हम साधु नागर ब्राह्मण है:मोरारिबापु।।
पितामह वो है जिनके मुख से धर्म की बातें निकलती है।।
हमारे अर्थ की व्यवस्था होती है।।
हमें उद्यमी बनाते हैं।।
व्यसन से,जूहारी से,व्यभिचार और चोरी से मुक्त करते हैं,ऐसे पितामह मोक्ष प्रदान करते हैं।।
बापु ने सुनाया रसमयी सत्यवान और सावित्री का आख्यान।।
गुजरात के महुवा के पास मोरारिबापु के दादा गुरुजी की स्मृति भूमि काकीडी गॉंव से चल रही रामकथा के छठ्ठे दिन कथा आरंभ के पूर्व तीन महत्व के प्रकल्प व्यास पीठ पर हुए:
बापू अपनी कथाओं में दृष्टांत के द्वारा कथा को बिल्कुल सरल करते हैं।सभी दृष्टांत को संकलित करके गुजरात के विध-विध अखबारों में नियमित रूप से जो प्रगट हो रही है ऐसी दृष्टांत कथाओं का पुस्तक-बावो बोर बॉंटता’-भाग-४ श्री जयदेव भाई मॉंकड द्वारा संपादित हुआ।। यह पुस्तक व्यास पीठ और ब्रह्मार्पण किया गया।।
श्री जयदेव भाई मॉंकड कैलाश गुरुकुल और अन्य अनेक प्रकार की जिम्मेदारी का निर्वहन करते हैं।। बाप विचार प्रेरक जो बोलते हैं वह संकलित करके गुजरात के अखबारों में नियमित रूप से प्रकट किया जाता है।।अपने विचारों को रसमयी बनाने के लिए और असरकारक करने के लिए बापू दृष्टांत देते हैं। तीन पुस्तक पूर्व कथाओं में लोकार्पित किए गए थे।।आज चौथा भाग व्यास पीठ को अर्पण करते समय एक खास बात यह हुई की वैसे संपादक और लेखक स्वयं पुस्तक अर्पण करने के लिए मंच पर उपस्थित रहते हैं।। लेकिन जयदेव भाई को डोलरभाइ मॉंकड के शील और संस्कार मिले है। वह मंच से कुछ ही फुट की दूरी पर थे लेकिन मंच पर ज्यादा नहीं आते हैं।। गुजरात के सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी के प्रथम कुलपति आदरणीय पूज्य डॉलर भाई मांकड का समृद्ध गौरवयुक्त वारस जयदेव भाई निर्वहन करते हैं।।
और यहां त्रिभुवन दादा की सेवा का सद्भाग्य जिसे मिला वह मोहन भगत के परिवार की छोटी बच्चियों के द्वारा यह पुस्तक बापू को अर्पण किया गया। वह एक गौरवप्रद और आनंददायक घटना बनी।।
दूसरा प्रकल्प बापू की रामकथा प्रकाशन श्रृंखला में तीन राम कथा- जो नितिन भाई वडगामा और टीम बहुत प्रयत्न करके संपादित करते हैं।।इनमें से मानस मौन(जॉर्डन कथा)जहां मौन साधना नहीं अवस्था है वह निवेदन बापू के द्वारा हुआ था। मानस ज्वाला देवी(ज्वालामुखी कथा)मां जगदंबा का महिमा गान हुआ था और मानस त्रिभुवन (तलगाजरडा कथा)त्रिभुवन गुरु पर केंद्रित हुई थी वह तीनों पुस्तक हिंदी गुजराती और अंग्रेजी भाषा में सुलभ उपलब्ध है।।
और तीसरी बात यहां यह बड़ा कथा पंडाल और ऐसे ही अनेक पंडाल एवं पार्किंग के लिए अपने खेत में पाक लिए बिना भूमि को उपयोग करने के लिए अर्पित करने वाले आठ परिवार,जो कुछ मांगते नहीं है लेकिन बापू के ह्रदय भाव के साथ सॉल और स्मृति चिन्ह व्यास पीठ पर बापू के हाथों अर्पण किया गया।।
बापू ने सभी के लिए अपनी प्रसन्नता प्रकट की बापू ने यह भी कहा कि मेरे बहुत अनुभव है की कहीं कथा होती है तो छोटा सा रास्ता भी नहीं मिलता और यदि कोई रास्ता देते हैं तो तीन गुना पैसे वसूल करते हैं!
