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मोदी सरकार कश्मीर के इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित करने के लिए दृढ़संकल्पित हैऔर जो हम खो चुके हैं, उसे जल्द ही प्राप्त कर लेंगे: अमित शाह

  • शासकों को खुश करने के लिए लिखे गए इतिहास से मुक्ति पाने का समय आ गया है
  • देश में एक दौर आया था, जब दिल्ली के दरीबा से बल्लीमारान और लुटियंस से जिमखाना तक इतिहास को सीमित करके देखा गया

गुजरात, अहमदाबाद 03 जनवरी 2025: केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता अमित शाह ने ‘जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख: सातत्य और सम्बद्धता का ऐतिहासिक वृत्तांत’पुस्तक के विमोचन के दौरान यह स्पष्ट किया कि ‘पिछले 10 सालों से मोदी सरकार कश्मीर के इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित करने के लिए दृढ़संकल्पित है। साथ ही, इस बात पर भी जोर दिया कि हम जो हम खो चुके हैं, उसे जल्द ही प्राप्त कर लेंगे।’

कश्मीर से कन्याकुमारी और बंगाल से गुजरात तक विविध संस्कृतियों, धर्मों, खान-पान और पहनावे  वाले इस देश में दशकों तक इतिहासकारों ने एक मिथक बनाकर रखा कि भारत की आजादी की कल्पना ही बेईमानी है। दरअसल इतिहासकारों खासकर वामपंथी इतिहासकारों ने भारत को  जियोपॉलिटिकल नजरिए से देखा और लिखा, जबकि दुनिया भर में भारत एकमात्र देश है जो जियोकल्चर है और जिसकी सीमा संस्कृतियों से बनी है।

‘जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख: सातत्य और सम्बद्धता का ऐतिहासिक वृत्तांत’ नामक इस पुस्तक ने बारीकी से यह साबित किया है कि देश के हर हिस्से में मौजूद संस्कृति, भाषाएँ, लिपियाँ, आध्यात्मिक विचार, तीर्थ स्थलों की कलाएँ, वाणिज्य और व्यापारहजारों साल से कश्मीर में मौजूद थे। लगभग 8 हजार साल पुराने ग्रंथों के संदर्भों पर आधारित इस पुस्तक ने स्पष्ट रूप से साबित किया है कि कश्मीर पहले भी भारत का अविभाज्य अंग था, आज भी है और हमेशा रहेगा।

नेपाल से काशी, बिहार, कश्मीर और अफगानिस्तान तक की बौद्ध धर्म की यात्रा को संदर्भों के साथ प्रमाणित करने वाली यह पुस्तक बताती है कि भगवान बुद्ध के बाद परिष्कृत किए गए सिद्धांतों का जन्मस्थान भी कश्मीर था और आज के बौद्ध धर्म के विद्यमान बौद्ध धर्म के सिद्धातों की जन्मभूमि भी कश्मीर ही है। कश्मीर के 8 हजार साल के इतिहास को इस पुस्तक में ऐसे उकेरा गया है मानो एक पात्र में गंगा को समाहित किया जा रहा हो।

शासकों को खुश करने के लिए लगभग 150 साल तक इतिहास का मतलब दिल्ली के दरीबे से बल्लीमारान और लुटियंस से जिमखाना तक सिमट कर रह गया था। लेकिन मोदी सरकार में अंत्योदय की राजनीति करने वाले अमित शाह ने इतिहासकारों को संदेश दिया कि शासकों को खुश करने के लिए लिखे गए इतिहास से निजात पाने का समय अब आ गया है। भारत के इतिहास को आत्मविश्वास, प्रमाणों, तथ्यों और हजारों साल पुरानी संस्कृति को भारतीय दृष्टिकोण से लिखने की जरूरत है। आज देश स्वतंत्र है और अमृतकाल में भारत में ऐसा शासन है जो देश के विचारों से चल रहा है। कश्मीरी, बाल्टी, डोगरी, लद्दाखी जैसी भाषाओं को शासन की भाषा बनाकर उसे दीर्घायु करने का काम मोदी सरकार ने किया है।

आजादी के बाद दशकों तक कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करने का प्रयास किया। लेकिन, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व और केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह के कुशल मार्गदर्शन में धारा 370 नामक उस नासूर को ही समाप्त कर दिया गया, जिसके बल पर जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करने का प्रयास किया जा रहा था।

कश्मीर के लिए अपनी जान तक की बाजी लगा देने वाले शाह के दृढ़ संकल्प ने धारा 370 को हटाकर भारतीय इतिहास के एक कलंकित अध्याय को खत्म करने का अभूतपूर्व काम किया है। भारत की राजनीति को नई दिशा देने वाले अखंड भारत के सबसे बड़े पैरोकार शाह की नीतियों के तहत आज जम्मू-कश्मीर विकास के पथ पर सवार होकर नए भारत के निर्माण में अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहा है।

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