Homeगुजरातनंदप्रयाग से ९५६ वीं रामकथा का आरंभ हुआ।

नंदप्रयाग से ९५६ वीं रामकथा का आरंभ हुआ।

मानस नंद प्रयाग।। कथा क्रमांक-९५६ दिन-१ दिनांक-३ मे २०२५
नंद प्रयाग से आनंद की कथा बहेगी।।
नंदप्रयाग से ९५६ वीं रामकथा का आरंभ हुआ।।
ज्ञान की सात भूमिका है और सद्गुरु के सात लक्षण है।।
अब दुनिया को शीलकंठ की जरूरत है।।
उतराखंड कें जग विख्यात पंच प्रयागो में एक अलकनंदा और मंदाकीनि के संगम पर है वो नंद प्रयाग है।जो उतराखंड के चारधाम यात्रा मार्ग पर स्थित है।।
विगत वर्ष पर कर्णप्रयाग के जिलासूं में रामकथा हूइ थी।।
इस से पहले देवप्रयाग,रूद्रप्रयाग और कर्ण प्रयाग में कथा अनुस्ठान हुए है।।
ये कथा के मनोरथी मुंबइ स्थित सत्संगी रीना गौड और परिवार है।।कथा आयोजक समिति से मनोज जोशी है।।
कथा आरंभ पूर्व बिलकूल साहजिक और सरलतम स्वागत रीनाबहन द्वारा हुआ।।
बापु ने अपने चीर परिचित आवाझ में हनुमान जी का आवाहन और स्थापन कर के बीज रुपी पंक्तियों का गान किया जो बालकॉंड से ली गइ है:
हरषित जहं तंह धाइ दासी।
आनंद मगन सकल पुरबासी।।
जो आनंद सिंधु सुख रासि।
सीकर तें त्रैलोक सुपासी।।
-बालकॉंड
बापू ने कहा कि परमात्मा की अहेतु असीम कृपा से भगवती अलकनंदा गंगा जी के तट पर नंदप्रयाग तीर्थ में कथा का आरंभ हो रहा है।।प्रवाह मान परमात्मा हमारी दिव्य नदियां हैं।। यह देवभूमि दिव्य और सेव्य भूमि के कण-कण को और देव नदियों के बूंद-बूंद को प्रणाम करते हुए बापू ने कहा कि यहां भगवान की कृपा से 31 कथा उत्तराखंड में हुई है।। यह भूमि हमें खींचती है।।गंग धारा ऊपर से नीचे बहती है लेकिन रामकथा रूपी गंगा नीचे से ऊपर जा रही है! बहुत सालों से निरंतर कथा सुनने वाली रीना बहन ने कथा के लिए द्रव्य इकट्ठा किया मनोरथ किया और आज हम यहां हैं।।
कितने ही प्रयाग है: देवप्रयाग,रूद्रप्रयाग,नंदप्रयाग, अभी विष्णु प्रयाग और सोनप्रयाग भी है।। वैसे यह कथा का नाम मानस नंद प्रयाग रखेंगे लेकिन आनंद शब्द ब्रह्म पर हम संवाद करेंगे।। नंद का एक अर्थ आनंद होता है।। ब्रह्मलीन डोंगरेजी महाराज कहते थे नंद वह है जो सबको आनंद दे।।सबको यश दे और खुद अपयश ले वो यशोदा है।।
नंद प्रयाग में आनंद की कथा बहेगी।।

श्रीमद् भागवत श्री कृष्ण का वांग्मयी स्वरूप है और इनमें से आनंद की वर्षा होती है।। इन दिनों में परम चेतनाओं का प्रागट्य हुआ है जैसे जगतगुरु शंकराचार्य जी फिर परशुराम जी की अक्षय तृतियां, गणेश चतुर्थी, पंचमी षष्ठमी के बाद गंगा सप्तमी और नवमी तिथि जानकी जी जयंती है।।

हमारे पूर्वज मनु और शतरूपा बूंद वंश से जुड़े हैं देवताओं से भी हमारा सोम और सूर्यवंश है।।ऋषि मुनि भी हमारे पूर्वज है।। व्यास वाल्मीकि हमारे पूर्वज है।। रामचरितमानस,महाभारत,ब्रह्मसूत्र भगवत गीता वेद आदि ग्रंथ हमारे पूर्वज है।।हम पूर्व से आए इसलिए हमारा वंश है पूर्वज।।मानस में आनंद शब्द की वर्षा है:चिदानंद,परमानंद, सच्चिदानंद,ब्रह्मानंद ऐसे कई आनंद है।।राम प्रागट्या पर अयोध्या में और बाद में नामकरण संस्कार यह दो पंक्ति हमने वहां से ली है।।ज्ञान और योग का यह समन्वय है।।ज्ञान की सात भूमिका है और सद्गुरु के सात लक्षण है।। जैसे बालकांड में सद्गुरु बालवत बालकवत होते हैं।।बुद्ध पुरुष खुद को निहार के नाचते हैं। एक लक्षण है संघर्ष रहित होते हैं।।बापू ने कहा कि नीलकंठ महादेव तो है ही अब दुनिया को शीलकंठ की जरूरत है।। बुद्ध पुरुष के लक्षणों में-रहते हैं भवन में लेकिन दृष्टि वन में होती है, मैत्री,सुंदरता,निर्वाण और परम विश्राम यह हमारे सद्गुरु के लक्षण है।। कथा में मंगलाचरण में सात मंत्र जहां वाणी और विनायक की वंदना से शुरू करते हुए सात मंत्र में नव वंदना की गई।। बाद में गुरु वंदना और अंत में हनुमंत वंदना का गायन करके आज की कथा को विराम दिया गया।।

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