभी सत्य को इतना नुकसान कर रही है!

बहनों की वह पीड़ा भरी आपबीती बापू ने व्यक्त करते हुए कहा कि व्यास पीठ आपकी निंदा या विरोध करने के लिए नहीं लेकिन हिंदू समाज को जागृत करने के लिए में आया हूं।। और आप झूठी और भ्रामक नींद में फंसे हैं इनमें से समाज बाहर निकल।।यहां के लोगों का कोई सुनता ही नहीं। यहां 70-30 का रेशियोहै।यानी की 70 धर्म परिवर्तन किए गए और 30 हमारे सनातनी हिंदू है।।

नीत्शे ने एक जग प्रसिद्ध वाक्य कहा था की: एकमात्र इशु ही ख्रिस्ती था बाद में कोई ख्रिस्ती नहीं हुआ।।

कोई युवक लड़ता है जैसे कोई ग्राम युद्ध और गृह युद्ध चलता हो। बापू ने कहा गुरु कृपा और ईश्वर कृपा से मेरी व्यासपीठ बहुत व्यस्त होते हुए भी हर साल यहां आती हैं क्योंकि विशेष जागृति के लिए करना होगा।।

यदि यहां का बेटा सनातन धर्म का है और विवाह करने के बाद बेटी इसाइ आती है तो सभी देवस्थानों को फेंक देते हैं।।हमारे देवता और माताजी को मटके में छुपा कर रखना पड़ता है! यह धर्म प्रवृत्ति नहीं आततायी कृत्य है।।सरकारों को भी कहते हैं लेकिन कोई सुनता नहीं लेकिन आपका मुरारी बापू आपकी बात सुनता है।।

जो सहन कर रहे हैं उनके समर्पण तप और त्याग को बापू ने कहा कि मैं नमन और वंदन करता हूं।। और विनय से कहता हूं कि आप जो मानते हैं मूल में वह आप नहीं है।।मूल आप कुछ और है।।

कोई तलवार से और कोई रिवाल्वर से धर्म परिवर्तन करवाता है।।सनातन धर्म के पास धनुष्यबान है लेकिन आध्यात्मिक अर्थ कुछ और है। सच्चा धर्म का प्रचार शस्त्रों से नहीं लेकिन गीता जैसे शास्त्रों से हो सकता है।।आज12 मार्च गांधी जी की दांडीयात्रा की प्रतिज्ञा को भी बापु ने याद किया।

यहां चमत्कार प्रपंच धाक धमकी से बहुत कुछ होता है। दो-तीन दिन पहले भिक्षा लेने के लिए जहां में गया था इस आदमी को बहुत मारा है और सर फोड़ दिया है।।यह धर्म नहीं है,धर्म के लिबास में कुछ और चल रहा है।।बापू ने कहा कौन शाश्वत और सनातन की तरफ हमें खींच सकता है लेकिन भ्रमित मत होना।।

छ वस्तु दिखे उनके पीछे चलना होगा: जिनकी एक आंख में व्हाल और दूसरी आंख में वात्सल्य दिखे उनका शरण लेना।।जिनकीजीह्वा में सत्य का स्वाद और प्रिय सत्य का प्रसाद हो वहां जाना।। कई बार हम देव मंदिर पर प्रसाद के लिए नहीं स्वाद के लिए जाते हैं।। कथा का काम है स्वाद और प्रसाद देना जिनके हृदय में हरएक के लिए प्रेम और करुणा हो वहां आपको जाना होगा।।

रामायण शब्द चार बार लिखा है क्योंकि चार युग में रामायण का गान हो रहा है।। मन बुद्धि चित्त और अहंकार के लिए रामायण काम करता है।। धर्म अर्थ काम और मोक्ष के लिए है इसलिए चार बार लिखा हुआ है।।

राम ने प्रतिज्ञा क्यों तोड़ी ऐसा किसी ने प्रश्न करा था बापू ने बहुत मार्मिक जवाब देते हुए उनके बारे में भी बताया और बापू ने कहा कि मेरे त्रिभुवन दादा सतत जप यज्ञ करते थे।। मेरे पिताजी विचार यज्ञ करते थे और एक बार की वडोदरा की कथा से में जो स्थूल यज्ञ करता हूं वह शुरू हुआ और बाद में मेरा गंगाजल का व्रत भी शुरू हुआ था।।

सती ने राम की परीक्षा की लेकिन विफल रही। शिव ने जाना और प्रतिज्ञा करके सती से दूर हुए। फिर दक्ष यज्ञ में सती पार्वती ने यज्ञ का विध्वंस किया और अपने देह का त्याग किया। दूसरे जन्म में हिमाचल के वहां प्रागट्य हुआ और नारद जी सती का हाथ देखकर सती को कैसा वर मिलेगा वह बात बता रहे हैं।।

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