यदि यह खुद के लिए हो जाए तो गुणातित श्रोता का जन्म होता है।।
कथा अमृत की खेती है यहां केसर उगाया जाता है।।
किसी की उपेक्षा नहीं लेकिन थोड़ा अंतर रखना भी जरूरी है।।
हर बात पर अहंकार करने से गुनीजनों का पतन होता है।।
संबंध बंधन में ही डालते हैं।।
कथा सुख नहीं देती,आनंद देती है।।
केवल द्रढाश्रय में बुद्धपुरुष मिलेगा।।
यह कथा वामन है लेकिन ज्ञान,कर्म और भक्ति के तीन कदम से ब्रह्मांड को नाप लेती है।।
कथा जैसा अच्छा माध्यम और कोई नहीं है।।
कथा में पतंजलि के योग सूत्र सहजता से उतरते हैं।
चारधामयात्रिकों जहां से गुजरते है वैसे शीतल और बरसाती हवा,आह्लादक खुशनुमा वातावरण और पंच प्रयागों में एक चमौली के पास जहां मॉं गंगा की मुख्य धारा जूडती है ऐसे नंद प्रयाग में रामकथा का तीसरा दिन।।बापु का वही सहज सरल तरल खरज का स्वर लोकाभिरामं से शुरु होते हुए बीज पंक्तियों का गायन और जीग्यासुओं के सवाल के यथा समय उत्तर देते हुए बताया की एक बात पक्की है:लोग कथा के लिए ही कथा में आते हैं फिर भी कथा के दिनों में हमें किसी क्रोध क्यों आता है!क्रोध आता है यदि समगुनी मिल जाए तो निंदा करने का मन करता है! अकेले में ईर्ष्या भाव जगता है! कारण क्या है?एक वस्तु सूत्र के रूप में समझ लिजीए आदेश,उपदेश और संदेश सदैव दूसरों के लिए होता है।।यदि यह खुद के लिए हो जाए तो गुणातित श्रोता का जन्म होता है।। ऐसा होने का कारण है हम तमोगुण लेकर आते हैं।। इसलिए क्रोध द्वैष उत्पन्न होता है।।लेकिन कथा अमृत की खेती है यहां केसर उगाया जाता है।। किसी की उपेक्षा नहीं लेकिन थोड़ा अंतर रखना भी जरूरी है।।हर बात पर अहंकार करने से गुनीजनों का पतन होता है।। संबंध बंधन में ही डालते हैं।।कथा सुख नहीं देती कथा आनंद देती है।।
वाल्मीकि जी ने अपना स्थान कभी नहीं छोड़ा लेकिन राम को रहने के लिए 14 स्थान बताएं।। बुद्ध पुरुष कहां मिलेंगे? डॉक्टर को रोगियों के बीच रहना चाहिए वैसे ही साधु भी खलमंडली के बीच मिलेगा।।बुद्धपुरुष को विचार से भौतिक रीत से नहीं लेकिन हृदय से पाया जाएगा।। बुद्धपुरुष पुकार में,खल मंडली में या तो बंधन के स्थान में मिलते हैं लेकिन छोड़ो!खल मंडली में कहां खोजे? हमारी पुकार भी इतनी कहां है कि मिले, इसीलिए केवल द्रढाश्रय में बुद्धपुरुष मिलेगा।।
परीक्षित को एक कथा से मोक्ष क्यों हुआ क्योंकि प्रत्येक इंद्रिय को विनय से स्नेह से निग्रह किया होगा यम, नियम का पालन किया होगा।। संसारी को शब्द,स्पर्श,रूप,रस और गंध में आनंद आता है।। लेकिन बुद्धपुरुष को शब्दब्रह्म में, स्पर्श में नहीं लेकिन शाश्वत आलिंगन आष्लेश में,रूप में नहीं अपने स्वरूप में, रस में नहीं लेकिन महारस में, प्रेम रस में आनंद आता है।।
शब्द ही नहीं सुर,स्वर,ताल,लय भी ब्रह्म है।।
ब्रह्म विचार ग्रंथ जो शंकराचार्य जी का है वह पढ़ने जैसा है।। वहां ज्ञानी विचारक और बाल विचारक की बात शंकराचार्य जी ने कही है।। यह कथा वामन है लेकिन ज्ञान,कर्म और भक्ति के तीन कदम से ब्रह्मांड को नाप लेती है।।
कथा जैसा अच्छा माध्यम और कोई नहीं है।। कथा में पतंजलि के योग सूत्र सहजता से उतरते हैं। यम, नियम,आसन,ध्यान और धारणा समाधि तक पहुंचाते हैं।।बोलते हैं गाते हैं तब ध्यान लग जाता है।
तैतरीय उपनिषद में वरुण का पुत्र भृगु वरुण से पूछता है ब्रह्म किसे कहते हैं? यह पूरा भृगुवल्ली प्रकरण है।। तब वरुण कहता है पांच वस्तु को ब्रह्म कहते हैं।। यह केवल सुन लेकिन जानने के लिए तप करना और एक-एक को जानना।।
१-अन्नम ब्रह्मेतिव्यजानात-अन्न को ब्रह्म समज।। प्राणों ब्रह्मेतिव्यजानात- प्राण को ब्रह्म समज।। क्योंकि प्राण में जन्म,प्राण में जीना और प्राण में ही विलय होता है।।
मनोब्रह्मेतिव्यजानात-मान को ब्रह्म मान।। मन से संसार शुरू होता है, मन में रममाण होता है और मनोविलय में लय हो जाता है।।
विज्ञानंब्रह्मेतिव्यजानात- विज्ञान को ब्रह्म समज। और आनंदोब्रह्मेतिव्यजानात-आनंद को ब्रह्म समज।।
आनंद भी ब्रह्म है लेकिन यह पांचवा चरण है। पहले चार चरण को वरुण ने बताया कि अन्न की निंदा कभी नहीं करना।। इसीलिए अन्न क्षेत्र को हम ब्रह्म क्षेत्र कहते हैं।।
कथा प्रकरण में शिव और सती कुंभज के पास कथा सुनकर आते हैं।। रास्ते में वही त्रेतायुग के राम की ललित नर लीला चल रही है। सती भ्रमित होती है। परीक्षा करने का निर्णय लेती है।और शिवजी दूर बैठते हैं। सती ने परीक्षा ली और नापासहुई।।राम ने अपना पूरा रूप दिखाया। सती भ्रमित हुई और झूठ बोली। शिव के पास आई शिव ने समाधि में बैठकर सब देख लिया और मन में ही प्रतिज्ञा की की अब सती के साथ व्यवहार नहीं होना चाहिए।।
शिव समाधि में बैठते हैं और 87000 साल तक शिव की समाधि रहती है और सती तब तक दुखी रहती हैं।।