बहुत सारी तिथियों को बदलने के लिए यह तिथि आयी है:स्वामी चिदानंद सरस्वती जी
यहां बहूत कुछ हो रहा है,मगर बापु ने लिखा:प्रेम देवो भव– वो पुरी दुनिया को सब से जरुरी है:स्वामी चिदानंद जी
“इच्छा करो,खूब करो; इर्षा ना करो“
“मद्य छूटे न छूटे मद छोड़ो“
“निद्रा छोड़ो ऐसा नहीं कहूंगा,मैं कहूंगा निंदा छोड़ो“
“मैं नहीं कहूंगा स्वाद छोड़ो,लेकिन वाद विवाद छोड़ो“
“मैं कभी नहीं कहूंगा कि देश छोड़ो,मगर द्वैष छोड़ो“
युनो के मुख्यालय से प्रवाहित नव दिवसीय रामकथा के आठवें दिन आज साध्वी भगवती जी और परमार्थ निकेतन आश्रम हरिद्वार से स्वामी चिदानंद सरस्वती जी की विशेष उपस्थिति रही।।
पहले साध्वी जी ने अपने भाव रखते हुए कहा:मोरारि बापू की इस रामकथा का संदेश पूरी दुनिया को कैसे जाता है वह बताया। उसने कहा कि हमारे मैसेज की जरूरत यह है।साध्वी जी ने कहा कि हनुमान जी से पूछा गया कि आपने सब कुछ कैसे किया?हनुमान कह सकते थे कि ऐसा किया, वैसा किया, यह भी कह सकते थे कि आप मुझे जानते नहीं है? लेकिन हनुमान जी ने ऐसा कुछ ना कर कर इतना ही कहा कि:भगवान राम का नाम लेता हूं और हो जाता है!
स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने कहा कि एक छोटे से गांव में पैदा हुए और छोटी सी स्कूल में पढ़ते हुए आज पूरे दुनिया को दुनिया के मंच से संदेश देते है। बापु को याद किया कहा किटी २००० की साल में मिलेनियम गोल के लिए १०८ संत युनोके हॉल में उपस्थित रहे थे और आज वह आउटकम आप देख रहे हैं।।
बापु ने वनेनेस का मैसेज, टुगेधर नेस का मैसेज दिया।।
लेकिन २१वीं सदी में जब यूक्रेन रूस और सब देश सहन कर रहे हैं।यूनाइटेड नेशन जब क्रीएट हुआ तो समानता,भुखमरी के सामने,गरीबी के सामने, बीमारी के सामने, सबको न्याय मिले यह सब तो हुआ ही, लेकिन सबसे ज्यादा अगर मुझे प्रिय है तो मनुष्य है।। दुनिया में लोग कहते हैं दुनिया की खूबसूरती इंसान से है। लेकिन इंसान की खूबसूरती इंसानियत से है।। इंसान कैसे बचे?
सब काम के लिए इतने मंत्री सब कुछ कर रहे हैं। लेकिन मुझे यह पसंद आया कि बापु ने एक मंत्र लिख दिया:प्रेम देवो भव।। लव इस द मास्टर की।यु कैन ओपन ऑल द लॉक।।
स्वामी जी ने यह भी कहा कि २६ जनवरी हमारे लिए महत्व की है।। हम मनाते हैं, मनानी चाहिए।
२२ जनवरी भी अब महत्व की है।अयोध्या में वह दिन हमेशा याद रखेंगे। पूरे विश्व के महापुरुष आए थे।बापू भी थे, हम भी थे।।
और १८९३वें की ११वीं सितंबर- जब शिकागो की विश्वधर्म परिषद में विवेकानंद जी गए थे।।
और इस सभी तिथियां के साथ २७ जुलाई से ४ अगस्त भी अब जुड़ेगी। सदियों तक याद रहेगी।। क्योंकि बहुत सारी तिथियां को बदलने के लिए यह तिथि आ रही है।।
स्वामी जी ने कहा:बी लवी लवी!बी ज्यूसी ज्यूसी,बी हगी हगी! इफ लव इझ लोस्ट एवरिथींग इझ लोस्ट।।
कथा शुरु करते हुए बापू ने कहा कि परमार्थ निकेतन गंगा तट पर रहे आश्रम में रहकर पूरी दुनिया में विचरण करते हुए यह साधु ने जो कहा वह शब्द नहीं भाव था।। क्योंकि शब्द बहुत कम पडते हैं।। भाव ही महत्व का है।।
और बापु ने स्वामी जी के संन्यासीपन और सब सेवा को प्रणाम करते हुए आज की कथा का आरंभ किया।।
कथा के आरंभ में किसी ने पूछा था कि आशा और इच्छा करनी चाहिए कि नहीं?