लेकिन धन्य है काकीड़ी के इन लोगों को। जहां संस्कार भरे पड़े हैं और वह त्रिभुवन कृपा का प्रताप है।।
आज बापू ने अपने साधुकुल के मूल के बारे में बताते हुए कहा कि त्यागवादी लोगों को यदि गुरु आदेश करते हैं तो वह संसार में आते हैं।। ऐसे बहुत से उदाहरण है।लेकिन एक प्रमाण जो बापू ने कहा ध्यान स्वामी दादा, सेंजल धाम में समाधि है। उनके शिष्यत्व कौंजलि गांव के जीवन दास मेहता- नागर ब्राह्मण परिवार ने पसंद किया और उन्हें मालूम हुआ कि एक परम साधु ध्यानस्वामी बापा आए हैं तो नागर ने साधु का संग किया।। बापू ने कहा की नागर को साधु प्रेम है यदि ऐसा न होता तो यह जयदेव(जयदेवभाइ मॉंकड)मेरे साथ ना होता। जिस मूल में नरसिंह मेहता हुए हैं।। जीवन दास दादा वहां गए और कहा कि मुझे आपकी शरण में लो।।
गुरु तीन प्रकार शरण में लेते हैं:आंख से,शरणागती देकर और अपनी कोख के द्वारा।। तब ध्यान स्वामी बाप ने कहा कि आप विवाह कर लो। और जीवनदास बापा साधु होने वाले थे लेकिन आदेश मिलते ही गृहस्थ का स्वीकार किया।।और वहां से हम सब आए हैं।।
इसलिए बापू ने कहा कि हम साधु नागर ब्राह्मण है।। तलगजारडा के राम जी मंदिर के आंगन में जीवन दास बापा की समाधि है।।
पितामह बैलेंस करते हैं।रावण के भाई कुंभकरण को ब्रह्मा ने बहुत नींद प्रदान की और राम के भाई लक्ष्मण को जागरण प्रदान किया। विभीषण को ब्रह्मा ने चरण में अनुराग दिया और राम के भाई भरत को प्रेम मूर्ति बनाये।। इंद्र ने ब्रह्मास्त्र रावण के भाई को दिया और शत्रुघ्न को निर्वैरता दी।।पितामह ब्रह्मा के चार मुख है। जहां से वेद निकले।महाभारत का एक अर्थ है धर्म अर्थ काम और मोक्ष निकले हैं।। पितामह वो है जिनके मुख से धर्म की बातें निकलती है। हमारे अर्थ की व्यवस्था होती है। हमें उद्यमी बनाते हैं। इस तरह काम भी निकलता है। व्यसन से,जूहारी से, व्यभिचार और चोरी से मुक्त करते हैं ऐसे पितामह मोक्ष प्रदान करते हैं।। तो ऐसे जीवनदास बापा के नारायण दास और वहां से प्रेम दास बापा, फिर रघुराम बापू और वहां से त्रिभुवनदास।त्रिभुवनदास से प्रभुदास और वहां से आपका यह मोरारी दास!! बापू ने अपने पूरे मूल की बात यहां बताई।।
बापू ने यहां के जसवंत मेहता और राज मेहता सभी को भी याद किया यह भी बताया कि पास में काोंजली और पिथोरिया गांव के बीच में पीठड आई मां का स्थान है।जहां के माताजी हनुमान जी की उपासना करती थी। इसलिए यहां के हनुमान जी पिथोरिया हनुमान जी नाम रखा गया है।।
