जम्मु-कश्मीर के भाइ-बहनों के लिये महोब्बत का पयगाम लेकर आया हुं।।
भारत भूमि सत्य से अभय बने,प्रेम से त्याग उतरे और करुणा से अहिंसा उजागर हो इसलिये आया हुं।।
लंकाकांड में धर्मरथ लेकर आया हुं।।
पृथ्वि का जन्नत चश्म-ए-शाही कश्मीर की वादीओं,दाल झील के तट पर श्रीनगर की खुशनुमा मनमोहक छांव में मोरारिबापु की ९५५ वीं रामकथा का इन बीज पंक्तियों के गान के साथ आरंभ हुआ।।
सिंहासन अति उच्च मनोहर।
श्री समेत प्रभु बैठे ता पर।।
प्रबिसी नगर किजै सब काजा।
ह्रदय राखि कौसलपुर राजा।।
कथा आरंभ से पहले जम्मु कश्मीर के महामहिम उप राज्यपाल मनोज सिंहा जी ने दीप प्रागट्य किया और अभ्यासपूर्ण उद्बोधन में देश और विदेश के रामायणों के बारे में बताया और साथ ही कहा कि बापु ने मानस अमरनाथ(२००७),मानस मातृदेवो भव(वैष्णवो देवी)-२०१६ में कथागान किया।श्रीनगर में बापु की पहली कथा है।।जिंदगी की आपाधापी में हम न राम को सुन पाये न देख पाये न ही महेसुस कर पाये लेकिन बापु ने बारियां खीडकी हमारे लिये खोली है।।बापु की राम कथा मानो सुबह का ताजा सुरज उगता हो और सुगंध रामनाम कहके पुकारती है।।मैं बापु को प्रभु श्री राम के हनुमान मानता हुं।।
महामहिम के साथ आसिस्टन्ट डीवी कमिश्नर बी के बद्रा,डीसी श्रीनगर,डायरेक्टर ऑफ टुरिझम याकुब रझा,मुख्य आयोजक शाहनवाज शाह भी व्यास पीठ पर आये।।
मनोरथी अरुणभाइ ने भी सुंदर ऐतिहासिक संदर्भ से भरा अपना भाव प्रगट किया।।
कथा आरंभ करते हुए बापू ने कहा केवल,केवल और केवल हनुमान जी की कृपा से हम सब यहां है। बहुत समय से एक त्रिभुवनीय मनोरथ था मेरे अखंड भारत वर्ष की भूमि का एक मनोहारी प्रदेश, अनेक साधनाओं से सभर ऐसे परमात्मा दत्त सौंदर्य से भरी भूमि पर रामकथा का अनुष्ठान हो।।
उत्साह वर्धन के लिए जम्मू कश्मीर के महामहिम उपराज्यपाल महोदय भी आए।। कर्तव्य के साथ मोहब्बत भी जताई।।
इस भूमि पर अध्यात्म की हर धारा ने कार्य किया है यह भूमि ऑलरेडी चार्ज्ड है।।मोहब्बत का पैगाम लेकर कश्मीर के भाई बहनों के लिए आया हूं।। राम भी हनुमान को महत्व का काम सौंपते थे। हम भी हनुमान को सब सौंप दे फिर वो जाने और उनकी प्रतिष्ठा जाने! यहां शैव तंत्र शाक्त तंत्र भी है। यह साधना की भूमि है।शंकराचार्य का स्थान है। अमरनाथ भगवान है। पुराण प्रसिद्ध रघुनाथ मंदिर, वैष्णो देवी है और हजरतबाल मस्जिद भी है।।
हर धर्म में धंधे होते हैं, लेकिन कुछ लोग ही गंदे होते हैं!
यहां पंडितों का इतिहास, संगीत विद्या, कला सब कुछ है।।
भारत भूमि सत्य से अभय बने,प्रेम से त्याग और करुणा से अहिंसा उजागर हो इसलिए यहां आया हूं विषय श्री नगर में इस कथा का विषय जहां श्री शब्द मानस में 18 बार स्वतंत्र रूप में आया है।। नगर शब्द भी बहुत आया है।। एक पंक्ति लंका कांड से दूसरी सुंदरकांड से ली है।।
कथा की पावन पवित्र परंपरा में बताया कि सत्य को ऋषि मुनियों ने तीन अलग-अलग कोने से देखा है: एक व्यवहारिक सत्य, एक आभासी सत्य और एक पारमार्थिक सत्य, इसे हम परम सत्य कहते हैं।। कोयला और हीरा दोनों कार्बन है लेकिन व्यवहार में अलग है।।
पहले कांड में श्लोक में वाणी और विनायक की वंदना की।। श्रद्धा और विश्वास रूपी पार्वती और शिव की वंदना,सीताराम जी की वंदना और फिर लोक बोली में पांच सोरठा में गुरु वंदना इसे हम मानस गुरु गीता कहते हैं।। और सनातनी परंपरा के पांच देवों की वंदना की।। और गुरु गीता का गायन करने के बाद आखिर में हनुमंत वंदना करके आज की कथा को विराम दिया गया।।