बापु ने कहा हम जीव है।इच्छा करते रहते हैं। इच्छा करने से आदमी विकसित होता है तो ठीक है! लाख उपदेश करें इच्छा कहां छुट्टी है। लेकिन मेरा इतना ही विनय है: इच्छा करो,खूब करो; इर्षा ना करो।। ऐसा करेंगे तो इच्छा अमृत वेल,कल्पतर हो जाएगी। परस्पर देवो भव-रंग अवधूत का यह सूत्र है। रामचरितमानस का सूत्र है:सब नर करहि परस्पर प्रीति।। विवेक से निर्णय करो इच्छा सम्यक है की हद से ज्यादा है।।
बापु ने कहा कि मद्य-शराब छूट जाए तो बहुत अच्छा है।मद्य छोड़ो ऐसा मैं नहीं कहूंगा। मैं इतना ही कहूंगा कि मद्य छूटे न छूटे मद छोड़ो।।अहंकार छोड़ो।मैं ईश्वर हूं, मैं इतना बड़ा हूं यह छोड़ो।
साधु संत जागते हैं। एक बात है लेकिन निद्रा छोड़ो ऐसा नहीं कहूंगा।। मैं कहूंगा निंदा छोड़ो।। गांधीजी ने कहा था स्वाद छोड़ो। मैं नहीं कहूंगा स्वाद छोड़ो, लेकिन वाद विवाद छोड़ो।। मैं कभी नहीं कहूंगा कि देश छोड़ो, ना छोड़ो;मगर द्वैष छोड़ो।।
श्री शंकराचार्य जी ने एक मंत्र विवेक चूड़ामणि में दिया है। बापू ने वह मंत्र समूह गान,समूह उच्चारण करके अपनी संवादी बातें बताई:
जाति नीति कूल गोत्र दुरंग
नाम रूप गुण दोष वर्जितम्
देश काल विषयातिवर्ति
यद ब्रह्म तत तमसि भाव्यात्मानि
यह मंत्र कहता है जो ब्रह्म है उसकी कोई जाति नहीं हमारे गुजरात में गंगा सती पानबाई को कहती है: जाति और पाति हरि के देश में नहीं है। ब्रह्म की कोई नीति नहीं,कोई कुल गोत्र से भी पर है। ब्रह्म नाम,रूप,गुण,दोष से वर्जित है।। फिर भी ब्रह्म अवतार लेकर आते हैं तो हम राम और कृष्ण नाम देते हैं।। ब्रह्म को यह भाव से अनुभूत करो।।
पृथ्वी का कुल और वंश सूर्य है। इसलिए भगवान राम सूर्यवंश में अवतार करके आए।। पृथ्वी का गोत्र है:मंगल।। देश आकाश है। पृथ्वी की प्रवृत्ति है: निरंतर परिभ्रमण। और स्वभाव है धैर्य और सहनशीलता।।
हमारे परिवार में भी ऐसे ही हम प्रकाशमय सूर्य बने हमारा गोत्र विश्व मंगल का बने।।
बापू ने कहा कि कोई मंदिर में भगवान की मूर्ति प्रतिष्ठा करता है तो नर,नारायण की प्रतिष्ठा करता है यहां नारायण ने नर का सम्मान किया है। सब ते अधिक मनुज मोहि भाये…. आज मनुष्य भूलाया जा रहा है।। हम स्व से लेकर प्रमाणिक पुरुषार्थ करें वो भजन साधन सब माना जाएगा। यही हमारा पाठ है। पृथ्वी पर अच्छे ढंग से कदम रखो वही परिक्रमा है।। अच्छे ढंग से बात करो वही स्त्रोत है।।
बापू ने कहा कि कल इस कथा का विराम दिन है और कथा सुबह ६:०० बजे शुरू होगी।।
कल हम कह देंगे कि हमने बीज बो दिया है अब वसुधा जाने और बादल जाने!
बाकी की लंबी कथा को विहंगावलोकन करवाते हुए बापु ने अयोध्याकॉंड के श्लोक से आरंभ किया। बीच में कृष्ण सुदामा मिलन का भावुक प्रसंग कहकर सभी कॉंड के महत्व के प्रसंगों को संक्षेपमें गा कर रावण निर्वाण और राम राज्याभिषेक कथा पर विराम दिया गया।।
कल राम राज्य की उप संहारक बातें कर के ये कथा को विराम दिया जायेगा।।