आज बापू ने कर्ण की कथा बताते हुए कहा कि कर्ण को व्रत था दोपहर तक जल में रहकर सूर्य को अंजलि प्रदान करता था। एक दिन ऐसा हुआ कर्ण अपनी अंजलि दे रहा है। पीछे कुछ हलचल हुई लेकिन अपनी पूजा चालू रखी।।और बाद में वो पीछे कुंती खड़ी होकर कर्ण की पीठ देखकर आंख में आंसू से रो रही थी।।कर्ण ने साधना पूरी करके प्रणाम किया और पूछा आप कौन? कुंती ने कहा मैं माता कुंती हूं।। कर्ण ने कहा अच्छा आप कुंता हो मॉं नहीं बोला!मॉं तो राधा को ही कहता था। कुंती बोली मुझे कुछ कहना है।। तब बोला कि कुछ कहने की जरूरत नहीं कृष्ण ने मुझे सब कुछ कह दिया है जब संधि का प्रस्ताव लेकर आए।दुर्योधन ने ठुकरा दिया और रथ में जा रहे हैं।मुझे साथ में बैठकर कृष्ण ने बहुत कुछ कहा।। रास्ते में प्रलोभन दिए। राज देने की बात की। द्रौपदी को पटरानी तक बनाने की बात की।।लेकिन मैंने कहा कि अब रण मैदान में ही हम मिलेंगे। इसलिए मां मुझे सब कुछ मालूम है।।कुंती ने कहा बेटा एक बार मॉं कहे? कर्ण बोल मॉं तो राधा को ही कहूंगा।। फिर भी कुंती ने पूरी बात बताई और कहा की एक कंदूक में रखकर मैंने तुझे बहा दिया था। पूरा लंबा संवाद है और फिर अपना पालव रखकर कहा कि तेरे पास एक वस्तु मांगती हूं। मेरे पांडव में से किसी को मारना मत! कर्ण ने कहा कि नकुल और सहदेव को नहीं मारूंगा क्योंकि वह छोटे हैं।। कुंता ने कहा भीम को भी मत मारना वह सबसे अधिक मुझे प्यारा है।। तब कर्ण ने कहा कि युधिष्ठिर को भी नहीं मारूंगा लेकिन अर्जुन को छोडूंगा नहीं।। तेरे पांच पांडव सलामत रहेंगे या तो मैं रहूंगा यह अर्जुन रहेगा! फिर कर्ण ने मां कहकर वहां से मॉं को विदाई किया।।
दूसरी कथा मद्र देश के राजा की बेटी सावित्री। बहुत रूपवान थी और वह जमाने में स्वतंत्रता भी थी कि अपने योग्य वर को पसंद कर सकती थी।। वन में जाकर देखा सत्यवान को देखकर मोहित हुई लेकिन सत्यवान और पूरा राज परिवार का राज चला गया था। जंगल में झोपड़ी बना कर रह रहे थे। सावित्री ने तय किया कि मेरे योग्य पुरुष यही है। नारद बैठे थे और सावित्री ने कहा कि मैं ब्याह करना चाहती हूं। नारद ने बताया कि यह सत्यवान के एक साल का आयु ही शेष बचा है।। फिर भी विवाह किया और एक साल बीत गया। सत्यवान को एक दिन बाकी है और वह जंगल में लकड़ी लेने जाता है सावित्री भी पीछे गई।। और गिर पड़ा सत्यवान का मरण हुआ। यमराज खड़े थे सावित्री पीछे-पीछे गई यमराज ने कहा कि मेरे पीछे मत आओ। लेकिन चलती गई। वरदान मांगने को कहा तो सबसे पहले अपने ससुर की आंखें वापस मांगी जो वापस मिला।। दूसरा वरदान मांगा। पूरा राज्य मांग लिया फिर भी नहीं लौटी और फिर कहा कि मुझे पुत्र चाहिए। यमराज ने तथास्तु कहा।तब बताया कि एक पतिव्रता के लिए अपना पति ही सब कुछ है और ऐसे सत्यवान को वापस जीवंत किया। यह पूरी कथा महाभारत में पांडवों के दुख कम करने के लिए मार्कंडेय ने बताई है।।
बापू ने कहा कि सावित्री वह है जो पूरे घर को दृष्टि प्रदान करती है।। और यहां के नौली साना के डूंगर में सावित्री मां की स्मृति में भी एक कथा का गान करना है।।
मानस के प्रवाह में चारों भाइयों के नामकरण संस्कार की कथा सुनाई गई।।