Homeगुजरातवेदांत, विश्वास और विज्ञान मानस की प्रस्थानत्रयि है।।

वेदांत, विश्वास और विज्ञान मानस की प्रस्थानत्रयि है।।

रामकथा का पूर्व भाग वेदांत है।।
रामकथा का प्रतिपाद्य तत्व भगवान राम है।
रामचरितमानस का आदि भाग वेदांत है।।
अस्ति,भांति और प्रियं ब्रह्म के तीन रूप है।।
केवल वैदिक भारतीय हिंदू धर्म को ही सनातन शाश्वत शब्द लगे हैं।।
आपको प्रेम करने के लिए मेरा माध्यम रामकथा है।।
जप के पांच अंग है:सांस-सांस,धड़कन धड़कन, कदम-कदम,पलक पलक और माला के एक-एक मनके पर।।
आपके संबंधियों को कहना यदि ‘बाहर’ गए हैं तो फिर ‘वतन’ में वापस आ जाए!
जपनिष्ठ,तपनिष्ठ और खपनिष्ठ ब्रह्मनिष्ठ है।।
यह रामकथा की प्रसादी के रूप में रामायण और गीता घर-घर भी पहुंचाइ जाएंगे।।

आदितीर्थवासीओं की भूमि सोनगढ-तापी से चल रही रामकथा के तीसरे दिन सर्वभूत हिताय,सर्वभूत सुखाय,सर्वभूत प्रीताय-ऐसी भूमि में सभी को प्रणाम करते हुए बापू ने कल हमारी क्रिकेट टीम चैंपियन हुई खुशी-खुशी पर होद्द्दारों और कप्तान सहित पूरी टीम को अभिनंदन देते हुए न्यूजीलैंड की टीम को भी अच्छी तरह खेलने के कारण अभिनंदन दिया।।
इन बी पंक्ति में गोस्वामी जी कहते हैं अनंत राम कथा की प्रतीति,विश्वास,भरोसा,श्रद्धा उनके गायक को दृढ़ होता है।।
बापू ने कहा मेरे दादा गुरु के पास रामचरितमानस आत्मसात करता था तब मुझे जो कथा की प्रसादी मिली वो आपको बांट रहा हुं।।
यह रामकथा की प्रसादी के रूप में रामायण और गीता घर-घर भी पहुंचाइ जाएंगे।।
मेरे दादा गुरु ने कहा था कि रामकथा का पूर्व भाग वेदांत है।। राम कथा का प्रतिपाद्य तत्व भगवान राम है।किसी भी ग्रंथ को आदि मध्य और अंत होता है। रामचरितमानस का आदि भाग वेदांत है।। रामायण के आरंभ में आरती में गावत वेद पुराण अष्टदस कहा है। रामकथा साधुओं का सर्वस्व है। वेदांत का मतलब वेद का सार भाग,आखिरी भाग।। विष्णु देवानंद गिरी और विद्यानंद गिरी महाराज ने 108 उपनिषदों में से 12 सार रूप उपनिषद निकाले इनमें से भी मुझे कुछ ग्रहण करना है तो सर्वसार उपनिषद ग्रहण करूंगा।।
शुद्ध वेदांत रामायण के अग्र भाग में शास्त्रों के न्याय द्वारा स्थापित किए गए हैं।। वेदांत ब्रह्म और जगत को पांच भाग में बांटता है और पहले तीन भाग में ब्रह्म के बारे में कहा है:अस्ति,भांति और प्रियं ब्रह्म के तीन रूप है।। अस्ति का मतलब कुछ भी नहीं है तब भी कुछ है वह ब्रह्म है।। वह ब्रह्म का निरूपण करता है।। केवल वैदिक भारतीय हिंदू धर्म को ही सनातन शाश्वत शब्द लगे हैं।।
भांति का मतलब है प्रकाशित।। जिनके द्वारा यह जगत प्रकाशित हुआ है।।हमें जगत के मिथ्या पना में नहीं जाना,वो हमारी औकात भी नहीं है।। ब्रह्म सत्य जगत स्फूर्ति ऐसा विनोबा जी ने कहा है।।
