Homeगुजरातक्या दुनिया में शत प्रतिशत शांति हो सकती है?

क्या दुनिया में शत प्रतिशत शांति हो सकती है?

यह संस्था के विचार सूत्रों में भारतीय दर्शन प्रबल है कोई स्वीकार करें ना करें!

सद आचार,सद विचार,सद उच्चार से विश्व में ९९ प्रतिशत शांति हो सकती है।।

“विचार को भी मैं ब्रह्म कहता हूं”

दूसरे दिन की कथा के आरंभ में रामदेव बाबा, द्वारिका के केशवानंद जी की विशेष उपस्थिति रही बापू ने बताया पूरा जगत यह मेरा,यह आपका यह बातों में रत है।। भारतीय मनीषियों ने मेरा तेरा छोड़कर वसुधैव कुटुंब की बात करी।।उपनिषद में सत शब्द का महिमा है। भगवत गीता ने सम पर बल दिया है और रामचरितमानस में सत्य तो है ही सम भी है,सब शब्द पर बल दिया है।। यह दो पंक्तियों में तुलसी जी बार-बार सब शब्दों पर बल देते हैं।।

विनोबा जी ने कहा है अहम शब्दों में से हम निकल जाए तो दुनिया में शांति होगी।। तुलसीदास जी यह हम पर काम कर रहे हैं। दुनिया में शत प्रतिशत शांति हो सकती है? राजापीठ,व्यास पीठ, ज्ञानपीठ, कर्म पीठ, प्रेम पीठ,भाव पीठ कोई भी हो संवाद जरूरी है।।

यह संस्था के विचार सूत्रों में भारतीय दर्शन प्रबल है कोई स्वीकार करें ना करें! वेदों और मानस में सब ऑलरेडी है। इसका आनंद है। जगत बनता है तब रजोगुण की जरूरत पड़ती है। रजोगुण है वहां कुछ न कुछ अशांति होती है।।शत प्रतिशत शांति नहीं हो सकती। सत्वगुन पालन कर्ता है,तमो गुण विलय करता है।। इसलिए 33% मिलाकर 99% शांति हो सकती है।। यदि 33% व्यक्ति के विचार सदविचार हो जाए,वाणी सदवाणी हो जाए और बर्तन सद्वतर्न में परिवर्तित हो जाए तब 99% शांति मिलती है।। सद्व आचार, सद्व उच्चार और सदाचार ही विश्व में शांति प्रदान कर सकता है।।

बापू ने कहा कि विचार को भी मैं ब्रह्म कहता हूं। शब्द तो ब्रह्म है ही।।विचार केवल अपने के लिए नहीं सबके लिए हो।। वाणी भी ब्रह्म है।

विनोबा जी कहते हैं एक व्यक्ति अच्छा विचार लेकर 100 कदम चले, स्वागत है। लेकिन सो व्यक्ति एक विचार लेकर 10 कदम चले वह ज्यादा अच्छा है।।

युनोने कई बार भारत के विरुद्ध में अभिप्राय दिया लेकिन भारत ने कभी छोड़ा नहीं।। बापू ने कहा हमारी बुद्धि की अशुद्धि के तीन कारण है: पहले है भेद बुद्धि।। बापू ने यह भी बताया कि इस संस्था में मानव अधिकार की घोषणा के सूत्रों में सब भारत के विचार है, सत्य यही है, कोई इज्जत दे ना दे! मानव अधिकार बहुत के बहुत से रूषियों के 5000 साल के पहले के विचार आज भी प्रस्तुत है।। जिसके संविधान में भारतीय विचार है वहां सुरक्षा समिति में भारत को प्रवेश नहीं है! दूसरा है बुद्धि का अहंकार-अहम बुद्धि।। तीसरा व्यभिचारिणी बुद्धि जो कोई निर्णय नहीं कर सकती। यह तीनों को ठीक करने के लिए तीन उपाय: यज्ञ दान और तप है यज्ञ भेद बुद्धि का नाश करता है।। वाह-वाह नहीं स्वाहा करना पड़ता है।। दान के द्वारा अहम बुद्धि शुद्ध होती है। दान से अहंकार बढ़ता नहीं दान का मतलब त्याग है।।तपके द्वारा व्यभिचारिणी भटकती बुद्धि स्थिर होती है।।

बापू ने कहा कि यह कोई विशेष नहीं कथा ही प्रधान है।इसे इतना बड़ा महत्व नहीं देता।

कथा के क्रम में हनुमान जी की वंदना आगे बढ़ाते हुए बापू ने कहा केवल बंदर नहीं हनुमान सुंदर है। राम मंगल मूर्ति है वैसे हनुमान जी भी मंगल मूर्ति है कोयल मधुर बोले लेकिन मानस में कौवा भी मधुर बोलता है। मनुष्य मधुर बोले वह समझ में आता है रामचरितमानस में एक वानर मधुर वचन बोलता है। सीता जी की वंदना हुई वह सत्य प्रेम और करुणा की वंदना है।। सीता सत्य है,अतिसय प्रिय प्रेम है और करुणा निधान करुणा है।।

बापू ने कहा यह विचारों की पूजा करते हैं राम नाम का महिमा का गायन हुआ राम-सूर्य चंद्र और अग्नि का बीज तत्व है।। प्रणव का पर्याय है। ब्रह्मा विष्णु महेश है। राम नाम की परिक्रमा करके गणेश प्रथम पूज्य बने। नाम की बड़ी महिमा है रूप से व्यक्ति नहीं मिलता नाम से मिलता है।।

फिर बाबा रामदेव ने आशीर्वचन और योग के बारे में  कुछ बताया।।

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