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कबीर वट की कथा का विराम।अगली-९५०वीं रामकथा प्रयाग के अक्षयवट पर, महाकुंभ मेले में, १८ जनवरी से प्रवाहित होगी।।

समग्र वक्तव्यों का सार रामनाम के कारण वैराग्य है।।

कबीर के वट के पास पानी पिलाने नहीं मेरी वाणी पिलाने आया:मोरारिबापु

रामलला की आरती के लिए कथा पंडाल में सभी ने अपने मोबाइल से आरती से वह अद्भुत दृश्य बनाया

कबीर के चरण सत्य है,कबीर के हृदय में प्रेम है और विचारों में विद्रोह वो कबीर की करुणा में से प्रकट हुआ है।।

विश्राम रूपी वट का मूल है-राम।।

शारीरिक, मानसिक और कर्म का विश्राम-यह तीन विश्राम वट की शाखाएं हैं।।

विश्राम वट के ३० पर्ण है।।

 

बटु बिस्वास अचल नीज धरमा।

तिरथराज समाज सुकरमा।।

-बालकॉंड दोहा-२

बर तर कह हरि कथा प्रसंगा।

आवहिं सुनहिं अनेक बिहंगा।।

-उत्तरकॉंड दोहा-५७

आज विराम के दिन कथा के आरंभ में मनोरथी नरेश भाई और उमाकांत भाई पटेल परिवार,हरि ओम,साक्षी और गोपाल ने चौपाई गान के द्वारा अपना आभार भाव प्रस्तुत किया।।

बरसों पहले सिसोदरा-नर्मदा मैया के सामने वाले तट पर से-शुरू करते हुए नर्मदा के इस तट पर 11 कथा रूपी परिक्रमा हुई उनका आनंद भाव व्यक्त हुआ।।

मोरबी कबीर मंदिर महामंडलेश्वर शिवराम साहब ने आशीर्वाद शब्द भी कहे।।

बापू ने पूरी कथा आयोजन के लिए सभी आयोजकों,परिवार और ग्राम लोग,स्वयंसेवक खासकर के महुआ के पास नेसवड से 300 स्वयंसेवकों रात दिन सेवा कर रहे हैं।एक बहन सुबह 6:00 से रात 10:00 बजे तक डीश ही सफाई करती रहती है,कोई मिलने की भी बात नहीं करता! ऐसे नहीं दिखते सेवक,नरेश भाई परिवार और दानाभाई फाफड़ा वाला का बेटा परेश उपरांत सभी कथा सेवक को और मनोरथी परिवार केवल श्रवण नहीं करता,स्वाध्याय भी कर रहे हैं वही क्रम बना रहे ऐसी प्रसन्नता-प्रार्थना और खुशी का भाव व्यक्त किया।

इन दिनों में हमने कबीर को विचार का,वैराग्य का, विश्वास का और विद्रोह का वट कहा।।आज देखेंगे कबीर विश्राम वट है।।वैसे तो रामचरितमानस में 11 वट की बात हुई है,लेकिन यहां पांच वट के बारे में हम विशेष संवाद कर रहे हैं।।

विश्राम का मूल क्या है?विश्राम का आधार क्या है? सबके अपने अनुभव हो सकते हैं।मेरे लिए मेरे मानस में भी एक वट है।।

तुलसीदास जी ने समग्र रामकथा का सार रामनाम तो कहा ही।लेकिन एक और सार है-वैराग्य।। समग्र वक्तव्यों का सार रामनाम के कारण वैराग्य है।।प्रत्येक कांड की फलश्रुति अलग-अलग है।जैसे बालकांड का फल उत्साह दिखाया है।।अरण्य कांड का भी फल है।वैसे ही तुलसीदास ने अलग-अलग फलादेश लिखा लेकिन कहीं अपना नाम नहीं लिखा अयोध्या कांड के फल का वर्णन करते हुए स्पष्ट अपना नाम लिखा है।।क्योंकी तुलसी को राम के प्रेम द्वारा निष्पत्त वैराग्य चाहिए। इसलिए तुलसी का अनुराग जन्य वैराग्य है।।हमारी पूरी परंपरा वैराग्य प्रधान परंपरा है। परंपरा का भी आनंद है। हमें कोई आलोचना के रूप में भी बैरागी बावा कहते हैं वह भी आनंद है! तुलसी का वैराग्य शुष्क नहीं है।।