प्रियं का मतलब है जगत अच्छा लगता है।।
बापू ने कहा मैं आपको उपदेश देने नहीं प्रेम करने के लिए आया हूं।। इतने प्रलोभन चमत्कार और वटाल प्रवृत्ति के बीच में भी आप सनातन धर्म को पकड़कर बैठे हैं।।
बापू ने कहा कि सवजी भाई धोळकिया ने यहां के विस्तार में 11 हनुमान जी के मंदिर और अमेरिका स्थित परेश भाई फाफड़ा वाला परिवार ने 21 मंदिर बनाने की बात भी की है।मंदिर बहुत बनेंगे लेकिन आपको तीसरी कथा अगले साल जग्गू मामा और परिवार को देने की घोषणा भी बापू ने की।।
बापू ने कहा आपको प्रेम करने के लिए मेरा माध्यम रामकथा है।।आपके संबंधियों को कहना यदि ‘बाहर’ गए हैं तो फिर ‘वतन’ में वापस आ जाए।। वटलाव प्रवृत्ति एक आग है, होली की भांति और इनमें से जितने भाग बचा सके वह बचा लेना।। मुझे कोई जात पात नहीं, राम उपासक जात-पात में नहीं पड़ता,केवल प्रेम का नाता है।।तुलसी जी ने भी ऐसी ही उद्घोषणा की है मेरे लिए कोई काम का नहीं और मैं भी किसी का काम का नहीं।। सभी जातियों से पर हो ऐसा गोस्वामी जी कहते हैं।।
अस्ति भांति और प्रियं ब्रह्म के तीन रूप है।।
जीव भी जगत भी और जगदीश भी ऐसा पांडुरंग दादा ने भी कहा है।।जगत जगदीश का है इसलिए झूठ है तो भी हमें अच्छा लगता है।।
रामचरितमानस का मध्य भाग विश्वास है और उत्तर भाग विज्ञान है।। हमें प्रकृति संस्कृति और संसृति की सेवा करनी है।।
जप निष्ठ है वह ब्रह्मनिष्ठ है।। जिनमें आचार, विचार और उच्चार का सत्य है वह ब्रह्मनिष्ठ है।। तपनिष्ठ है वह भी ब्रह्मनिष्ठ है।। जो सहन करें जप करने वाले को सहन करना ही होगा।। और जो खपनिष्ठ है- किसी के लिए कुछ काम में आते हैं वह भी ब्रह्मनिष्ठ है।।
इसलिए जपनिष्ठ,तपनिष्ठ और खपनिष्ठ ब्रह्मनिष्ठ है। लिविंग विथ लेस-हमारी अलमारी में इतने कपड़े हैं हमने कितने को नग्न किए होंगे! एक दो या तीन पीढी के लिए कुछ करो लेकिन कहां तक सब इकट्ठा करेंगे! बहुत थोड़े में जीवन जियो संग्रह संरक्षण नहीं उपाधि है।।
रामकथा के मध्य भाग अयोध्या कांड से सुंदरकांड तक विश्वास की बात है।।
यहां के स्थानिक गायक के पास गाना गवांने के बाद बापू व्यास पीठ पर से उतरे और सभी को खुश रखने के लिए गीतों के ताल पर बापू ने नृत्य किया और बापू के साथ पूरा पंडाल नृत्य करता झूम उठा।।
बापू ने कहा जप के पांच अंग है:सांस-सांस,धड़कन धड़कन,कदम-कदम,पलक पलक और माला के एक-एक मनके पर।।
देश काल और पात्र को देखकर सहन करना सीखे वह तप है।। मानस का उत्तराखंड विज्ञान है।। इसलिए वेदांत विश्वास और विज्ञान मानस की प्रस्थानत्रयि है।।

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