Homeगुजरातमानस कालिका कथा क्रमांक-९४४ दिन-१ दिनांक-५ अक्तूबर

मानस कालिका कथा क्रमांक-९४४ दिन-१ दिनांक-५ अक्तूबर

दंतकथा रूप भूमि पर कालिकाकथा का आगाझ हुआ।।
शायद अति विशाल के साथ सौम्यता से वर्ताव नहि किया जाता।।
कौशल्या आजिवन विवेक में जीयी,सुनयना विचारों में,शबरी जीवनभर विश्वास में,शूर्पणखा विलास में,मंदोदरी विषाद में जी गइ।।
दशरथ आजीवन विषाद में,हनुमान जी वैराग्य में,जनक विचारों में और राम जीवन भर विनोद में जीये।।
सौभाग्य है की रामकथा ने हमें पकडा है।।

महामोहु महिषेसु बिसाला।
रामकथा कालिका कराला।।
रामकथा ससि किरन समाना।
#संत चकोर करहिं जेहिं पाना।।*
-बालकॉंड
इन्ही बीज पंक्तियों के साथ कथा आरंभ से पहले मुरली बाबाने आठ साल पहले ये विशेष भूमि की सराहना और सदविचार रखा था-बापु ने सब कुछ कर दिया और मनोरथी राजु परिवार को प्रसन्नता से याद करते हुए शारदीय नवरात्र के विशेष दिनों में दक्षिण की काशी माने जानेवाली गोकर्ण की भूमि और शिव को समर्पित महाबलेश्वर की भूमि पर कथा आरंभ करते हुए बापु ने बताया की महाकाल और महाकाली की कृपा से कथा का नाम मानस कालिका के बारे में बताया।।
याग्यवल्क्य ने बालकॉंड में मानस को कालिका कहा।।तुलसी जी भी रामकथा को शैलपुत्री,कुष्मांडा,दुर्गा नहि कालिका कहा वहां भी कुछ संकेत है।।
कालिका और सभी नवदुर्गा अष्ट भुजायें है।।हमारे रामचरित मानस में सर्व शब्द लिखा है।सर्व का मतलब है-पूर्ण,सब,इस के आगे कुछ नहि।।नवरात्र में ९ का अंक पूर्णांक है।।कथा भी नवदिवसीय-पूर्णांक।।
रामचरितमानस-आठ अक्षर है।।किसी ञुषी ने शिवजी को पूछा की आप के युगल स्वरूप में सभी मातायें नवदुर्गा फिर आपने रामायण आठ अक्षरों का क्यों बनाया?शिवजी ने कहा की मैं अष्टमूर्ति और नवदुर्गा अष्ट भुजा वाली हैं इसलिये!
गाय की आंखे और सभी अंग जैसे गाय की खरी-गोपद,शिंग,पूंछ,आंचल,गला-गुदडी,गाय के कर्ण सब विशेष महत्व के है।।
महासरस्वती ब्रह्मा से जूडी सर्जनकर्ता,महालक्षमी पोषणकर्ता और महाकाली अनावश्यक का संहार कारिणी है।।
शायद अति विशाल के साथ सौम्यता से वर्ताव नहि किया जाता।जैसे समुद्र,आकाश,रावण-मोह और महिषासुर-महामोह,सब अति विशाल है तो वहां कालिका कराला ही ठीक है।।
रामचरित मानस के नारी पात्रों में कौशल्या आजिवन विवेक में जीयी,सुनयना विचारों में,शबरी जीवनभर विश्वास में,शूर्पणखा विलास में,मंदोदरी विषाद में जी गइ।।
दशरथ आजीवन विषाद में,हनुमान जी वैराग्य में,जनक विचारों में और राम जीवन भर विनोद में जीये।।
मंगलाचरण में सात मंत्र में वंदना के बाद सोरठे में पंच देवों की वंदना,पांचवें सोरठे से गुरुवंदना का गायन हुआ और फिर विविध वंदनाओं के बाद हनुमंत वंदना का गान करते हुए आज की कथा को विराम दिया गया।।बापु ने कहा कि मानस ने हमें पकडा है,हमने मानस को नहि पकडा।।हमारा सौभाग्य है की रामकथा ने हमें पकडा है।।

ये गोकर्ण भूमि एक अद्भूत क्विदंती से जूडी हूइ है।।
रावण की माता प्रख्यात और कट्टर शिव भक्त थी।।अपने पुत्र की समृध्धि के लिये शिवलिंग की पूजा कर रही थी तब स्वर्ग देव भगवान इन्द्र को इर्षा हूइ,शिवलिंग की चोरी करके समुद्र में फेंक दिया।।रावण की मॉं विचलित होकर भूख हडताल पर बैठी।।उनकी शिवभक्ति में विक्षेप पडा था।।तब रावण ने अपनी मॉं को वचन दिया की वो खुद भगवान शिव के निवास स्थान कैलास पर जाकर आत्मलिंग वहीं से लाकर देगा।।रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये कैलास पर घोर तप किया।अपने मधुर आवाज में शिवस्तुति(शिव तांडव स्तोत्र)का गान किया।।अपना मस्तक काट दिया और अपनी आंत और चमडी से धागे निकाल कर विणा बनाइ।भगवान शिव प्रसन्न हूए और पूछा की क्या चाहिये।।रावण ने आत्मलिंग ले जाने का वरदान मांगा।।शिव ने कहा की आत्मलिंग को कोइ चोरी नहि कर सकता और एकबार उठाकर ले जाते हो और कहीं जमीन पर रख्खा तो फिर वहीं लिंग का स्थापन करना होगा।।वरदान पाकर रावण ने लंका की ओर प्रस्थान किया।।
गोकर्ण की तरफ आ रहा था और बीच में भगवान विष्णु ने संध्या की स्थिति दिखाने के लिये सूर्य का नाश किया।रावण को लगा की संध्या हो गइ,तो अपनी सांध्य विधि करने की चिंता हूइ।।उसी वक्त भगवान गणेशने ब्राह्मण बालक का रूप लेकर पूजा की बात कही।।
रावण ने कहा कि जब तक वो पूजा करे ये आत्मलिंग को जमीन पर मत रखना।।गणेश ने कहा की वो तीन बार बुलायेगा,तीन बार में रावण न आये तो आत्मलिंग जमीन पर रख देंगे।।
फिर गणेश ने जल्दी से तीन बार रावण को पुकारा।
रावण नहि आया तो गणेश ने जमीन पर आत्मलिंग रख दिया।।रावण को छला।।गायों के साथ वहीं से गायब हो गये।।रावण ने एक गाय का पीछा किया जो भूगर्भ में जा रही थी।वो गाय के कान पकडने में सफल रहा।। गाय का बाकी का शरीर जमीन के अंदर गायब हो गया।।ये कान अब पेट्रीफाइड स्वरूप में दिख रहे हैं।।
इसी स्थान को गोकर्ण नाम दिया गया।।गोकर्ण का मतलब ‘गाय का कान’ होता है।।
फिर रावण ने शिवलिंग उठाने के बहूत प्रयास किये,विफल रहा।।फिर आत्मलिंग को महाबलेश्वर-सर्व शक्तिमान नाम दिया।।
क्विदंती के अनुसाल इस स्थान को तीन नाम से जाना गया:
गोकर्ण-गाय का कान,शिवलिंग-महाबलेश्वर और देवी भद्रकाली।।

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