कल हमने सेतुबंध में कल्याण की स्थापना की। रामराज्य रूपी परम कल्याण की स्थापना के लिए राम की सेना आगे बढी और लंका में राम रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ।। रावण का तेज राम के अंदर समा गया।। फिर पुष्पक आरूढ़ होकर राम अयोध्या में आए और वहां कौतुक करके अनेक रूप धारण करके सभी को व्यक्तिगत रूप में दर्शन दिए बापू ने कहा कि बच्चों के दफ्तर में रामायण और गीता रखने की बात की है तो बहुत सी शालायें और अनेक मां-बाप ऐसा करने जा रहे हैं।।आज विवेकानंद का प्रागट्य दिन का भी स्मरण करते हुए बापू ने कहा कि एक साल पहले अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी और ये खुशी के लिए रामलला की आरती के लिए कथा पंडाल में सभी अपने मोबाइल से आरती का वह दृश्य अद्भुत दृश्य बना।। महा आरती हुई।। राजगद्दी पर बैठे सीताराम की आरती भगवान शंकर ने की और दिव्य रामराज्य का वर्णन है।। फिर कागभुसुंडि का जीवन चरित्र,उत्तर कांड में सात प्रश्न और मानसिक रोग का संवाद करते हुए चारों वक्ताओं ने कथा को विराम दिया।।

बापू ने कहा कि तीर्थ की यात्रा करो मगर भटको नहीं ऐसा कबीर ने कहा है।। कबीर के चरण सत्य है कबीर के हृदय में प्रेम है और विचारों में विद्रोह वो कबीर की करुणा में से प्रकट हुआ है।।

विश्राम रूपी वट का मूल है-राम।। राम में से विश्राम प्रकट होता है।। विश्राम मजबूत होना चाहिए और थकान ना लगे ऐसा आधार है।।वही हमारे बुद्धपुरुष के वचन, गुरु के वचन से बहुत मजबूती मिलती है।।तीन प्रकार का विश्राम जरूरी है:शारीरिक, मानसिक और कर्म का विश्राम। यह तीन विश्राम वट की शाखाएं हैं।। विश्राम वट के 30 पर्ण है। मास पारायण करते हैं तो हर रोज दैनिक विश्राम ऐसे 30 विश्राम मिलते हैं।।नव दिवसीय पारायण में नव पर्ण है। साधक को सद ग्रंथ की खुशबू आए वही विश्राम फल की खुशबू है ।।और पायो परम विश्राम वह फल है।। परम विश्राम का कथामृत सबको पिलाते हैं वो विश्राम वट का रस है।।

कबीर साहेब विज्ञान का भी वट है।। कबीर के वट के पास पानी पिलाने नहीं मेरी वाणी पिलाने आया और पूरी कथा का शुभ फल कबीरवट को अर्पण करते हुए रामकथा को विराम दिया गया।।

अगली ९५०वीं रामकथा महाकुंभ मेले में तीरथराज प्रयाग की भूमि पर परमार्थ निकेतन आश्रम की संनिधि में सतुआबाबा की प्रेरणा और रमाबहन जसाणी परिवार के शिव संकल्प से १८ जनवरी शनिवार से शुरु हो रही है।।

ये रामकथा नियमित रुप से आस्था टीवी चेनल और चित्रकूटधाम तलगाजरडा यु-ट्युब चेनल एवं संगीतनी दुनिया परिवार यु-ट्युब चेनल के माध्यम से जीवंत प्रसारित होगी।।

जो नियत समय सुबह १० बजे से देखी जा सकती है।।

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